बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर पर 1935 में लिखी एक नज़्म…

Afroz Alam Sahil
Afroz Alam Sahil
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सैय्यद अब्दुल ख़ालिक़ द्वारा लिखी ये नज़्म ‘अम्बेडकर से ख़िताब’ बिजनौर से निकलने वाले उर्दू दैनिक अख़बार ‘मदीना’ में अक्टूबर 1935 में छपी थी. इस नज़्म से ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे बाबा साहेब क्या हस्ती थे. बता दें कि सैय्यद अब्दुल ख़ालिक़ रेत घाट भोपाल के रहने वाले थे. 

जो लोग उर्दू नहीं पढ़ सकते, उनके लिए हिन्दी लिप्यांतरण :—

रहबर-ए-हिन्दुस्तां! ऐ डॉक्टर अम्बेदकार

आलम-ए-इंसानियत करता था तेरा इंतज़ार 

यक बैक अहसास में तेरे नई जुंबिश हुई

फ़ज़ल-ए-बारी की ज़मीं पर इस तरह बारिश हुई

आज हिन्दुस्तान की पसमान्दा क़ौमों के हुज़ूर

तूने फूंका आदमियत का क़यामतखेज़ सूर

मुश्तईल जिससे तेरी मिल्लत की चिंगारी हुई

जिस्म में पैदा नई इक रूह-ए-बेदारी हुई

थी तेरी तक़रीर आईना तेरे जज्बात का

रंग है जिस में नुमाया तेरे अहसासात का

अब्र-ए-पस्ती था तेरी अक़वाम पर छाया हुआ

तेरा फ़रमाना हुमाए औज का साया हुआ

तुने आख़िर कह दिया जो दिल में तेरे राज़ था

मुर्ग़-ए-दिल सुए बलंदी माएले परवाज़ था

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