भारत के जेलों में क़ैदियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. इन क़ैदियों में ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं या फिर समाज के पिछड़े तबक़े से ताल्लुक़ रखते हैं. जेलों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाले क़ैदियों की संख्या सबसे ज़्यादा है.
नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक़ भारत के जेलों में कैपिसीटी से अधिक संख्या में क़ैदी रखे गए हैं. साल 2018 की रिपोर्ट बताती है कि भारत के 1339 जेलों में 3,96,223 क़ैदियों को रखा जा सकता है, लेकिन 31 दिसम्बर, 2018 तक उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि जेलों में क़ैदियों की संख्या 4,66,084 है.
इनमें 1,39,488 क़ैदी सज़ायाफ़्ता हैं. वहीं 3,23,537 यानी 69.4 फ़ीसदी लोग अभी भी अंडर ट्रायल हैं. 2,384 लोगों को सिर्फ़ शक की बुनियाद पर गिरफ्तार किया गया है. वहीं 675 लोग ऐसे हैं, जिनके बारे में जेल प्रशासन ने नहीं बताया है कि वो सज़ायाफ़्ता हैं, अंडर ट्रायल हैं या फिर डिटेन किए गए हैं.
मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठन ‘ओरिज़िन’ से जुड़े शारिक़ नदीम का कहना है, “क़ैदियों की संख्या के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है. पिछले दस सालों में भारत में जेल की आबादी लगातार बढ़ रही ही है.”
Year | No. of Prisons | Actual Capacity of Prisons | No. of Prisoners at the end of the year |
2013 |
1391 |
3,47,859 |
4,11,992 |
2014 |
1387 |
3,56,561 |
4,18,536 |
2017 |
1361 |
3,91,574 |
4,50,696 |
2018 |
1339 |
3,96,223 |
4,66,084 |
अंडर ट्रायल क़ैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक भारत की जेलों में उनकी क्षमता से काफ़ी ज़्यादा क़ैदियों को रखा गया है और इनमें से अधिकतर अंडर ट्रायल क़ैदी ही हैं.
इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने भी साल 2014 के चार सितम्बर को एक अहम फ़ैसले में देश के सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को ख़ास निर्देश दिया कि वो जेलों का निरीक्षण करें और ऐसे क़ैदियों को निजी मुचलके पर रिहा करें जिनका मामला लंबे समय से विचाराधीन है और उन्होंने संभावित सज़ा का आधा समय जेल में बिता दिया है.
वहीं सीआरपीसी की धारा —436 ए के तहत ऐसा प्रावधान है कि संभावित सज़ा का आधा समय अगर किसी क़ैदी ने अंडर ट्रायल ही रहकर गुज़ार दिया हो तो उसे निजी मुचलके पर ज़मानत दी जा सकती है. मगर इस प्रावधान के बावजूद लम्बी खिंचती हुई क़ानूनी प्रक्रिया की वजह से अंडर ट्रायल क़ैदी सालों तक जेलों में बंद रहते हैं और उन्हें राहत नहीं मिल पाती.
