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जब हिन्दू महासभा ने जामिया का किया विरोध तब गांधी ने दिया था ये जवाब…

Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

29 दिसम्बर, 1927 को हकीम अजमल खान अचानक इस दुनिया को अलविदा कह कर चले जाने के बाद गांधी जी काफ़ी सदमे में रहे. उन्होंने हकीम साहब के सबसे ‘प्रिय बच्चा’ जामिया मिल्लिया के लिए फंड देने की अपील की.   

हिन्दू महासभा के डॉ. बी.एस. मुंजे ने 18 जनवरी, 1928 को गांधी जी को एक पत्र लिखकर ‘जामिया अजमल कोष’ का विरोध किया. इस पत्र में लिखा कि इस प्रकार की साम्प्रदायिक संस्थाएं सम्प्रदायों की पृथकता के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं जिसका अन्ततः परिणाम हिन्दू-मुस्लिम तनाव होता है.

उन्होंने लिखा था —“मैं अपने आदरणीय और प्रिय हकीम जी के स्मारक के लिए किसी भी राष्ट्रीय योजना में साथ दूंगा… और ऐसा ही स्मारक स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानन्द का भी हो… लेकिन इससे बेहतर है कि दोनों का एक समान स्मारक बनाया जाए जो दुनिया के सामने इस बात की घोषणा करेगा कि हिन्दू और मुसलमानों ने… एकता स्थापित करने का संकल्प किया…”

डॉ. मुंजे के इस पत्र के जवाब में गांधी जी ने उन्हें सत्याग्रह आश्रम, साबरमती से 27 जनवरी, 1928 को एक पत्र लिखा. इस पत्र में वो लिखते हैं —

प्रिय डॉ. मुंजे,

आपने मुझे पत्र लिखने में बड़ी विचारशीलता का परिचय दिया है. मैं भी आपके सामान्य प्रस्ताव से सहमत होऊंगा. लेकिन क्या इस चीज़ को केवल मुसलमानों पर लागू कर सकते हैं या क्या इस सुधार का आरम्भ उन्हीं के साथ कर सकते हैं? क्या हमारे देश में बहुत सी विशुद्ध हिन्दू संस्थाएं नहीं हैं? फिर, इस मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिन्दुओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं है. तथ्य तो यह है कि पहले ही इस विश्वविद्यालय से निकले हुए ऐसे हिन्दू स्नातक हैं जो आज अच्छी राष्ट्र सेवा कर रहे हैं. अभी भी उसमें कुछ हिन्दू पढ़ रहे हैं. तीसरे, यदि किसी संस्था का दृष्टिकोण राष्ट्रीय है, और वास्तव में उसका उपयोग राष्ट्रीय उन्नति के लिए किया जाता है, तो ऐसी साम्प्रदायिक संस्था को भी राष्ट्रीय कहा जा सकता है. अतः मैं चाहूंगा कि यदि आप कर सकें तो हकीम जी के इस स्मारक की सहायता करें.

श्रद्धानन्द जी की मृत्यु जिस ढंग से हुई उसे देखते हुए उनका स्मारक एक भिन्न और अधिक ऊंचे स्तर पर आता है. लेकिन उनके स्मारक की जैसी संकल्पना है, उसे राष्ट्रीय नहीं कहा जा सकता. यह तो विशुद्ध हिन्दू स्मारक है. क्योंकि शुद्धिकार्य और अस्पृश्यता, ये दोनों चीज़ें ऐसी हैं जिनको देखने का काम केवल हिन्दुओं का है. अतः इन दोनों (स्मारकों) को पृथक रखना होगा. प्रत्येक का अपना एक विशेष उद्देश्य है.

हृदय से आपका,’

बता दें कि डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे (12 दिसम्बर 1872 – 3 मार्च 1948) सन 1927-28 में ‘अखिल भारत हिन्दू महासभा’ के अध्यक्ष रहे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बनवाने में इनका बहुत योगदान था. संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के वे राजनितिक गुरु थे. लेकिन आज जामिया इन्हीं के ज़रिए बनवाए गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क़रीब होता नज़र आ रहा है.  

(जामिया के संबंध में ये महत्वपूर्ण बातें पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल द्वारा लिखित पुस्तक ‘जामिया और गांधी’ से ली गई है.)

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