BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: ज़िन्दगी की लाइन में भी भ्रष्टाचार…
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > ज़िन्दगी की लाइन में भी भ्रष्टाचार…
Latest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

ज़िन्दगी की लाइन में भी भ्रष्टाचार…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 21, 2012
Share
11 Min Read
SHARE
दिलनवाज पाशा

रिंग रोड पर गुजरते हुए जब भी एम्स पर नजर पड़ी तो आंखों में उम्मीद सी जगी. हमेशा यही लगा कि देश में जिसका कहीं इलाज नहीं हो पाता वो यहां आकर ठीक हो जाता है. हालांकि मैं एक दो बार एम्स जरूर गया था लेकिन कभी भी वहां की व्यवस्था का फर्स्टहैंड एक्सपीरिएंस नहीं था.

पिछले हफ्ते मैं एम्स की बुनियादी हकीकत से रूबरू हो सका. रिश्ते के एक भाई का इलाज करवाने के लिए एम्स जाना हुआ. सुबह पांच बजे पहुंच कर ओपीडी की लाइन में लग गए. उन्हें लाइन में लगाकर मैं यह जानकारी जुटाने में लग गया कि डॉक्टर के पास पहुंचने का प्रोसीजर क्या है. कई सुरक्षा गार्डों से बात करने के बाद पता चला कि न्यूरोलॉजी विभाग में दिखाने के लिए पहले मेडिसिन ओपीडी के डॉक्टर को दिखाना पड़ता है.

यह जानकारी मिलने के बाद हम मेडिसिन ओपीडी की लाइन में लग गए. इस लाइन में रात दस बजे से ही लोग लगे थे. जाहिर है 6 बजे तक लाइन काफी लंबी हो चुकी थी और हम काफी पीछे. जैसे-जैसे दिन बढ़ता गया, लाइन में मरीजों की संख्या भी बढ़ती गई. मेडिसिन विभाग में रोजाना गिनती के मरीजों को ही देखा जाता है. जिनका नंबर नहीं आता वो अगले दिन लाइन में लगते हैं.

हमारा नंबर आने की संभावना कम थी. बहुत से लोग लाइन को बीच में से तोड़कर आगे आने की कोशिश कर रहे थे. किसी मरीज का नंबर काट कर वो अपना इलाज कराने की जुगत भिड़ा रहे थे. लेकिन सारे नियमों की धज्जियां सुरक्षा गार्डों ने उड़ा रखी थी. अपनी पहचान के मरीजों को बिना लाइन के ही अंदर भेज रहे थे. खैर… पहले दिन हमारा नंबर नहीं आया.

मंगलवार को फिर सुबह तीन बजे उठकर एम्स के लिए रवाना हुए. चार बजकर बीस मिनट पर जब अस्पताल पहुंचे तो देखा पहले से ही लोग चादर बिछाकर ओपीडी के बाहर सोए हैं. जनरल ओपीडी की तुलना में यहां भीड़ फिर भी थोड़ा कम थी. हम भी लाइन में लग लिए. आज अपना नंबर 27वां था. आज नंबर आने की पूरी उम्मीद थी. लाइन में कुछ मरीज ऐसे भी थे जिनका तीन दिन से नंबर नहीं आ रहा था. कोई बिहार से आया था और होटल में कमरा लेकर ठहरा था. एक तो ऐसे थे जो अपनी बेटी का इलाज कराने एम्स आए थे और एक महीना यहां के चक्कर काटने के बाद खुद ही बीमार हो गए थे.

वक्त के साथ लोगों की संख्या भी बढ़ती गई. कुछ नौजवान ऐसे भी आए जो ज़बरदस्ती लाइन में बीच में फिट होना चाह रहे थे. मरीजों की लाइन में भी लोगों को दूसरों को पीछे छोड़ने की जुनून सवार था. वो किसी भी हद तक जाकर बाकी लोगों से पहले अपना नंबर लगाना चाह रहे थे.

