भदरसा साम्प्रदायिक हिंसा : दो हफ्ते बाद भी दर्ज नहीं हुई एफआईआर

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BeyondHeadlines News Desk

फैजाबाद:  रिहाई मंच के जांचदल ने दशहरा के दौरान हुई साम्प्रदायिक हिंसा से प्रभावित भदरसा गांव का दौरा किया. जांच दल ने पाया कि भदरसा में हुई हिंसा पूरी तरह सुनियोजित थी, जिसे साम्प्रदायिक तत्वों और प्रशासन की मिली-भगत से अंजाम दिया गया, जिसमें मीडिया की भूमिका भी संदिग्ध थी.

जांच दल ने यह भी पाया कि प्रशासन की तरफ से आगजनी से पीडित परिवारों से घटना के साक्ष्य जबरन मिटवाए जा रहे हैं. जबकि पीडि़तों को न तो उचित मुआवजा मिला है और ना ही एफआईआर दर्ज किये गये हैं. जांच दल ने प्रेस काउंसिल द्वारा गठित शीतला सिंह जांच आयोग से भी भदरसा जाने की मांग की है.

रिहाई मंच ने भदरसा के अपने दौरे में पाया कि 24 और 26 अक्टूबर की देर शाम को हजारों की संख्या में दंगाईयों ने भदरसा स्थित मुस्लिम कस्बे को चारों ओर से घेर लिया और उत्तेजक नारों के साथ हमला करते हुए आगजनी और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिया. जिसमें सौ से अधिक जले घरों की पुष्टि हुई है. हमला इस क़दर प्रायोजित था कि दंगाई मुस्लिमों की बस्ती को जलाने के लिये पेट्रोल बम भी साथ ले कर के आए थे.

जांच दल को स्थानीय निवासियों ने दबी जुबान में बताया कि दंगे से पूर्व अधिकारियों और पुलिस वालों ने भदरसा के चारों कोटेदारों से भारी मात्रा में केरोसिन तेल थाने पहंुचाने का आदेश दिया. उधर स्थानीय मीडिया विनय कटियार जैसे नेताओं के हवाले से यह खबर प्रचारित कर रही थी कि प्रत्येक मुसलमान के घर पांच-पांच लीटर तेल बांटे गये. जिस कहानी को पुलिस भी मान रही है और सिर्फ मुसलमानों को गिरफ्तार कर रही है.

अब सवाल खड़ा होता है कि मुसलमान दंगों में शामिल थे तो बडे पैमाने पर सिर्फ उन्हीं के घर क्यों जले?  जांच दल ने पाया कि मुस्लिमों के घरों को पूरी तरह जलाने के लिये उनके बिस्तरों और कपड़ों का भी इस्तेमाल किया, जिसकी मौके पर जाकर शिनाख्त की गयी. जांच दल ने यह भी पाया कि इस पूरी घटना के दौरान पीएसी दंगाईयों के पक्ष में मूक दर्शक बनी रही. घटना के बाद जब पीडि़त परिवारों ने प्रार्थमिकी देने की कोशिश की तो उन्हें भगा दिया गया और कहा गया कि प्राथमिकी तभी दर्ज होगी जब इसमें से प्रशासन के उपर लगाए आरोपों को हटा लिया जाएगा.

उधर जांच दल ने पाया कि पूरी तरह से जल चुके मुस्लिम घरों वाले इस मुहल्ले में आगजनी और हमलों के साक्ष्यों को मिटाने के लिये प्रशासनिक अमले के इशारे पर फत्तेपुर के ग्राम प्रधान पतिराम ने पुलिस के सहयोग से जबरिया मलवे को हटावाने के लिये लोगों पर दबाव डाला. जांच दल ने यह भी पाया कि स्थानीय लेखपाल राजेश कुमार सिंह ने मुआवजा निर्धारण करने की प्रक्रिया में भारी अनियमितता बरती है. इस हिंसा में जिन लोगों की कई लाख रूपये का नुक़सान हुआ उन्हें चंद हजार रूपये बतौर राहत दिया गया. साथ ही जो गरीब, विधवा और पूरी तरह निराश्रित थे, उन्हें मुआवजे के योग्य ही नहीं समझा गया.

