India

कुंवर सिंह ने अदालतों में जिस भाषा में हस्ताक्षर किया, वो भाषा आज विलुप्त होने के कगार पर है…

Arun Narayan for BeyondHeadlines

‘कैथी लिपि का इतिहास बहुत पुराना है. गुप्तकाल में यह लिपि अपनी प्रकाष्ठा पर थी. उस समय राजा के यहां जो लिखने-पढ़ने के पेशे से जुड़े थे. राजा को जल्दी-जल्दी लिखकर संप्रेषित कर सकते थे, वे गणक और लिपिक का काम करते थे वही कायस्थ कहलाते थे. कायस्थ तब आज की तरह जाति के रूप में रूढ़ नहीं हुई थी वह संगठन था.’

ये बातें प्रोफ़ेसर ध्रुव कुमार ने पटना काॅलेज कान्फ्रेंस हॉल में अपनी ही पुस्तक ‘कैथी लिपि : एक परिचय’ के लोकार्पण समारोह में कही. साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था बातचीत की पहल पर आयोजित इस पुस्तक को लेखक ध्रुव कुमार के साथ प्रो. शैलेश्रर सती प्रसाद, अर्थशास्त्री प्रो. नवल किशोर चौधरी, पटना कॉलेज के प्राचार्य  प्रो. रमाशंकर आर्य, लेखक शिवदयाल, भैरवलाल दास और विश्वजीत सिन्हा ने समवेत रूप से लोकार्पित किया.

ध्रुव कुमार ने 19वीं शताब्दी के उस दौर की यादें  ताज़ा कर दी जब खड़ी बोली आंदोलन के प्रणेताओं ने किस तरह से कैथी लिपि की अवमानना के माहौल खड़े किए. उन्होंने कहा कि कैथी एक दौर में बिहार, उतर प्रदेश, बंगाल और राजस्थान की जन-शासकीय दोनों लिपि के रूप में सर्वसुलभ रही. कुंवर सिंह ने स्वयं अदालतों में जिस भाषा में हस्ताक्षर किया वह कैथी लिपि रही.

उन्होंने कहा कि 1881 में इसे अपदस्थ करके देवनागरी को अदालत की भाषा बनाई गई लेकिन जन दबाव के फलस्वरूप पुनः इसे अदालती भाषा का दर्जा मिला जो 1913 तक क़ायम रहा.

उन्होंने कहा कि उनके जीवन का बड़ा मक़सद इस लिपि के संरक्षण को समर्पित है और वे जल्द ही इसकी व्यापक प्रचार-प्रसार योजना में लगेंगे.

अपने अध्यक्षीय उद्घोषन में अंग्रेज़ी हिन्दी के मूर्द्धन्य विद्वान प्रो. शैलेश्वर सती प्रसाद ने कहा कि कैथी लिपि का प्रचलन बिहार की सभी लोकभाषाओं में समान रूप से रहा जिसकी ओर लेखक ने अपनी पुस्तक में पर्याप्त साक्ष्य पेश किया है. यह अवध, तिरहुत, बज्जिका, भोजपुरी और मगही सभी क्षेत्रों की जनभाषा थी और उस दौर में लोगों की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त मंच भी यही थी.

उन्होंने कहा कि इस लिपि को जानने का श्रेय हमारी पिछली पीढ़ियों को है. उन्होंने कहा कि यह भाषा कर्म प्रधान समाज में आई, लेकिन जाति का वर्गीकरण का दौर आया तो एक जाति विशेष के साथ इसे रूढ़ कर दिया गया. यह कोर्ट, कचहरी के साथ एक बहुत बड़े भूभाग की जनभाषा थी जो प्रकारांतर में हाशिये का शिकार होकर रह गई.

चर्चित लेखक शिवदयाल ने कहा कि यह विपुल सृजन का दौर है. आज अभिव्यक्ति के बहुत सारे माध्यम हैं समाज को आगे बढ़ाने के लिए, नया मूल्य विकसित करने के लिए लेकिन संरक्षण के आभाव में आज बहुत सारी लिपियां ग़ायब होती गईं. कैथी भी इसी का शिकार हुई.

उन्होंने कहा कि उनके पिता के पास उनके रिश्तेदारों की चिट्ठियां आती थी उसकी यादें आज भी उन्हें भाव विह्वल करती हैं. जो भाषा गुप्तकाल से प्रचलन में थी इसका मतलब है यह 5 सौ साल से अस्तित्व में रही है. यह उतनी ही प्राचीन है जितनी प्राचीन, दक्षिणी भाषाएं रही हैं. यह सुखद है कि कुछ साथियों ने इस पुराताव्तिक विरासत को लोकप्रिय बनाने के लिए बीड़ा उठाया है.