एम्स के स्टाफ के लिए भी लाइन की व्यवस्था है. साढ़े आठ बजे काउंटर खुलता है. जैसे ही सवा आठ बजे एम्स का आईकार्ड दिखाकर लोग बिना लाइन के अंदर जाने लगे. सबसे पहले लाइन में ये लोग ही लगे. इनमें से अधिकतर ऐसे थे जो अपनी पहचान वालों का इलाज कराने ओपीडी आये थे. किसी न किसी के साथ कोई न कोई मरीज था. ये पहचान वाले लोग बिना रात को तीन बजे लाइन में लगे ही सबसे पहले सुविधाएं पा सकते थे.

लाइन लगाने को नियंत्रित करने क लिए करीब पांच सुरक्षा गार्ड मेडिसिन ओपीडी पर तैनात थे. जो भी इनका परिजन आता या फिर किसी अन्य गार्ड का नाम लेता वो भी सबसे पहले सीधे अंदर. एम्स में अन्य स्थानों पर तैनात कई गार्ड अपने साथ मरीजों को लेकर आए और बिना लाइन में लगे ही उनका नंबर लगवाकर चले गए.

जिन गार्डों को लाइन को मैनेज करने के लिए सैलरी दी जा रही थी उन्होंने ही पूरी व्यवस्था को हाईजैक करके अपनों को फायदा पहुंचाने का जरिया बना लिया था.

अपनों को फायदा पहुंचाना मानव स्वभाव भी है. सभी अपनों को फायदा पहुंचाना चाहते है. लेकिन अस्पताल की लाइन,जहां लोग अपनी जान बचाने आ रहे हैं, वहां भी लोग सभी नियमों और नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर सबसे पहले अपना नंबर लगाने में जुटे थे.

जैसे-तैसे मेडिसिन ओपीडी की लाइन से गुजरकर ओपीडी तक पहुंचे तो डॉक्टर के कमरे के बाहर लाइन लगी थी. अपना नंबर पहले लगाने के लिए लोगों ने पहले से ही अपने पर्चे डॉक्टर की टेबल पर रख दिए थे. यहां मरीजों को मैनेज करने के लिए कोई गार्ड नहीं था. व्यवस्था संभालने के लिए मरीजों में से ही एक ने लोगों के पहले आओ पहले पाओं के आधार पर नंबर लगा दिए.

रात तीन बजे लाइन में लगने के बाद करीब साढ़े दस बजे हम अपने मरीज को डॉक्टर को दिखा सके. डॉक्टर ने देखकर न्यूरोलॉजी विभाग में रैफर कर दिया. अब न्यूरोलॉजी विभाग में नंबर लगाने की बारी थी. यहां साढ़े 11 बजे कमरा नंबर आठ में बैठने वाले डॉक्टर से मिलने के लिए कहा गया. न्यूरोलॉजी विभाग में कमरा नंबर 8 के बाहर जबरदस्त भीड़ थी.

डॉक्टर के हर कमरे के बाहर इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन लगे हैं जिस पर नए और पुराने मरीजों का नंबर दिखना चाहिए. यह नंबर देखकर मरीज अंदाजा लगा सकता है कि उसकी बारी कितनी देर में आ जाएगी. लाखों रुपये खर्च करके लगाया यह सिस्टम काम नहीं कर रहा था. कमरे के अंदर खड़ा गार्ड हर दस मिनट बाद दरवाजा खोलता और मरीज का नाम लेकर उसे पुकारता. जो नाम नहीं सुन पाया उसका नंबर कट गया. अब उसे दोबारा नंबर लगवाने के लिए फिर से लाइन में लगना होगा. कई मरीज ऐसे थे जिनका जो भीड़ में नाम नहीं सुन पाये या लाइन में खड़े-ख़ड़े थक कर कुछ खाने पीने चले गए थे. इन सबके नंबर कट गए.

