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BeyondHeadlines > India > सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है…
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सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published November 8, 2012
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9 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बीते रविवार की गतिविधियां अभी तक अखबारों में सुर्खियां बन रही हैं. पटना के गांधी मैदान में नीतीश कुमार ने दहाड़कर अपना अधिकार केंद्र सरकार से मांगा तो दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस पार्टी ने अपना शक्ति प्रदर्शन कर खुद को आम आदमी की पार्टी बताने की कोशिश की. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के भाषण पर तो अखबारों में संपादकीय तक लिखे गए. लेकिन इसी रविवार दिल्ली में एक और प्रयास हुआ जिसके बारे में भी आपको जानना चाहिए ताकि देश में इंसानी हकूकों की रक्षा हो सके.

दिल्ली के मालवंकर हॉल में  ‘पीपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर’ की ओर से जन सुनवाई का आयोजन किया गया. हॉल जितने लोगों को समा सकता था उससे ज्यादा बाहर खड़े थे. आमतौर पर जहां इतनी भीड़ होती हैं वहां शोरगुल भी होता है. लेकिन यहां तस्वीर अलग थी. आतंक के नाम पर जेल पहुंचे लोगों के परिजनों की दिल दहला देने वाली दास्तानों ने ऐसे सवाल खड़ किए कि चारों ओर खामोशी पसर गई.

लोग मंच पर लगे गांधी, बाबा अम्बेडकर साहब, लोहिया, हसरत मोहानी और ज़ाकिर हुसैन तस्वीरों को ग़ौर से देख रहे थे. दिवारों पर लगे महात्मा गांधी, भगत सिंह, सर सैय्यद अहमद खां आदि की बातें दिलों में और भी हैसला देने का काम कर रहे थे. इप्टा व अस्मिता के कलाकारों ने दुष्यंत कुमार की कविता “हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए….”  और फ़ैज़ की नज़्म “लाज़िम है कि हम भी देखेंगे” गाकर बदलाव का पैगाम देने की कोशिश की. 

प्रोग्राम तय समय पर शुरू हुआ था. एक के बाद एक नेता स्टेज की शोभा बढ़ाने लगे. वो नेता भी स्टेज पर नज़र आएं जिन्हें रामलीला मैदान में होना चाहिए था. बहरहाल, इंतज़ार की घड़ी खत्म हुई, और उन लोगों के बोलने का वक़्त आ गया, जिन्हें सुनने के लिए हम इस प्रोग्राम में गए थे.

सबसे पहले ‘पीपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर’ के मुहिम के मक़सद को लोगों के सामने रखते हुए सीपीआई के अतुल कुमार अंजान ने कहा,  ‘हम कसाब या अफ़ज़ल गुरू की हिमायत नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम बात कर रहे हैं आमिर जैसे बेगुनाहों की जो 14 साल तक अपनी जेलों में अपनी बेगुनाही का सज़ा काटता है. आतंकवाद से निपटने के नाम पर राज्य की संपत्तियों का खूब दुरूपयोग हो रहा है. बेगुनाहों की गिरफ्तारी का यह सवाल सिर्फ मुसलमानों का नहीं, बल्कि यह देश का सवाल है. हमारी यह मुहिम देश में होने वाले हर ज़ुल्म के खिलाफ तब तक चलती रहेगी जब तक कि इंसाफ नहीं मिल जाता.’

कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर अपनी ही पार्टी पर गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा, ‘अगर हमें इस मुल्क को गांधीवादी मुल्क बनाना है तो सरकार को यह दिखाना होगा कि वो सबके लिए बराबर है. हर हम मुल्क में होने वाले प्रशासनिक ज़ुल्म को नहीं रोक सकते तो हमारा सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है.’ तो लालू कहते हैं कि “मुस्लिम युवकों के लिए हालात दिन प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं. देश की खुफिया एजेंसियां उत्तर प्रदेश के बाद बिहार के मुस्लिम युवाओं को टारगेट कर रही हैं. बिहार सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा से कई बेगुनाहों की गिरफ्तारियां की गई हैं और नीतीश सरकार खामोश बैठी है. अब हमें इस ज़ुल्म के खिलाफ सड़कों पर उतरना होगा, गांधी मैदान व रामलीला मैदान में आंदोलन करना होगा और हम हमेशा आपके साथ हैं.”