लेखपाल ने साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर मुआवजे से वंचित रह गये लोगों से यह भी कहा कि आप को अपने जान-माल की सुरक्षा स्वयं करनी चाहिए थी. जांच दल ने पाया कि फैजाबाद के तर्ज पर ही भदरसा में भी राहत और बचाव दल को तय समय पर पहुंचने से रोकने की सचेत कोशिश के तहत फायर ब्रिगेड, पुलिस की जीप और परिवहन विभाग के एक बस को फूंक दिया गया.

साजिश का पता इस बात से भी चलता है कि अव्वल तो फायर ब्रिगेड पहंचे ही नहीं और पहुंचे भी तो उनके पास पानी ही नहीं था. अर्ध सैन्य बल और पुलिस के आला अधिकारियों का भदरसा मौके पर न पहुंचना भी प्रशासनिक भूमिका को संदिग्ध बनाती है. जबकि भदरसा फैजाबाद मुख्यालय से मात्र 17 किलामीटर दूरी पर स्थित है. जांच दल ने यह भी सवाल उठाया कि 24 अक्टूबर के साम्प्रदायिक हिंसा के बाद 25 अक्टूबर को तो शांति बनी रही लेकिन फिर 26 तारीख को और भी बडे पैमाने पर हिंसा कैसे हो गयी. जबकि 24 की हिंसा के बाद ही उसे मुस्तैद हो जाना चाहिये था.

जांच बल ने पाया कि भदरसा के पूर्व चेयरमैन और भाजपा नेता रामबोध सोनी, भोला मास्टर, व्यापार मंडल के अध्यक्ष दयालू, विरेंद्र हलवाई, जगदम्बा प्रसाद, सुरेंद्र मौर्या, नयिकापुर के प्रधान गोपीनाथ उर्फ गुप्पी, प्रधान बाबूलाल यादव और उनके दो लड़कों के साथ केशवपुर, राजेपुर, बनईयापुर, केवटहिया, निमोलिया, लालपुर आदि गांव के हजारों लोग इस सुनियोजित दंगे में शामिल रहे. पुलिस की साम्प्रदायिक कार्यप्रणाली को समझने के लिये अभियुक्त बनाए गये 75 वर्षीय हाजी इफ्तेखार के उपर दर्ज हत्या का आरोप ही काफी होगा. वे लकवाग्रस्त हैं और उनके अंग भी ठीक से काम नहीं कर पाते हैं. जिन बीड़ी मजदूरों के घर साम्प्रदायिक हिंसा की भेंट चढ गये पुलिस ने उन्हीं लोगों को बंदूकों के बट से पीटा. महिलाओं के साथ अभद्रता की और उन्हीं के घरों के बच्चों को गिरफ्तार करके भी ले गई. यहां तक कि आकिब जैसे 14 साल के नाबालिग बच्चे को भी पुलिस ने नहीं छोडा और दंगाई बता कर जेल में डाल दिया.

रिहाई मंच ने अपनी जांच में मिले तथ्यों के आधार पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा गठित शीतला सिंह जांच आयोग से मांग की है कि भदरसा के मुद्दे पर स्थानीय मीडिया द्वारा एक पखवाडे तक भ्रम की स्थिति बनाए रखने वाली रिर्पोटिंग पर कार्यवाई करें. और स्वयं प्रभावित इलाके का दौरा करें क्योंकि वहां इस क़दर दहशत व्याप्त है कि लोग अभी भी अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

रिहाई मंच ने आरोप लगाया कि साम्प्रदायिक हिंसा में बडे पैमाने पर शामिल रहने के बावजूद हिंदु अभियुक्तों के नाम अख़बारों में नहीं प्रकाशित किये जा रहे हैं, जबकि चंद मुस्लिम अभियुक्तों के नाम बार-बार छाप कर के मुसलमानों के खिलाफ़ माहौल बनाने में मीडिया लगी है.

जांच दल में संजरपुर, आजमगढ़ से आए मसीहुद्दीन संजरी, गुलाम रसूल, सर्फुद्दीन, मोहम्मद हारून, शाह आलम, राजीव यादव, अनुज शुक्ला, आफाक अहमद और शाहनवाज आलम शामिल थे.

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