देश के नागरिकों से अपील : मोदी को प्रधानमंत्री बनाने से पहले इस पर भी ध्यान दें…

Beyond Headlines
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By Justice Markandey Katju 

भारतीयों का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी को एक ऐसे आधुनिक संत के रूप में प्रस्तुत कर रहा जो परेशान और हताश भारतीयों को दूध और शहद की धाराएं बहने वाले देश में ले जाएगा. मोदी को भारत के अगले आदर्श प्रधानमंत्री के रूप में भी दिखाया जा रहा है. सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही कुंभ मेले में उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में नहीं बता रहे हैं बल्कि मोदी के प्रचार से प्रभावित भारत का तथाकथित पढ़ा लिखा वर्ग, जिसमें हमारे पढ़े लिखे युवा भी शामिल हैं भी मोदी को अगला पीएम मान रहे हैं.

मैं हाल ही में दिल्ली से भोपाल की विमान यात्रा कर रहा था. मेरे पीछे एक गुजराती व्यापारी बैठा था. मैंने उससे मोदी के बारे में उसकी राय पूछी. वह मोदी की तारीफों के पुल बांध रहा था. मैंने उसे बीच में रोक कर साल 2002 में हुए दंगों में मारे गए करीब 2 हजार मुसलमानों के बारे में पूछा. उसने कहा कि मुसलमान गुजरात में हमेशा से समस्याएं खड़ी कर रहे थे लेकिन 2002 में उन्हें सबक सिखा दिया गया और तब से वह खामोश हैं और राज्य में शांति है. मैंने उससे कहा कि यह श्मशान की शांति हैं. शांति तब तक स्थापित नहीं की जा सकती जब तक कि वह न्याय पर आधारित न हो. मेरी इस टिप्पणी से उसे बुरा लगा और उसने विमान में अपनी सीट बदल ली.

सच यह है कि आज भी गुजरात के मुसलमान आतंकित हैं और उन्हें डर है कि यदि उन्होंने 2002 के दंगों के बारे में मुंह खोला तो एक बार फिर उन्हें निशाना बनाया जाएगा. भारत के 20 करोड़ मुसलमानों (चंद गिने-चुने लोगों को छोड़कर, जिनके पास अलग राय रखने के कारण हो सकते हैं) मोदी के धुर विरोधी हैं.

Poor Gujarat

मोदी के समर्थक दावा करते हैं कि गुजरात में जो हुआ वह गोधरा कांड में मारे गए 59 हिंदुओं की मौत के गुस्से में हिंदुओं की सहज प्रतिक्रिया की नतीजा था. लेकिन मैं इस कहानी पर यकीन नहीं करता. पहली बात तो यह है कि गोधरा कांड के दौरान वास्तव में क्या हुआ यह अभी भी एक राज ही है और दूसरे जिन लोगों ने इस कांड को अंजाम दिया, उनकी पहचान करके उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी ही जानी चाहिए. लेकिन यह गुजरात में समूचे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा को कैसे जायज ठहरा सकता है. गुजरात में मुसलमान सिर्फ 9 प्रतिशत हैं, बाकी अधिकतर  हिंदू ही हैं. 2002 में मुसलमानों का जनसंहार हुआ था, उनके घर जला दिए गए थे और उनके खिलाफ भयानक अपराध हुए थे.

2002 में मुस्लिमों की हत्या को सहज प्रतिक्रिया क़रार देना नवंबर 1938 में जर्मनी में हुए ‘नाइट ऑफ क्रिस्टल’ कांड की याद दिलाता है जब जर्मनी में समूचे यहूदी समुदाय पर हमले किए गए थे. उनके घर जला दिए गए थे, दुकानें तोड़फोड़ दी गईं थी और कई यहूदी मारे गए थे. यह सब पेरिस में एक जर्मनी राजनयिक की एक यहूदी नौजवान द्वारा हत्या के बाद हुआ था. इस नौजवान के परिवार को नाजियों ने मौत के घाट उतार दिया था. नाजी सरकार ने इस समूचे हत्याकांड को घटना की सहज प्रतिक्रिया बताया था जबकि वास्तव में यह नाजी सरकार द्वारा धर्मान्ध भीड़ का सुनियोजित इस्तेमाल था.

ऐतिहासिक विकास के परिदृश्य में देखा जाए तो मौटे तौर पर भारत अप्रवासियों का देश है और इसी कारणवश यहां ज़बरदस्त विविधताएं हैं. इसलिए धर्मनिरपेक्षता यानि सभी समुदाओं और वर्गों को बराबर सम्मान देने की नीति ही एकमात्र ऐसी नीति है, जो भारत को बांधकर रख सकती है. और विकास के रास्ते पर ले जा सकती है. यह महान सम्राट अकबर की नीति थी जिसे हमारे राष्ट्र निर्माताओं (जवाहर लाल नेहरू और उनके साथियों) ने भी अपनाया और हमें एक धर्मनिरपेक्ष संविधान दिया. इस नीति पर चले बिना हमारा देश एक दिन भी जिंदा नहीं रह सकता क्योंकि इसमें बेशुमार विविधता है, इतने सारे धर्म, जातियां, भाषाएं, संप्रदाय और जातीय समूह हैं.

