BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: ज़रा! एक नज़र ईधर भी….
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > ज़रा! एक नज़र ईधर भी….
Latest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

ज़रा! एक नज़र ईधर भी….

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 28, 2012
Share
10 Min Read
SHARE

बीएच न्यूज़ डेस्क

विदेशी अवधारणा के मूल से जन्मे, गैर-सरकारी संगठनों का सेवा की आड़ में धंधा जारी है. सेवा भाव, खास तौर पर निस्वार्थ सेवा का भाव, जो गैर-सरकारी संगठनों का ट्रेडमार्क बन चुका है और इसकी आड़ में अनुदान पाने की होड़ भी बढ़ती जा रही है. दरअसल, समाजसेवा की आड़ में इन्हें अपना धंधा चमकाना होता है, जिसके कारण प्रतिबद्धता के साथ काम करने वाले संगठनों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है. इसलिए सारे गैर-सरकारी संगठनों पर उंगली उठाना दुरूस्त न होगा. हज़ारों छोटे-बड़े ऐसे संगठन हैं, जो हज़ारों लोगों के जीवन में गुणात्मक बदलाव लाने के लिए रात-दिन काम करते हैं, और उनमें से कई को तो कड़ी आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है…

बहरहाल, हमें मतलब उन समाजसेवियों से है, जो दूसरों के लिए पारदर्शिता बहाल करने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन खुद उनके यहां पारदर्शिता नहीं है. पिछले दिनों हमें राय चंदन जी के ब्लॉग ‘लाल बुझक्कड़’ (http://raichandan.blogspot.com) पर जाने का मौका मिला. उनके कुछ पोस्ट गैर-सरकारी संगठनों की एक अलग ही कहानी पेश करती है.

प्राप्त सूचना के मुताबिक इस ब्लॉग के ब्लॉगर, मनीष सिसोदिया के “कबीर” नामक संस्था के कार्यकर्ता थे, और अरविंद केजरीवाल जी के संगठन “पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन” के लिए भी कार्य किया है. पेश है चंदन जी का एक आलेख यहां भी…

लूखा एनजीओ यानी लूटो खाओ एनजीओ

 

बॉस ने पीछे की सीट पर बैठे अपने चेले की ओर इशारा किया. इशारा भी कुछ यूं था जैसे चुटकी से सुर्ती मली हो. अक्सर ऐसा लोग पैसे के बारे में पूछने के लिए करते हैं. चेला भी पक्का शागिर्द था. उसने सहमति में सिर को हल्का सा यूं झटका दिया, जैसे सब समझ गया हो. कहा- हां! जितना कहा था, मिल गया है. गाड़ी अपने रफ्तार में सड़क पर इठलाती चली जा रही थी. खिड़की से बाहर का मनोरम नज़ारा लुभा रहा था. इस बातचीत में हालांकि मैं कहीं शरीक न था, लेकिन ध्यान इस मौन बातचीत की तरफ़ चला ही गया. खैर बताता चलूं कि बॉस राजधानी में एक एनजीओ चला रहे थे और लोगों के बीच उसने अपनी प्रतिभा का लोहा ज़रूर मनवा लिया था. ऐसा लग रहा था मानो ड्राइवर को इन बातों से कोई मतलब ही नहीं. लेकिन वो भी था पूरा घाघ… बेफिक्र की तरह दिखना तो उसका एक छदम आवरण भर था.

अब बिना भूमिका के बात पर आना ही ज्यादा उचित होगा. तो इस एनजीओ के कर्ताधर्ता हैं हमारे आज के नायक, जो कभी मीडिया में नुमाया हुआ करते थे. किसी ने सलाह दी कि भई कब तक केवल टीवी में चेहरा ही दिखाते रहोगे, या फिर पैसे भी बनाओगे. बात इन महोदय को जंच गई.

अगले ही दिन लोगों ने देखा कि उनकी उठ-बैठ एक पक्के समाजसेवक के घर होने लगी. फिर एक स्वामिभक्त लोगों की टीम भी तो खड़ी करनी थी, जिनमें मिशन का जज्बा कूट-कूट कर भरा हो. एनजीओ के लिए विदेशी रक़म का इंतजाम भी हो गया था. यों भी दरो-दीवार तो लोगों ने खड़ी की है. पैसे का तो एक ही रंग होता है, अंतर होता है तो बस इतना कि कहीं गांधी की तस्वीर छपी होती है, तो कहीं चर्चिल की.

खैर मुददे की बात की जाए, वरना भाई लोग कम्यूनिस्ट ठहरा कर भद्दी सी गाली निकाल सकते हैं. हुआ यूं कि एक दिन ऑफिस एकाउन्टेन्ट को किसी बात पर झगड़ते देखा. बहस का मुददा यूं था कि बॉस ने जो हजामत कराई है, उसका पैसा एकाउन्ट में भला क्यों न जोड़ा जाए. आखिर हजामत का मक़सद कहीं गरीबों को उपर उठाना ही तो है.

भई टेलीविजन पर उन दुखियारों की बात करनी है, तो कम से कम चेहरा तो ग़रीब टाइप का न दिखे ना. तो भला हजामत का पैसा भी तो एकाउन्ट में जुड़ना ही चाहिए. खैर एकाउन्टेन्ट की मजबूरी समझ से परे नहीं थी. एक तो मंदी का असर, दूजे गरीबी के कारण पढ़ाई भी बीच में छोड़ने के दुख से वो लाचार था, ऐसे ही लोगों की तलाश तो बॉस को हमेशा होती है, जो उजबक की तरह बस समय-समय पर गरदन हिलाता रहे और शुतुरमुर्ग की तरह डांट खाने पर गर्दन फर्श में गड़ा ले. तो बॉस के अश्लील इशारे पर बात हो रही थी.

