2 अक्टूबर 1947 को आज़ाद भारत में महात्मा गांधी की पहली व उनके जीवन की आख़िरी जयंती जामिया मिल्लिया इस्लामिया में धूमधाम में सेलीब्रेट की गई. इस मौक़े से उस वक़्त के जामिया के वाइस चांसलर डॉ. ज़ाकिर हुसैन साहब ने जामिया वालों को संबोधित किया. यह वह समय था जब उत्तर की ओर से मशीनगनों की आवाज़ आ रही थी, दक्षिण की ओर से बलवाइयों का भय था, पूरब की ओर से सताए हुए, सहमे हुए ग्रामीण आकर जामिया में शरण ले रहे थे तथा पश्चिम की ओर से हुमायूं के मक़बरे का और वहां से पाकिस्तान का मार्ग खुला हुआ था.
ज़ाकिर साहब ने जामिया वालों को गांधी जी के निकट संबंध तथा उन दिनों की याद दिलाई जब गांधी जी मुसलमानों के सच्चे मित्र एवं हितैषी समझे जाते थे. फिर उस काल की चर्चा की जब मुसलमानों के नए मित्र एवं हितैषी उत्पन्न हो गए जिन्होंने इनको बताया कि गांधी तुम्हारा नंबर एक का शत्रु है.
उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “ये झूठ इतना फैला कि मुसलमानों के दिलों के दरवाज़े गांधी जी के लिए बंद हो गए किंतु गांधी जी के दिल का द्वार उनके लिए हमेशा खुला रहा. आप देख रहे हैं कि आपका सच्चा, पक्का, दिली दोस्त एक ही है जो इस पस्त हालत में आपको शरण देने वाला तथा युद्ध में डटा हुआ है. आज मुसलमान गांधी जी को मान गए हैं, इसलिए कि मुसलमान और चाहे कुछ हों, कृतघ्न कदापि नहीं हैं.”
ज़ाकिर साहब ने दिल्ली में दंगों को रोकने तथा शान्ति स्थापना के लिए गांधी जी के प्रयासों तथा तत्कालीन सरकारी सहायता की चर्चा करते हुए भरोसा दिलाया कि गांधी जी का प्रयास प्रभावशाली होगा. संसार के राष्ट्र पूरी भारत की मनुष्यता और गांधी जी पर गर्व करेंगे…
बता दें कि देश की आज़ादी के बाद गांधी जी 9 सितम्बर, 1947 की सुबह दिल्ली स्टेशन पहुंच कर पहला प्रश्न यही किया था —‘ज़ाकिर हुसैन सकुशल हैं? क्या जामिया मिल्लिया सुरक्षित है?’ इतना ही नहीं, दूसरे ही दिन सुबह-सुबह अपना भरोसा पक्का करने के लिए जामिया आए.
एक ख़बर के मुताबिक़, महात्मा गांधी जब ओखला में जामिया के शरणार्थी कैम्प में आएं तो यहां उन्हें ज़ाकिर हुसैन ने रिसीव किया. मुस्लिम शरणार्थियों ने महात्मा गांधी को बताया कि उनके गांवों में कैसे उनके साथ परेशानी शुरू हो गई थी. महात्मा गांधी ने डर को भगाने और साहसी होने के लिए बुर्का में मुस्लिम महिलाओं के एक समूह को समझाया. उन्हें एक नवजात बच्चा दिखाया गया, जिसके माता-पिता गुंडों द्वारा मार दिए गए थे. बता दें कि इस दिन जामिया के एक दरवाज़े में महात्मा गांधी की एक उंगली दबने के कारण थोड़ा सा कट गया था.
सितम्बर 1947 में गांधी जी का दौरा आख़िरी दौरा साबित हुआ. इसके बाद वो कभी इस इदारे में नहीं आ सके. जब देश के हालात क़ाबू से बाहर होते नज़र आए तो उन्होंने 13 जनवरी, 1948 को अपने अंतिम व्रत का ऐलान कर दिया. उनके इस ऐलान से जामिया मिल्लिया में खलबली मच गई और उनके सेहत के लिए दुआएं की जाने लगीं. इस मौक़े पर वाइस चांसलर डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने एक बयान भी जारी किया. महात्मा गांधी ने चंद दिनों बाद समाज के विभिन्न तबक़ों की ज़िद पर व्रत तोड़ मगर 30 जनवरी, 1948 की शाम पांच बजकर सतरह मिनट पर एक मज़हबी जुनूनी के हाथों वह शहीद कर दिए गए. उस रोज़ जामिया का हर शख़्स उदास व ग़मगीन था. हर आंख अपने उस मोहसिन की याद में अश्कबार थी जिसने जामिया की स्थापना में अहम किरदार अदा किया था.
(लेखक जामिया के इतिहास पर शोध कर रहे हैं. पिछले दिनों इनकी ‘जामिया और गांधी’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है.)