BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: मुझे भी उतना ही अधिकार है!
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Education > मुझे भी उतना ही अधिकार है!
EducationLatest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

मुझे भी उतना ही अधिकार है!

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published October 14, 2012 3 Views
Share
12 Min Read
SHARE

Abdul Hafiz Gandhi for BeyondHeadlines

भारत के मुसलमानों में अब शिक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं, बल्कि लड़कों की शिक्षा को लेकर घर में सभी लोग चिंतित भी रहने लगे हैं. लेकिन अभी भी जितनी कोशिशें लड़कियों की शिक्षा के लिए होनी चाहिए थी, वह नहीं हो सकी हैं. क्योंकि हम अभी तक यह नहीं समझ पाएं हैं कि लड़कियों की शिक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी लड़कों की.

हालांकि कुछ मायनों में तो लड़कियों की शिक्षा लड़कों की शिक्षा अधिक महत्व रखती है. लड़के की शिक्षा से एक घर रौशन होता है, लेकिन लड़की की शिक्षा से दो घरों के हालात सुधरते हैं. एक घर जहां वो बचपन से रहती है और दूसरा वो जहां शादी के बाद जाना होता है. इतना ही नहीं, लड़कियों की शिक्षा से समाज को बहुत लाभ होता है. हम जानते हैं कि माँ की गोद बच्चे का पहला स्कूल होता है, इसलिए माँ का पढ़ा-लिखा होना बहुत ज़रूरी है. और वैसे भी कोई समाज आधी आबादी को शिक्षा से दूर रखकर विकास का सपना नहीं देख सकता.

इस्लाम में शिक्षा के मामले में लड़के और लड़कियों में कोई अंतर नहीं है, पर हमारे समाज में लड़कियों की शिक्षा की चिंता कम देखने को मिलती है. अक्सर सुनने को मिल जाएगा कि बेटी को तो पराये घर जाना है, उसे शिक्षित करके क्या फायदा? उसे तो घर में चौका-बर्तन करना है तो पढ़ाई लिखाई की क्या ज़रूरत है? लोग ऐसा भी कहते मिल जाएंगे कि लड़की को अधिक पढ़ाने से शादी के लिए लड़के की तलाश मुश्किल हो जाती है. पर यहां सवाल उठता है कि समाज में मौजूदा कमियों का हवाला दे कर हम कब तक लड़कियों के साथ अन्याय करते रहेंगे? कब तक इस तरह लड़कियों को पढ़ाई से रोका जाता रहेगा?

सच्चर कमेटी के आंकड़ों बताते हैं कि 12 वीं श्रेणी में लड़कियों का लड़कों की तुलना में अच्छे परिणाम हैं. इसी रिपोर्ट के अनुसार उर्दू और अन्य मीडियम में लड़कियों का  परफॉर्मेंस लड़कों से बेहतर है. जब लड़कियों में लड़कों से अधिक सलाहियत नज़र आती है तो क्यों नहीं हम उनकी शिक्षा की ओर अपना ध्यान देते हैं?

मैं मानता हूँ कि माँ बाप के दिलों में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल हैं और कुछ हद तक यह जायज़ भी है. लेकिन हर जगह तो सुरक्षा का सवाल नहीं है. शहरों और छोटे-बड़े मुहल्लों में अब तो शिक्षा के कुछ बेहतर व्यवस्था हो गई हैं, लेकिन फिर भी ऐसा क्या है कि हम अपनी बच्चियों को शिक्षण संस्थानों तक नहीं भेजते? इसका मतलब तो यही हुआ कि कहीं न कहीं हमारी सोच लड़कियों की शिक्षा में आड़े आ रही है. यदि ऐसा नहीं है तो क्यों आज भी हमारी आधी आबादी कही जाने वाली यह वर्ग शिक्षा से कोसों दूर है? और यह सब तब हो रहा जब इस्लाम में शिक्षा पर पूरा ज़ोर दिया गया है.