इसलिए भारत सिर्फ हिंदुओं का ही देश नहीं है. मुसलमानों, सिखों, इसाइयों, पारसियों, जैनों और अन्य धर्मों का भी इस पर बराबरी का अधिकार है. भारत में सिर्फ हिंदू ही फर्स्ट क्लास नागरिकों की तरह नहीं रह सकते और बाकी धर्मों के लोग दूसरे और तीसरे दर्जे का जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं किए जा सकते. यहां सब फर्स्ट क्लास नागरिक हैं. 2002 में हुए हजारों मुसलमानों के हत्याकांड को न कभी भुलाया जा सकता है और न ही कभी माफ किया जा सकता है. अरब के सभी सुगंधे मिल कर भी नरेंद्र मोदी के दामन पर लगे दागों को नहीं धो सकते.

मोदी के समर्थक दावा करते हैं कि गुजरात के हत्याकांडों में मोदी की कोई भूमिका नहीं थी. यह भी दावा किया जाता है कि भारत की किसी भी अदालत ने मोदी को गुनाहगार नहीं ठहराया है. मैं अपनी न्याय व्यवस्था पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. लेकिन मैं गुजरात के दंगों में मोदी का कोई हाथ न होने की कहानी पर भी यकीन नहीं करता. जब गुजरात में यह भयानक दंगे हुए तब वह ही वहां के मुख्यमंत्री थे. इतने व्यापक पैमाने पर दंगे हुए. क्या फिर भी यह मान लिया जाए कि दंगों में उनकी कोई भूमिका नहीं थी? कम से कम मेरे लिए तो इस पर विश्वास करना नामुमकिन है.

मैं सिर्फ एक ही उदाहरण देता हूं. अहसान जाफ़री एक सम्मानित नागरिक और पूर्व सांसद थे जो अहमदाबाद के चमनपुरा में रह रहे थे. उनका घर गुलबर्गा हाउसिंग सोसायटी में था, जहां अधिकतर मुसलमान ही रहते थे. उनकी बुजुर्ग पत्नी ज़किया जाफ़री के दर्ज किए गए बयान के मुताबिक 28 फरवरी 2002 को धर्मान्ध भीड़ ने गैस सिलेंडर विस्फोट से उनके घर की सुरक्षा दीवार तोड़ दी और अहसान जाफ़री को घर के बाहर खींच लिया. उन्हें नंगा किया गया, हाथ-पैर तलवारों से काट दिए गए और फिर उन्हें जिंदा ही जला दिया गया. कई और मुसलमानों को भी मारा गया और उनके घर जला दिए गए.

चमनपुरा पुलिस स्टेशन से एक किलोमीटर दूर भी नहीं है. अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर का दफ्तर भी यहां से दो किलोमीटर दूर ही है. क्या फिर भी यह मान लिया जाए कि जो हो रहा था उससे मुख्यमंत्री अवगत नहीं थे. ज़किया जाफ़री आज तक न्याय की हर चौखट पर दस्तक देकर अपने पति के लिए इंसाफ मांग रही हैं. नरेंद्र मोदी के खिलाफ दायर किए गए आपराधिक मामले को ट्रॉयल कोर्ट ने रद्द कर दिया था (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल को नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था और उसने अपनी फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.). अब दस साल बाद सुप्रीम कोर्ट ट्रॉयल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए उनकी पोर्टेस्ट पेटिशन को स्वीकार करने के लिए कहा है. मैं इस मामले में और ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि यह अभी भी न्यायालय में चल रहा है.

श्री मोदी दावा करते हैं कि उन्होंने गुजरात का विकास किया है. इसलिए विकास के अर्थ को समझना भी ज़रूरी है. मेरे लिए विकास का सिर्फ एक ही अर्थ है जो कि लोगों के जीवन स्तर का उत्थान है. बड़े औद्योगिक घरानों को छूट और सस्ती ज़मीन और बिजली देने को विकास नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इससे आम लोगों का जीवन स्तर नहीं उठता.

विकास पर सवाल

आज गुजरात के 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. यह कुपोषण के राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है. गुजरात के आदिवासी इलाकों और अनुसूचित एवं पिछड़ी जातियों में गरीबी दर 57 प्रतिशत है. शिशु मृत्यु दर और महिलाओं की मातृत्व मृत्यु दर भी बाकी राज्यों से अधिक है.

जैसे कि रामचंद्र गुहा ने ‘द हिंदू’ में प्रकाशित अपने हाल ही के एक लेख में कहा है, गुजरात में पर्यावरण में गिरावट जारी है, शिक्षा का स्तर धरातल पर है, बच्चों में कुपोषण असामान्य रूप से अधिक है. गुजरात में एक तिहाई से अधिक व्यस्कों का शरीर द्रव्यमान सूचकांक 18.5 से कम है जो कि पूरे देश में सबसे खराब में सातवें नंबर पर है. 2010 की एक यूएनडीपी रिपोर्ट के मुताबिक सेहत, शिक्षा और आय के स्तर पर तय किए गए सूचकांक में गुजरात 8 भारतीय राज्यों से पिछड़ा हुआ है.

व्यापार जगत के लोग कहते हैं कि मोदी ने गुजरात में व्यापारियों के फायदे के लिए माहौल बनाया हैं. लेकिन क्या सिर्फ व्यापारी ही देश के नागरिक हैं.

मैं देश के नागरिकों से अपील करता हूं कि यदि वो वास्तव में देशहित की सोचते हैं तो इस सब पर भी ध्यान दें. अगर वह ध्यान नहीं देंगे तो वही गलती दोहराएंगे जो 1933 में जर्मनी ने दोहराई थी.

(काटजू के अंग्रेज़ी आलेख All the Perfumes of Arabia का हिन्दी अनुवाद) 

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