वहीं रामविलास पासवान का कहना है कि  “ये कितना अजीब है भाजपा के बेईमान लोग पाकिस्तान से आकर देशभक्ति की बात करते हैं. जब इस देश में सीमी पर पाबंदी लगाई गई है तो फिर आरएसएस व उसके दूसरे संस्थाओं पर क्यों नहीं? आरएसएस ट्रांसमीटर है और बाकी सब इसके चैनल हैं. आरएसएस पर पाबंदी लगना ही चाहिए. ये गांधी के हत्यारे हैं. हमें एक मिशन के तौर पर इस मुहिम को आगे ले जाना होगा.” सीपीएम के एबी बर्धन मानते हैं कि “इंसाफ की यह लड़ाई आसान नहीं है, इसके लिए लगातार संघर्ष की ज़रूरत है. सड़क पर लड़ाई के साथ-साथ कानूनी लड़ाई भी ज़रूरी है और इसके लिए हमारी पार्टी बेगुनाहों के साथ है.”

राज्यसभा सांसद मो. अदीब बताते हैं कि “जिस मुल्क में अदालतें 10-12 सालों के बाद अपना फैसला सुनाए, पुलिस बेगुनाहों पर ज़ुल्म करे और सरकार गुंगी व बहरी बने तमाशा देखे तो फिर यह मुल्क कैसे चलेगा? आखिर इस मुल्क में मुसलमानों को इंसाफ कौन देगा?” उन्होंने देश के समस्त सेकूलर सियासी व समाजिक पार्टियों से अपील की कि वो इस मामले में साथ खड़ी हों ताकि मुल्क के एक तबके पर जो सरकारी ज़ुल्म हो रहा है उस पर रोक लग सके.सी.के. ज़ाफर शरीफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सू-मोटो लेना चाहिए. वहीं प्रकाश करात ने आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर मुसलमानों की गिरफ्तारी को ‘पनौती’ क़रार दिया.

इस तरह एक के एक बाद सारे वक्ताओं ने अपनी बातों को लोगों के सामने रखा. हमेशा की तरह इन नेताओं की बातों में देश के समस्त सेकूलर लोगों को एकजूट होने का संदेश तो हमेशा की तरह कुछ वायदे भी. अब देखना यह है कि इन वायदों का क्या होता है? क्या यह नेता बेगुनाह लोगों की गिरफ्तारी के मामले पर संसद में बोलने की हिम्मत करेंगे, यह तो आने वाला संसद सत्र ही बताएगा.

पर स्पष्ट रहे कि पिछले कुछ सालों में भारत में हजारों नागरिकों को आतंकवाद और देशद्रोह के झूठे मामलों में फंसाने में सरकार और प्रशासन की भूमिका के मामले सामने आए हैं. न्यायपालिका में बेगुनाह मुसलमान युवाओं को फर्जी मामलों में फंसाने के सैंकड़ों मामले पहुंचे हैं और पुलिस का चेहरा खुलकर सामने आ गया है.

यह बात शक से परे साबित हो चुकी है कि भारत में पुलिस और जांच एजेंसियां पिछले कई सालों से नागरिकों को डराकर उन पर अत्याचार करने की एक योजनागत मुहिम चला रही हैं. फर्जी मामलों में फंसाकर लोगों को उनके परिवार, ज़मीन, समुदाय और समाज से दूर किया जा रहा है. इसका एक उद्देश्य एक खास समुदाय, जिस पर आतंक से जुड़े होने का झूठा ठप्पा लगाया गया है, पर आतंकवाद के ठप्पे को चिपकाए रखना भी है.

न्यायपालिका द्वारा पुलिस को ऐसे प्रकरणों में ढील देने ने पीड़ित परिवारों की पीड़ा को और भी बढ़ा दिया है. पुलिस के इस कुकृत्य का न्यायपालिका भी मौन समर्थन कर रही है जिस कारण कई निर्दोषों को सालों तक जेल की यातना सहनी पड़ रही है. परिवार के परिवार फर्जी मामलों के कारण बर्बाद हो रहे हैं. वक्त की ज़रूरत यह है कि पुलिस और सरकार के जघन्य कृत्यों पर न सिर्फ नज़र रखी जाए बल्कि उन्हें गैर-कानूनी रूप से फर्जी मामलों में नागरिकों के फंसाने के लिए जिम्मेदार भी ठहराया जाए. ‘पीपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर’ ने इस अवसर पर सरकार के समक्ष अपनी एक मांग-पत्र भी जारी किया. अब देखना यह है कि सरकार इन बड़े व सेकूलर नेताओं के ज़रिए रखी गई मांगों को भविष्य में मानती है या नहीं?

TAGGED:2nd NATIONAL CONVENTION on POLITICS OF TERROR: TARGETTING MUSLIM YOUTHPeople’s campaign against politics of terrorPolitics of Terror: Targeting Muslim YouthsTerrorterrorism
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