Safdar Ali for BeyondHeadlines
हैप्पी दंपतित प्रतियोगिता सामुदायिक स्वास्थ्य के प्रति व्यवहार परिर्वतन रणनीति में एक नयी शरुआत है. मास मीडिया, मिड मीडिया और सामुदायिक परार्मश का संगम ये प्रतियोगिता शहर में स्वास्थ्य खास कर परिवार नियोजन के प्रति माहौल बनाने में सफल प्रयोग साबित हुआ है. हैप्पी दंपत्ति के प्रतिभागी मलिन बसितयों में रहने वाले वे दंपत्ति थे जिन्होंने परिवार की खुशियों के लिए परिवार को सीमित रखा, और परिवार को सीमित रखने के लिए परिवार नियोजन के उपायों का निरंतर उपयोग किया. इन उपायों की जानकारी अपने आस-पड़ोस में, अपने रिश्तेदारों में अपने मित्रों आदि को भी दी. वे दंपत्ति जिन्होंने बहुत ही कम आय में अपन परिवार को सीमित रख अपने बच्चों के अच्छे भविष्य की नींव रखी.
जून के महीने में अलीगढ़ की मलिन बसितयों से शहरी स्वास्थ्य परियोजना के द्वारा हैप्पी दंपत्ति की शुरुआत हुर्इ. इस सफर में कितने मुसाफिर हमसफर बनेंगे इस बात का किसी को पता नहीं था. एक ऐसा सफर जिसके बारे में इससे पहले कभी किसी ने सोचा नहीं था. सोचा भी कैसे जाता क्योंकि ये सफर आरंभ हुआ था शहर की उन बस्तियों से जहां पर सरकार का ध्यान बहुत ही बाद में जाता है. कारण साफ है क्योंकि ये बस्तियां बिना किसी योजना के, न तो पीने के पानी की सहज उपलब्धता, न गंदे पानी की निकासी का कोर्इ इंतजाम, जिसे जहां जगह मिली उसने वहीं पर अपना बसेरा बना लिया. एक-एक करके कर्इ बसेरे बस जाते हैं और बनते बनते यह बन जाती है एक बस्ती जिसे मलिन बस्ती कहा जाता है. कम पढ़े लिखे व कम संसाधनों के साथ जीने वाले इन बसितयों के लोग जब अपनी गरीबी को देखते हैं तो मायूस हो जाते हैं. सोचते हैं कैसे बनायेंगे अपने बच्चों का भविश्य, तेजी से विकसित होते षहर के किसी कोने में बसने वाली इन्हीं बसितयों के दंपत्तियों के साथ आरंभ हुआ हैप्पी दंपत्ति का सफर.
कार्यक्रम के उपरांत श्रोताओं के साथ किए गए प्रत्यक्ष साक्षात्कारों ने बड़े अच्छे विचारों को सामने लाया है. प्रतियोगिता में आए हुए एक दंपत्ति ने यह कहा कि यदि इस प्रकार से जागरूकता देने वाले कार्यक्रम आज से पांच सात साल पहले आ जाते तो पांच संतानों की जगह उनके भी दो या तीन बच्चे होते. एक श्रोता ने बताया कि हैप्पी दंपत्ति प्रतियोगिता के बाद युवा वर्ग और दपंत्ति खुलकर परिवार नियोजन जैसे विषय पर बात करने लगे हैं जबकि आज से दो तीन साल पहले तक इस प्रकार की बात करना अच्छा नही माना जाता था. एक श्रोता दंपति ने बताया कि वे भी परिवार नियोजन विषय पर बात करना चाहते थे, एक दो बार प्रयास भी किया किन्तू जिनसे बात की उन्होंने कहा कि ये विषय ऐसे नही हैं जिन पर अभी चर्चा करना उचित नहीं है और हमारे यहां घरों में ऐसे विषयों पर बात नही की जाती है. लेकिन हैप्पी दंपति कार्यक्रम के बाद लगने लगा है कि हमने इस विषय पर बात न करके गलती की है निश्चित तौर पर अब वे इसकी चर्चा अपने मित्रों और जानकारों के साथ अवश्य करेंगे.
