आप छात्र हैं, तो इस आंदोलन के बारे में ज़रूर पढ़ें

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Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

जनवरी जाने को है. दिल्ली का हांड कंपा देने वाली सर्दी थोड़ा कम हुई है. लेकिन इतनी नहीं कि बिना छत के रात गुजारी जा सके. लेकिन इस सर्दी में दिल्ली यूनिवर्सिटी की आर्ट फैकल्टी के बाहर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे 6 छात्र बिना साए के रात गुजारने के लिए मजबूर हैं. वो मजबूर हैं, क्योंकि दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें भूख हड़ताल के लिए पंडाल लगाने से मना कर दिया है.

ये छात्र ‘राइट टू हॉस्टल’ की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. दिल्ली यूनीवर्सिटी में करीब पौने दो लाख छात्र हैं, जिनमें से 6 हजार को ही हॉस्टल उपलब्ध है. दिल्ली के बाहर से आए बाकी छात्र महंगा मासिक किराया चुकाकर यूनिवर्सिटी के आस पास ही कमरों में रह रहे हैं. जो महंगा किराया नहीं चुका सकते वह बेहद दयनीय हालात में रहने के लिए मजबूर हैं. ये अलग बात है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी एक्ट धारा-33 में कहता है कि यूनीवर्सिटी का प्रत्येक छात्र या तो कॉलेज में रहे, या हॉस्टल या हॉल या ऐसी परिस्थिति में जो यूनीवर्सिटी उपलब्ध कराए. इससे साफ है कि यूनीवर्सिटी के छात्रों के रहने की जिम्मेदारी यूनीवर्सिटी की है. लेकिन पिछले कुछ सालों में छात्रों की तादाद में तो बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन हॉस्टल फैसिलिटी उस अनुपात में नहीं बढ़ पाई है. ऐसे में बहुत से छात्र महंगे किराए पर रहकर पढ़ाई करने के लिए मजबूर हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के आसपास एक कमरे में एक छात्र के रहने का औसतन किराया 3000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक है. एक छात्र का महीने में 3 हजार से अधिक रुपया खाने आदि पर भी खर्च हो जाता है. यानी औसतन हॉस्टल के बाहर रह रहे छात्र प्रत्येक महीने 6 से 8 हजार रुपये सिर्फ अपने रहने खाने पर ही खर्च करते हैं. पढ़ाई से जुड़े अन्य खर्च इसमें शामिल नहीं है.

यदि गरीबी रेखा की सरकारी परिभाषा को मापदंड माना जाए तो देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले किसी भी परिवार का सदस्य दिल्ली यूनीवर्सिटी में बिना हॉस्टल के उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सकता.

पिछले कुछ सालों से हॉस्टल के लिए हो रही मारामारी और यूनीवर्सिटी के आसपास बेतहाशा किराया वसूले जाने ने छात्रों को आंदोलन करने के लिए मजबूर कर दिया है. दिल्ली यूनीवर्सिटी में बुद्धिस्ट स्टडीज के पढ़ाई कर रहे प्रवीण कुमार को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने के लिए मजबूर कर दिया है. प्रवीण के साथ कमलेश कुमार, रामसेवक, दीपक यादव, अभिषेक रवि और विष्णू देव भी भूख हड़ताल पर बैठे हैं.

भूख हड़ताल पर बैठने वाले छात्र जानते हैं कि यूनीवर्सिटी प्रशासन के लिए सभी छात्रों के लिए हॉस्टल उपलब्ध करवाना आसान काम नहीं है. इसलिए उन्होंने अपनी मांगों में ढिलाई बरतते हुए दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट को यूनीवर्सिटी के आसपास के इलाके में लागू किए जाने की मांग को महत्व दिया है.

अनशन पर बैठे छात्रों की 4 मांगे हैं:-

1. दिल्ली यूनीवर्सिटी एक्ट 1992 की धारा-33 के तहत यूनीवर्सिटी के सभी नियमित छात्रों के लिए आवास की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए.

