नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ें कहते हैं कि देश के कुल क़ैदियों में क़रीब 27 फ़ीसदी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाले लोग जेलों में बंद हैं. जबकि देश की आबादी में इनकी हिस्सेदारी मात्र 20 फ़ीसद है. स्पष्ट रहे कि इसमें महाराष्ट्र का आंकड़ा शामिल नहीं है. एनसीआरबी के मुताबिक़ साल 2018 में महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने धर्म के आधार पर एनसीआरबी को आंकड़ा उपलब्ध नहीं कराया.
जेलों में बंद धार्मिक अल्पसंख्यकों की बात की जाए तो इनमें सबसे अधिक संख्या मुसलमानों की है और साल दर साल इनकी आबादी बढ़ती ही जा रही है. 2018 दिसम्बर तक 19.7 फ़ीसदी मुसलमान जेलों में बंद हैं. जबकि 2011 के जनगणना के अनुसार देश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.2 फ़ीसदी है.
Year | Convicts (Muslim) | Undertrial (Muslim) | Detenues (Muslim) | Others (Muslim) |
2013 |
22,145 |
57,936 |
613 |
392 |
2014 |
21,550 |
59,550 |
658 |
432 |
2017 |
23,932 |
56,636 |
597 |
386 |
2018* |
24,047 |
63,626 |
821 |
396 |
* इसमें महाराष्ट्र सरकार का आंकड़ा शामिल नहीं है.
ईसाई समुदाय के 3.2 फ़ीसद लोग जेलों में बंद हैं जबकि हिन्दुस्तान की आबादी में उनका योगदान 2.30 फ़ीसदी है.
Year | Convicts (Christian) | Undertrial (Christian) | Detenues (Christian) | Others (Christian) |
2013 |
5,047 |
12,406 |
248 |
4 |
2014 |
5,171 |
11,048 |
505 |
4 |
2017 |
4,687 |
8,290 |
211 |
5 |
2018* |
4,693 |
9,193 |
189 |
1 |
* इसमें महाराष्ट्र सरकार का आंकड़ा शामिल नहीं है.
सिक्ख समुदाय के 3.6 फ़ीसदी लोग जेलों में बंद हैं, जबकि आबादी के लिहाज़ से इनकी जनसंख्या देश में मात्र 1.72 फ़ीसद है. इसके अलावा दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखने वाले 1.08 फ़ीसद लोग भारत के जेलों में बंद हैं.
Year | Convicts (Sikh) | Undertrial (Sikh) | Detenues (Sikh | Others (Sikh) |
2013 |
6,836 |
11,666 |
79 |
0 |
2014 |
7,286 |
10,203 |
4 |
0 |
2017 |
7,358 |
10,492 |
10 |
1 |
2018* |
6,576 |
10,413 |
19 |
4 |
* इसमें महाराष्ट्र सरकार का आंकड़ा शामिल नहीं है.
क्या कहते हैं आईपीएस अब्दुर रहमान
हाल ही में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर महाराष्ट्र में आईजी पद से इस्तीफ़ा देने वाले आईपीएस अब्दुर रहमान कहते हैं कि हमारे देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ही कहीं न कहीं दलितों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के प्रति बायस है. मेरी जानकारी में उपरी लेबर ज्यूडिशियरी में अभी भी रिज़र्वेशन नहीं है. ऐसे में यहां अपर कास्ट का डॉमिनेंस है.
वो आगे कहते हैं, हमेशा जेल रिफॉर्म की बात होती है, लेकिन होता कुछ नहीं है. हद तो ये है कि क़ैदी होने के नाते इनके जो अधिकार हैं, क़ैदियों को वो अधिकार भी नहीं मिल पा रहे हैं.
सवाल पुलिस की मानसिकता का भी है
जेल रिफार्म पर काम कर रहे मानव अधिकार कार्यकर्ता मो. आमिर खान का कहना है कि जेलों में अल्पसंख्यकों की बढ़ती आबादी के पीछे काफ़ी हद तक सिस्टम ज़िम्मेदार है. अमेरिका में पुलिस का जो रवैया वहां के ब्लैक लोगों के साथ है, उससे भी कई गुना ख़राब रवैया हमारे देश के पुलिस की यहां के अल्पसंख्यकों ख़ास तौर पर मुसलमानों, दलितों व आदिवासियों के प्रति है. इनके ऊपर कार्रवाई करते वक़्त हमारी पुलिस मानवीय पहलू को दरकिनार कर देती है.
आमिर आगे कहते है, एक तो प्रशासन में अल्पसंख्यकों की भागीदारी काफी कम है, दूसरा कहीं न कहीं पुलिस की मानसिकता का भी सवाल है. हालांकि प्रशासन में अच्छे लोग भी मौजूद हैं. वहीं वो जेलों में अल्पसंख्यकों की बढ़ती आबादी के पीछे शिक्षा की कमी, आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन को भी एक कारण मानते हैं.
बता दें कि सिस्टम के ज़ुल्म के शिकार हुए आमिर भी बतौर अंडर ट्रायल क़ैदी जेल में रह चुके हैं. इन्हें बेगुनाह साबित होने में पूरे 14 साल लगें. शायद आमिर का देश में पहला ऐसा मामला होगा, जिसमें दिल्ली पुलिस मुआवज़ा देने को मजबूर हुई. नेशनल ह्यूमन राईट्स कमीशन ने सरकारी मशीनरी के ज़रिए ग़तल क़ानूनी कार्रवाई करने पर उन्हें दिल्ली पुलिस से 5 लाख रूपये का मुआवज़ा दिलवाया. आमिर फिलहाल सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की संस्था ‘अमन बिरादरी’ से जुड़े हुए हैं.
