चार रुपये में तो मेरी सिगरेट भी नहीं आती!

Beyond Headlines
4 Min Read

Talha Abid for BeyondHeadlines

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने शनिवार को अन्न श्री योजना की शुरुआत की. जिसके तहत दिल्ली के 25 लाख लोगों को खाद्य सब्सिडी दी जाएगी. इस में गरीबी रेखा के नीचे ज़िन्दगी बसर कर रहे 5 लोगों के परिवार को 600 रुपये की नक़द सब्सिडी दी जाएगी, जो कि परिवार की महिला सदस्य के खाते मे भेजा जायेगा.

लेकिन ज़रा आप एक पल के लिए सोचिए! क्या ये सब्सिडी ग़रीब परिवार को राहत पंहुचा पायेगी? महंगाई के इस दौर में क्या एक 5 लोगों का परिवार 600 रुपये में अपना महीने भर का खर्च चला पायेगा? 600 रूपये महीने में से अगर दिन का हिसाब निकाले तो एक दिन में 20 रूपये होता है. यानी एक आदमी पर 4 रूपये प्रतिदिन की सब्सिडी सरकार देने जा रही है. अब ज़रा आगे सोचिए कि आम तौर पर आदमी एक दिन में तीन बार भोजन लेता है, तो एक वक़्त का हिसाब एक आदमी पर तकरीबन 2 रूपये होता है. सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में रहने वाला कोई व्यक्ति अपना पेट सिर्फ 2 रुपये में भर सकता है? आप कहेंगे की दिल्ली क्या देश और दुनिया के किसी कोने में भी 2 रुपये में पेट नहीं भरा जा सकता हैं.

लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री के मुताबिक दिल्ली में ऐसा संभव हैं. उनका कहना है कि 600 रुपये में एक परिवार अपनी ज़रुरत के लिए महीने भर का दाल, चावल और आटा खरीद सकता है. अब ज़रा शीला जी ही उस दुकान का पता भी बता दें जहाँ से 5 लोगों के लिए एक वक्त का राशन 4 रुपये में आता हो.

जहाँ एक तरफ खाद्य महंगाई दर आसमान छू रहा है, उस दौर में अगर हम 4 रुपये की बात करें तो एक रिक्शा वाला भी कहता है “साहब 4 रूपये में तो मेरी एक सिगरेट भी नहीं आती, बीड़ी का एक पैकेट भी नहीं आता”

यह कितनी अजीब विडंबना है कि जिस मुख्यमंत्री का एक समय का नाश्ता भी 600 में नहीं आता है, लेकिन उन्हें गरीब परिवार के लोगों के लिए यह 600 रूपये बहुत अधिक लग रहा है, जबकि हमारे हमारे इसी देश में कृषि मंत्रालय के खाद्य विभाग के दफ्तर के अधिकारी हर रोज़ लगभग 10 हज़ार रूपये की चाय पी जाते हैं.

गरीब परिवारों को ये सब्सिडी दे कर जहां दिल्ली सरकार अपना पीठ थपथपा रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी को बैठे बिठाये सरकार पर हल्ला बोलने और अपनी राजनीति चमकाने का मुद्दा मिल गया है. जबकि हक़ीक़त यह है कि यह भी गरीब विरोधी ही हैं. बनियाओं की इस पार्टी को गरीब जनता के दुख-दर्द से क्या लेना देना? इन्हें तो बस इस विषय पर राजनीति करके अपना भविष्य चमकाना है.

खैर, राजनेता तो अपनी राजनीति करते रहेंगे. पिसना तो आम जनता को ही है. ये वहीं गरीब हैं जो चुनाव के समय इन राजनेताओं का झंडा ढोते हैं, पर सरकार बनने के बाद गरीबों के नाम पर सिर्फ राजनीति ही होती है, उन का भला कोई नहीं सोचता…

Share This Article