गांव में आम सभा होनी थी. गांव के गरीब-गुरबे सुबह से ही इंतजार में थे. महोदय एक लंबी एसी गाड़ी से उतरे. लोगों पर यूं नजरें बिखेरी जैसे कोई एहसान किया हो. मंच पर स्वागत के लिए कुछ लोग दौड़ ही तो पड़े थे. एक लंबे रटे-रटाए भाषण के बाद, जो अक्सर वो सभाओं में दिया करते थे, के बाद नारेबाजी शुरू हुई.

आयोजक परेशान सा दौड़ा-दौड़ा मेरे पास आया. भई साहब, आप तो साथ में ही आए हो ना. बताओे, कितने पैसे देने हैं. मैं हक्का-बक्का सा उसके मुंह की ओर देखने लगा. भई, मुझे तो मालूम नहीं- बस इतना ही मुंह से निकला होगा. हालांकि इसके लिए मुझे हल्की सी झाड़ भी सुननी पड़ी. आता हुआ पैसा, जो दूर जा रहा था. अंत में बॉस ने अपने विश्वसनीय सिपाहसलार को आगे खड़ा किया, जिसने पूरे काईंयापन के साथ उन मासूमों से वसूली की. तो ये इशारा उस पैसे के बारे में ही किया गया था, जो ड्राइवर को देनी थी और जिसकी रक़म एक बार बॉस एकाउन्ट में भी चढ़ा चुके थे. तो हुआ ना दोनों हाथ में लडडू…

अपने बॉस तो ऐसे ही थे. लक्ष्मी की भी विशेष कृपा उन पर बनी रही. देखते- देखते राजधानी में दो फ्लैट के मालिक बन चुके थे. एक में खुद रहते थे और दूसरे को किराए पर उठा रखा था. किसी और को नहीं, अपने को ही. इसके बदले एक मोटी रकम एकाउन्ट में ट्रांसफर हो जाती थी. गोरा-चिटटा चेहरा, मॉडर्न लुक और आदर्शवाद का मुलम्मा लगा हो, तो लड़कियां तो फिदा होंगी ही. सो आज कल उनका दिल भी किसी और पर आया था. गाहे-बगाहे वो अपने शौक़ का इज़हार भर करते रहते थे. पर हाय री किस्मत, निगोड़े समाज सेवक का मुखौटा जो लगा चुके थे.

खैर दबा-छुपा ये रोमांस ऑफिस की फिजाओं में भी दिखने लगा था. आज-कल वे किसी यंगकमर्स पर फिदा थे. लैपटाप के साथ ऑफिस के कोने-कतरे में नज़र आने लगे थे. उनकी चौकस निगाहें हर वक्त उसी का पीछा करती. आजकल बॉस की इन हरकतों से चमचों में हड़कंप मची थी. बॉस की इन हरकतों से उनकी चमचागिरी पर संदेह का साया जो लहराने लगा था. अब हनुमान की तरह दिल चीरकर अपनी भक्ति तो दिखाने से रहे. खैर, कुछ ना कुछ तो करना ही था. सो यहां चमचागिरी का स्तर और तेज हो गया था.

अब होड़ किसी लड़के से हो तो, बात समझ में आती है. मामला किसी विपरीत लिंगी का हो, तो भला किया क्या जाए. आपातकाल मीटिंग होने लगी. लोगों में राय-विमर्श कर मामले को अनिश्चितकाल के लिए टालना ही उचित समझा. उड़ते-उड़ते बात मेरे तक पहुंची. एक अपना दुखड़ा यों बयान कर रहा था-क्या करें यार, आज-कल बॉस मुझसे ख़फा-ख़फा से रहते हैं. ढ़ंग से बात भी नहीं करते. कुछ ऐसी ही चर्चाएं यहां की फिजाओं में तारी रहती थी.

तो सबकुछ पर्दे के पीछे चल रहा था. बॉस को भी इसकी भनक लग चुकी थी. एक दिन कुछ हुआ यूं कि बॉस के एक चहेते को आकाशवाणी हुई भई, अब तुम भी पैसे बढ़ाने की जुगत करो. खर्च तो इतने में चलने से रहा. हालांकि सैलेरी किसी संस्थान से ज्यादा ही पाते रहे. तो हुआ यूं कि अब वे अपनी सभी घरेलू समस्याओं का जिक्र अकेले में बॉस से करने से नहीं चूकते. मौका मिलते ही दिल का दर्द लेकर बैठ जाते. बॉस को भी एहसास हो चला था कि अकेले लूटने-खाने में एक दो लोगों को शामिल करना अब ज़रूरी हो गया है. होता ये है कि कोई विदेशी फर्म जब किसी प्रोजेक्ट के लिए एनजीओ को रक़म देती है, तो सालाना उसका हिसाब भी देना होता है. तो जितनी मोटी रक़म आप एकाउन्टेन्ट के साथ मिलकर उड़ा सकते हो उड़ा लो. बाकि की रक़म वापस करनी होती है. इसी पैसे पर सबों की नज़रें गड़ी थी, जिसे लोग सैलरी के नाम पर लूटना चाह रहे थे. तो यही खुल्ला खेल फरूखाबादी चल रहा

TAGGED:ज़रा! एक नज़र ईधर भी....
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?