साल 1994 की बात है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला लखनऊ गए हुए थे. इस शहर से उनकी पुरानी यादें जुड़ी हुईं थीं. इसी शहर से पढ़कर उन्होंने क़ानून की डिग्री भी ली थी.
पूर्व राज्यपाल और मुख्यमंत्री रहे बरनाला 24 घंटे सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहने से ऊब चुके थे. वो अकेले ही खुली हवा में सांस लेना चाहते थे. छात्र जीवन की पुरानी यादें ताज़ा करना चाहते थे.
शहर के अमीनाबाद के बाज़ार में बिना सुरक्षाकर्मियों के वो घूमने निकले ही थे कि बस पुलिस के लोगों को उन पर ‘आतंकवादी’ होने का शक हुआ. वो उनका पीछा करने लगे.
कुछ ही देर में उन्होंने अपने आपको थाने में पाया. जहाँ उनसे गहन पूछताछ की जाने लगी. चूंकि पुलिस को उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिल पाए थे, इसलिए उनसे दो स्थानीय लोगों की ज़मानत मांगी गई.
बरनाला ने पुलिस को बताया कि लखनऊ में वो सिर्फ़ मुलायम सिंह यादव को पहचानते हैं. मुलायम सिंह उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. कई घंटों तक चली पूछताछ के बाद आख़िरकार पुलिस वालों ने उन्हें छोड़ दिया. बरनाला ने यह आपबीती अपनी किताब ‘स्टोरी ऑफ़ ऍन एस्केप’ में लिखी है.
सोचने वाली बात ये है कि बरनाला पढ़े-लिखे थे. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री भी ली थी. इसलिए पुलिस वालों ने उन्हें छोड़ दिया. मगर भारत की विभिन्न जेलों में बंद सारे क़ैदी उतने खुशक़िस्मत नहीं हैं.
यही वजह है कि छोटे मोटे मामलों में कइयों को ना तो निजी मुचलके पर छोड़ा जाता है और ना ही उन्हें समय पर ज़मानत मिल पाती है. कम पढ़े-लिखे होने की वजह से उन्हें यह भी पता नहीं लग पाता कि उनके ख़िलाफ़ कौन सी धाराएं दर्ज की गईं हैं. इन्हें अपने लिए वकील रखने या फिर अपने लिए ज़मानत का इंतजाम करने में भी मुश्किलें आती हैं. जेलों की बढ़ती आबादी का ये एक बड़ा कारण है.
जेलों में बढ़ रही है ग्रेजुएट क़ैदियों की तादाद, अनपढ़ क़ैदियों की भी बड़ी संख्या
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार जेलों में बंद क़रीब 70 फ़ीसद क़ैदी या तो अनपढ़ हैं या फिर नवीं कक्षा तक ही पढ़े हुए हैं. 21.7 फ़ीसद मैट्रिक या बारहवीं तक पढ़े हैं. तो वहीं इन जेलों में 6.4 फ़ीसद ग्रेजुएट, 1.7 फ़ीसद पोस्ट ग्रेजुएट क़ैदी हैं.
Year | Illiterate or Below Class 10th | 10th or 12th | Graduate | Post Graduate |
2013 | 2,93,054 (71.1%) | 85,130 (20.6%) | 22,385 (5.4%) | 7,173 (1.7%) |
2014 | 2,97,142 (70.9%) | 84,998 (20.3%) | 24,137 (5.7%) | 7,471 (1.7%) |
2017 | 3,17,415 (70.4%) | 92,277 (20.5%) | 27,561 (6.1%) | 7,896 (1.8%) |
2018 | 3,22,345 (69.1%) | 1,01,109 (21.7%) | 29,839 (6.4%) | 7,871 (1.7%) |
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों पर ग़ौर करें तो जेलों में ग्रेजुएट क़ैदियों की तादाद बढ़ रही है. और जिस तरह से हाल के दिनों में पढ़े-लिखे युवाओं की गिरफ़्तारियां हुई हैं या हो रही हैं, उससे ये आंकड़ें और बढ़ने के आसार हैं. 2019 की जेल रिपोर्ट इसकी हक़ीक़त बख़ूबी बयान करेगी.