एक हदीस है जिसका अर्थ है कि “शिक्षा प्राप्त करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फर्ज़ है.” [Seeking knowledge is a duty of every Muslim, man or woman. (Al-Tirmidhi Hadith 218)]. एक और हदीस है जिसका अर्थ है कि “अगर किसी के यहाँ लड़की पैदा होती है और वह पालन-पोषण करता है और अच्छी शिक्षा देता है तो उस आदमी को नरक की आग से बचाया जाएगा.” [If a daughter is born to a person and he brings her up, gives her a good education and trains her in the arts of life, I shall myself stand between him and hell-fire. (Kanz al-Ummal, reported by Abdullah ibn Mas’ud)] दोनों हदीसों से पता चलता है कि लड़कियों की शिक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी लड़कों की.

इस्लामी इतिहास में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं पर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाई गई. हज़रत ख़दीजा, जो अंतिम रसूल (सल्ल.) की पहली पत्नी थीं, उनका काम ही व्यापार करना था. हज़रत आइशा पैग़म्बर साहब की बहुत करीबी सलाहकार थीं. यह भी देखने को मिलता है कि महिलाओं को युद्ध में जाने की अनुमति थी. इस्लाम में औरत को राजनीतिक पदों पर चुने जाने का भी अधिकार था. उदाहरण के लिए देखें तो दूसरे खलीफा हज़रत उमर ने तो बाज़ार की निगरानी के लिए एक औरत को इस पद पर चुना था. हज़रत उमर के दौर में महिलाएं तो कानून-साज़ी में भाग लेती थीं. एक बार हज़रत उमर ने किसी कानून का प्रस्ताव रखा तो मस्जिद में एक महिला ने कहा उमर तुम यह नहीं कर सकते. हज़रत उमर ने उससे पूछा- क्यों? इस औरत ने सब के सामने अपना जवाब कुरान की रोशनी में दिया. हज़रत उमर खड़े हुए और कहा कि यह औरत सही कह रही है और उन्होंने अपना मसौदा वापस ले लिया. इस्लामिक इतिहास में महिलाओं ने काफी अहम भूमिका निभाई हैं.  यही नहीं, इमाम शाफ़ई, जिन्होंने अपने अलग इस्लामी स्कूल की शुरूआत की, उन्होंने कई शिक्षाएं नफ़ीसा बिन्ते अल हसन (824 AD) से प्राप्त की. शोहदा बिन्ते अबी नस्र (1178 A.D) अपने ज़माने की मशहूर स्कोलर थी, जो बगदाद की मस्जिद में लोगों से अक्सर अलग-अलग मुद्दों पर संबोधित किया करती थीं. इस्लामी स्कोलर हाफ़िज़ इब्ने असाकर (1175 A. D.) शोहदा बिन्ते अबी नस्र के छात्र थे.

इमाम बुखारी ने भी अपने जोड़ में महिला को बैठने की कुछ शर्तों पर अनुमति दी थी. इस्लामिक इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां महिलाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में कई अहम क़दम उठाएं. ग़ाजी सलाहुद्दीन अय्यूबी (1193 A.D) की बहन ज़म्मरद और भतीजी उज़रा ने दो अलग अलग मदरसों को स्थापित किया. इसी तरह मोरक्को में फ़ातिमा बिन्ते मोहम्मद अल फहरी ने Al Karaouine University (859 AD) को स्थापित किया. यह जामिया इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड और मिस्र के अल-अजहर विश्वविद्यालय से भी काफी पुरानी है. Al-Karaouine University में बहुत बड़ी लाइब्रेरी बनाई, जो आज भी है. इस जामिया में अफ्रीकी देशों से छात्र काफी संख्या में लाभवंतित होने आते हैं.

भारत में रज़िया सुल्तान (1240 AD) ने दो मदरसों को बनाया- मोज्जिया और नसीरिया. सुल्तान मोहम्मद शाह तुग़लक (1351 AD) के दौर में दिल्ली में काफी मदरसों थे, जिनमें कई लड़कियों की शिक्षा के लिए भी थे. इन सबसे ज़ाहिर होता है कि पहले मुस्लिम समाज  महिलाओं की शिक्षा के बारे में कुछ हद तक चिंतित था. लेकिन समय के साथ-साथ महिलाएं चार-दिवारी में बंद होती चली गईं. ऐसा लगता है कि शिक्षा तो केवल लड़कों के लिए ही है और लड़कियों का दायरा केवल घर व चूल्हा-बर्तन है.