पटना काॅलेज के प्राचार्य प्रो. रमाशंकर आर्य ने कहा कि यह विडंबनापूर्ण स्थिति है कि रोमतण लिपि के द्वारा देश की कई लिपियां और उसकी भाषाएं ख़त्म की जाती रहीं. यह कैथी लिपि और बिहार की 8-9 बोलियां भी उसका शिकार हुई हैं.

उन्होंने कहा कि आज अभिव्यक्ति के जितने माध्यम हैं उनका परिस्कार ज़रूरी है. आज हम कई तरह के अंतर्विरोधों से घिरे हैं और यहां के बौद्धिक इसको लेकर सचेष्ट नहीं है यह आने वाले समय के लिए दुखद है.

अर्थशास्त्री प्रो. नवल किशोर चौधरी ने कहा कि ध्रुव कुमार ने कैथी लिपि के बारे में ऐसे समय में लिखा है जब यह लिपि इतिहास हो गई है और हमारी वर्तमान पीढ़ी इसे भूल गई है.

उन्होंनें कहा कि एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज को इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि उसकी विरासत यूं ही नष्ट की जाती रहे. उन्होंने माना कि समाज को बदलने, समझने और सुसभ्य बनाने का काम हमारी लिपिय विरासत के द्वारा ही संभव है जो हमारी भाषा और साहित्य के माध्यम के रूप में हम तक आया है.

उन्होंने चिंता प्रकट की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिहार में इन चीजों के संरक्षण की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई.

बिहार विधान परिषद के अवर सचिव विश्वजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि कैथी लिपि बिहार की पहचान रही है, लेकिन कोई भाषा या लिपि किसी जाति विशेष से जोड़ दिए जाने के बाद जिस हाशिये का शिकार होती है, कैथी लिपि भी शायद कायस्थों के साथ जोड़े जाने के कारण ही इसका शिकार हुई.

उन्होंने कहा कि ध्रुव कुमार ने कैथी लिपि के बारे में बहुत प्रामाणिक जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि एक दौर में बिहार की शासकीय भाषा होने के कारण भूमि संबंधी बहुत सारे दस्तावेज़ अभी भी बिहार के विभिन्न ज़िलों में कैथी में ही मौजूद हैं. काश आज उसको पढ़ने की पहल होती तो उससे इतिहास का एक सुनहला अध्याय से हम रू-ब-रू होते.

बिहार के चर्चित लेखक भैरवलाल दास ने कहा कि ध्रुव कुमार ने कैथी लिपि पर बहुत अच्छी पुस्तक लिखी है. उन्होंने कहा कि आज ज़रूरत इस बात की है कि नई पीढ़ी को मिथिलाक्षर और कैथी लिपि की ट्रेनिंग दी जाए. विश्वविद्यालय भी इस तरह के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करें और ट्रेनिंग सर्टिफिकेट दें ताकि लोगों में इसके प्रति आकर्षण पैदा हो. उन्होंने कहा कि यह दौर था जब यह लिपि बिहार, बंगाल, उतर प्रदेश में काफ़ी लोकप्रिय रही. बता दें कि भैरवलाल दास भी कैथी लिपी पर कई किताबें लिख चुके हैं.

कैथी लिपि में अक्षर ज्ञान लेने वाले डा. हीरालाल ने कहा कि बिहार की राजकाज के रूप में प्रचलन में रही इस लिपि की प्राईमरी और सेकेंडरी कक्षाओं में फिर से पढ़ाई का कोर्स आरंभ किया जाना चाहिए. विश्वविद्यालयों में इसके संरक्षण व संवर्द्धन हेतु कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए ताकि इस विलुप्त हो रही भाषा का अस्तित्व क़ायम रहे.

कार्यक्रम में विभिन्न अनुशासनों से जुड़े दर्जनों लोगों ने शिरकत की, जिसमें शशिकांत मिश्र, अरविंद पासवान, अरुण कुमार वर्मा, पुष्पा जमुआर, धीरज, इंदूभूषण वर्मा, राजेश रंजन, निर्भय शंकर, अपलेन्द्र कुमार वर्मा, मनोज कुमार राय, प्रो. अशोक कुमार राय, मदन मोहन प्रसाद, अर्चना श्रीवास्तव आदि मुख्य थे.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]