इस सफर ने इन बसितयों में रहने वाले दंपत्तियों को एक नर्इ राह दिखार्इ जिससे वो कम आमदनी में भी किस प्रकार अपना और अपने परिवार का भविष्य बना सकते हैं. हैप्पी दंपत्ति के साथ जुड़ने वाले सुशील और गुडि़या एक युवा दंपत्ति हैं. दो बच्चों के साथ इस दंपत्ति ने अपने परिवार को सीमित रखने के लिए परिवार नियोजन के रूप में अपनाया कापर टी. सुशील की पत्नी गुडि़या बहुत कमजोर थी. दो बच्चे होने के बाद उसे संभलने की आवश्यकता थी. सुशील ने गुडि़या का साथ दिया और निर्णय लिया आगे बच्चे नहीं चाहिए. गुडि़या ने शहरी स्वास्थ्य परियोजना की कार्यकर्ता की मदद से कापर टी लगवा ली. पति पत्नी खुश हैं. एक बेटी और एक बेटे के भविष्य के लिए अब महीने भर होने वाली कमार्इ में से बचत होनी आरंभ हो गर्इ है. जब सुशील से इस बारे में बात की तो उसने कहा कि हैप्पी दंपत्ति के माध्यम से वह अपनी बात पूरी बस्ती के लोगों को बताना चाहता है जिस बात को कहने में इससे पहले झिझक होती थी. हैप्पी के बाद वो झिझक कहां गर्इ इसका पता नहीं लगा. उनकी इसी अदा ने हैप्पी दंपत्ति की पहली प्रतियोगिता का प्रथम विजेता बना दिया. इनाम जीतने के बाद शुशील ने बताया कि उसका उत्साह अब दुगना हो गया है. अब रोजाना वह अपने आस-पड़ोस के लोगों को हैप्पी दंपत्ति के राजों के बारे में बतायेगा ताकि वो भी बन सकें हैप्पी दंपत्ति.
मलिन बसितयों के लोगों के जीवन में इस प्रतियोगिता ने स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागरूक बनाने में मदद की है. व्यवसायिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अलीगढ़ तालों के कारोबार में विश्व का सबसे बड़ा उत्पादन क्षेत्र है, न केवल ताले बल्कि पीतल की वस्तुओं के निर्माण में भी यह शहर अग्रणी है. अधिकतर अलीगढ़वासी इन्हीं दोनों व्यवसायों में लगे हुए हैं. तालों आदि के विभिन्न हिस्सों का उत्पादन लेबर रेट पर घर घर में किया जाता है. अर्थात श्रमिक वर्ग बहुत अधिक है. जिसका एक ही मानना होता है कि जितने अधिक हाथ होंगे उतनी ही आमदनी अधिक होगी. ऐसे वातावरण में परिवार नियोजन अपनाना तो दूर की बात कोर्इ इस पर बात भी नहीं करना चाहता था, जो कि शहरी स्वास्थ्य परियोजना के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी कही जा सकती है. परियोजना के उदेश्यों की प्राप्ति और लोगों की सोच के बीच की इस खार्इ को पाटना महत्वपूर्ण है.
अलीगढ के बारे में सरकारी आंकड़े यह बताते हैं कि लगभग 38 प्रतिशत अलीगढ़वासी परिवार नियोजन को अपनाने के लिए तैयार बैठे हैं. आवश्यकता केवल उन तक संसाधनों की पहुंच को बनाने की है.
अभी तक हैप्पी दंपत्ति की तीन प्रतियोगिताओं का आयोजन शहर में हो चुका है. 2000 से अधिक दंपत्तियों का न केवल पंजीकरण बलिक परिवार नियोजन के उपायों को अपनाने के लिए काउंसलिंग होना एक बड़ी उपलब्धि रही है. तीनों कार्यक्रमों को देखने के लिए लगभग 10,000 से अधिक लोग पहुंचे जो इस प्रतियोगिता की लोकप्रियता का उदाहरण है. जहां तक सरकारी तंत्र का सवाल है तो हैप्पी दंपत्ति प्रतियोगिता के माध्यम से सरकार को भी एक ऐसा मंच मिला है जिसके द्वारा यह संदेश देने का प्रयास किया है कि मलिन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए सरकार भी गंभीर है.
इन कार्यक्रमों में मंडलायुक्त, जिलाधिकारी, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी, मुख्य स्वास्थ्य अधीक्षका व स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारियों की मौजुदगी इस बात को स्पष्ट करती है कि परिवार नियोजन उनके लिए भी प्राथमिकता का विषय है.
परियोजना में कार्यरत लगभग सभी पीयर एजुकेटर्स का मानना कि हैप्पी दंपत्ति ने उन्हें एक नर्इ पहचान दी है जिससे उनके द्वारा लाभांवित होने वाले लक्षित दंपत्तियों की संख्या में वृद्धि हुर्इ है. जहां पर पहले उन्हें किसी के घर के अन्दर जाने के लिए इंतजार करना पडता था किन्तू अब स्थिति में काफी परिवर्तन है. अवश्य ही हैप्पी दंपत्ति ने लोगों की सोच को बदला है.
(Writer is Technical officer Communications with Johns Hopkins University; he can be contacted on Sali@jhuccp.in.)