यह हमें कब समझ आएगा कि औरत और आदमी चक्र के दो पहियों की तरह हैं. एक भी कमजोर और खराब होने से साइकिल चरमरा जाएगी और गति धीमी होगी या एकदम से रुक जाएगी.

मैंने उपर जो महिलाओं के कुछ उदाहरण दिए हैं, वह अब इतिहास के पन्नों में दफ़न है. हमें उनसे सबक़ ज़रूर लेनी चाहिए. लेकिन कब तक हम इन उदाहरणों को समाज को बताते रहेंगे? क्यों नहीं आज हम नई उदाहरण पैदा करते? हालात यह है कि पहले तो हम लड़कियों को स्कूल भेजते ही नहीं और अगर भेजते भी हैं तो निचले स्तर के स्कूलों में भेजते हैं. यह कैसा अन्याय है कि लड़का तो अच्छा और अंग्रेजी मीडियम से पढ़ें और लड़की को हम ऐसे-वैसे स्कूल में प्रवेश कराएं? वह समाज कभी विकसित नहीं हो सकता जो महिलाओं को उनके जायज़ अधिकार नहीं देता. इस्लाम तो पढ़ाई में बराबर की हिस्सेदारी की बात करता है. लेकिन अफसोस की बात है कि  हम इनको अनदेखा कर सिर्फ अपने हित और संकीर्ण मानसिकता के कारण लड़कियों को अच्छी शिक्षा से दूर रख रहे हैं.

होना तो यह चाहिए था कि आज लड़कियां जीवन के हर क्षेत्र में अपना नाम कर रही होती. मुस्लिम समाज कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, छवि रजावत (जो एमबीए करने के बाद गांव के सरपंच बनी), जस्टिस बीवी फातिमा आदि कहाँ हैं?

समस्या तो यह है कि कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती हैं, जिससे उनकी शिक्षा में बाधा आती है. इसलिए मुस्लिम समाज में यह सोच भी बनना चाहिए कि लड़कियों की शादी कम से कम 20 साल की उम्र से पहले नहीं करेंगे. यदि ऐसा होता है तो जो लड़कियां अपनी शिक्षा और कैरियर को लेकर सिरियस हैं, वो अपनी पढ़ाई सही से पूरी कर पाएंगी.

अब सवाल उठता है कि स्थिति को बेहतर करने के लिए क्या करना चाहिए? पहली कोशिश तो यह होना चाहिए कि जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक के लोग रहते हैं वहां समाज के लोग खुद आधुनिक और अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए मॉडर्न शैक्षणिक संस्थान खोलें. इससे समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा होगी. जब अच्छे छात्र यहां से निकलेंगे तो हर क्षेत्र में कम्पीटिशन का सामना कर सकते हैं. इन मॉडर्न शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए आरक्षण रखा जाए ताकि कम से कम 30 प्रतिशत लड़कियों का प्रवेश इन संस्थाओं में होना आवश्यक है. दूसरा यह कि सरकार से अपील की जाए कि कम से कम एक गर्ल्स सेंट्रल यूनिवर्सिटी हर राज्य में बने और हर जिले में कम से कम एक गर्ल्स कॉलेज हो. सरकार की ओर से लड़कियों के लिए हर स्तर पर वजीफा देने की योजना होनी चाहिए. जिससे कि मां-बाप को लड़कियों की शिक्षा पर खर्च ज़्यादा न करना पड़े और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमारे समाज को लड़कियों की शिक्षा के बारे में बनी हुई सोच को बदलने की जरूरत है. दक्षिण भारतीय लोग लड़कियों की शिक्षा की ओर बहुत ध्यान दे रहे हैं, ज़रूरत उत्तर भारत में भी उनकी शिक्षा के लिए माहौल और रिसोर्स पैदा करने की है. उम्मीद है कि मुसलमानों के सियासी व मिल्ली रहनुमा इस ओर ज़रूर कुछ ध्यान देंगे.

(लेखक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कोलर और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं. उनसे abdulhafizgandhi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है).

TAGGED:GIRLS EDUCATION
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

EducationIndiaYoung Indian

30 Muslim Candidates Selected in UPSC, List is here…

May 8, 2025
Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?