नंबर न कट जाए इस डर से एक मरीज के साथ दो-दो, तीन-तीन लोग आए थे ताकि हर वक्त लाइन में कोई न कोई खड़ा रहा. अगर दरवाजे के बाहर लगा इलेक्ट्रानिक सिस्टम सही से काम कर रहा होता तो शायद लाइन में लगने की जरूरत नहीं होती. और अगर लाइन में लगने की जरूरत नहीं होती तो बेकार में तीमारदारों की भीड़ एम्स की व्यवस्था पर बोझ नहीं बन रही होती.

लेकिन जब सिस्टम ही खराब हो तो क्या हो? खैर हमारा नंबर करीब चार बजे आ गया. 11 बजे से चार बजे तक बिना पैर हिलाये डॉक्टर के कमरे के बाहर खड़ा होना पड़ा. न्यूरोलॉजी विभाग में हेल्पडेस्क पर भी सुरक्षा गार्ड ही बैठे थे. एक मरीज को डॉक्टर ने कमरा नंबर 29 में जाने के लिए कहा तो बेचारा हेल्पडेस्क पर पहुंच गया. गार्ड ने उसे यह कहकर टरका दिया कि दोबारा जाकर डॉक्टर से पूछे की कहां है जबकि कमरा नंबर 29 उसकी डेस्क से चंद मीटर दूर ही था. बेचारा मरीज अपने तीन तीमारदारों के साथ फिर से डॉक्टर के कमरे के बाहर पता पूछ रहा था…

खैर…जैसे-तैसे डॉक्टर के कमरे में पहुंचे. पहली बार एम्स के उच्चस्तरीय होने का अहसास हुआ. मरीजों को देख रही डॉक्टर न सिर्फ प्यार से बात कर रही थी बल्कि उनके शब्दों और हाव भाव में चिंता और अपने काम को लेकर गंभीरता थी. लेकिन शायद उन्हें भी यह अंदाजा नहीं था कि उन तक पहुंचने के लिए मरीज किन कष्टों से गुजरा है.

मैं एम्स के डॉक्टरों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहुंगा क्योंकि मैंने सिर्फ एक ही डॉक्टर को मरीजों को देखते हुए देखा और उस एक डॉक्टर के तौर-तरीके और व्यवहार ने मेरा दिल जीत लिया. लेकिन सवाल यह है कि क्या डॉक्टर का व्यवहार या दक्षता उन जख्मों का मरहम हो सकता है जो एक मरीज़ को उन तक पहुंचने के लिए बेवजह खाने पड़ते है?

भर्ती प्रक्रिया पर गार्ड हावी हो गए हैं, हेल्प डेस्क पर अनपढ़ सुरक्षा गार्ड बैठे हैं, मरीजों की संख्या बताने के लिए लगाए गए इलेक्ट्रानिक सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं. कैंटीन में चाय की जगह पानी बिक रहा है. ओपीडी के बाहर गंदगी पसरी है. मरीज को भर्ती कराने के लिए सिफारिश लगानी पड़ती हैं. जहां की बुनियादी सुविधाएं ऐसी हों वहां क्या अच्छे डॉक्टर भी कुछ कर पाएंगे.

एम्स से लौटते वक्त एम्स की छवि तो मेरी नजरों में गिरी ही थी, एक सवाल भी परेशान कर रहा था… कि अस्पताल की लाइन… जहां लोग जान बचाने के लिए लग रहे हैं… उसमें भी इतना भ्रष्टाचार फैला है तो फिर बाकी किसी भी सरकारी दफ्तर में व्यवस्था सही होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है. कम से कम अस्पताल तो भ्रष्टाचार से मुक्त होने ही चाहिए. क्या इसके लिए आमिर खान को सत्यमेव जयते पर एक एपिसोड करना होगा या हम आप ही कुछ करेंगे?

(लेखक दिलनवाज पाशा  dainikbhaskar.com के साथ जुड़े हैं उनसे facebook.com/dilnawazpasha पर संपर्क किया जा सकता है)

TAGGED:एम्सदिलनवाज पाशाभ्रष्टाचार
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?