2. जब तक यह सुविधा न मिले तब तक यूनीवर्सिटी के छात्रों को पौष्टिक और स्वस्थ भोजन उचित दरों पर उपलब्ध कराया जाए.

3. यूनीवर्सिटी उन छात्रों को मासिक भत्ता दे जिन्हें वह छात्रावास उपलब्ध करवाने में असमर्थ है.

4. यूनीवर्सिटी यह सुनिश्चित करे कि दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट 1958 यूनीवर्सिटी के आसपास के इलाके में सख्ती से लागू हो.

प्रवीण एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर आंदोलन कर रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें भरपूर समर्थन नहीं मिल पा रहा है. यूनीवर्सिटी उनकी मांगों के प्रति उदासीन है. दिन में सैंकड़ों छात्र उनके साथ थे लेकिन रात होते-होते मात्र 10-15 ही रह गए.

हैरत की बात यह है कि छात्रों के हितों का ख्याल रखने के लिए गठित किया गया दिल्ली यूनीवर्सिटी छात्रसंघ भी खुलकर इस आंदोलन के साथ नहीं आया है.

प्रवीण कहते हैं कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी देश के युवाओं को रिझाने की बात करते हैं. लेकिन वह सिर्फ बात ही करते हैं. उनकी सरकार कानून तो बनाती है लेकिन लागू नहीं करती. राहुल गांधी या उनके छात्रनेता मंच से बड़ी-बड़ी बातें तो कर सकते हैं लेकिन मूल मुद्दों का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि दिल्ली में कोई भी पार्टी रैंट कंट्रोल एक्ट को सख्ती से लागू करने के पक्ष में नहीं रहेंगे. छात्र बाहर से आते हैं, उनका वोट नहीं होता लेकिन मकान मालिक दिल्ली में रहते हैं, उनका वोट होता है और राजनीतिक पार्टियां सिर्फ वोट का गणित समझती हैं. उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि कितने छात्र पैसे की कमी के कारण उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं.

आंदोलन में शामिल रामसेवक रात में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते हैं और दिन में क्लासेज अटैंड करते हैं. बिना नौकरी करे वह अपने कमरे का  किराया नहीं भर सकते. लेकिन बहुत से छात्र रामसेवक जितनी हिम्मत नहीं कर पाते.

एसआरसीसी में प्रथम वर्ष  की पढ़ाई पूरी करने वाले महेश कुमार को जब हॉस्टल नहीं मिला तो वह अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके और वापस अपने गांव लौट गए. यही हाल जीआरएस में पढ़ाई करने वाले श्याम मंजूर का भी हुआ. वह भी फिलहाल पढ़ाई छोड़कर कलकत्ता में नौकरी कर रहे हैं.

यूनीवर्सिटी प्रशासन इस हड़ताल के प्रति उदासीन है. यही नहीं मेनस्ट्रीम मीडिया में किसी भी अखबार ने देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनीवर्सिटी में हो रहे इस आंदोलन के बारे में एक शब्द तक नहीं लिखा. स्वतंत्र एवं सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर कम ही चर्चा हो रही है.

आंदोलन को दबाने या मैनेज करने पर दिल्ली यूनीवर्सिटी प्रशासन अपनी पीठ थपथपा सकता है लेकिन युवा कब तक खामोश रहेंगे. यह मुद्दा सीधे-सीधे देश के युवाओं और शिक्षा व्यवस्था से जुड़ा हुआ है. सिर्फ डीयू का ही यह हाल नहीं है. देश के बाकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र भी महंगा किराया चुकाने के लिए मजबूर हैं.

प्रवीण कुमार को उम्मीद है कि देश के बाकी कॉलेजों के छात्र भी उनकी मांग का समर्थन करेंगे और सरकार राइट टू हॉस्टल पर गंभीरता से विचार करेगी.

फिलहाल प्रवीण और उनके साथी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर दिल्ली यूनीवर्सिटी कैंपस में बैठे हुए हैं. उन्हें विश्वास है कि उनकी आवाज़ सुनी जाएगी और छात्र पुरजोर तरीके से अपना हक़ मांगेगे.

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