एक ईमानदार प्रधानमंत्री को दाग और दाग़दार क्यों अच्छे लगते हैं?

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Anurag Bakshi for BeyondHeadlines

संसद का सत्र आरंभ हो गया है. स्वाभाविक है कि आम मामलों के अलावा दो खास विषयों पर पूरे देश का ध्यान होगा. 2जी घोटाला और कोयला घोटालों पर इन दिनों नए खुलासे हो रहे हैं.

अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए कांग्रेस राजनीति के जिस घटिया स्तर पर उतर आई है वह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है. जेपीसी इस रिपोर्ट को इसी सप्ताह अंतिम रूप देगी, किंतु मीडिया में सरकार प्रायोजित जेपीसी की जो रिपोर्ट लीक हुई है, उसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को क्लीन चिट देने के साथ ही जेपीसी की आड़ में सच्चाई छिपाने का काम कर रही है.

इससे पूर्व बोफोर्स दलाली कांड में भी जेपीसी का प्रहसन देश देख चुका है. तब बोफोर्स दलाली की जांच के लिए कांग्रेसी नेता बी. शंकरानंद के नेतृत्व में जेपीसी का गठन कांग्रेस सरकार ने किया था. बी. शंकरानंद ने तब जांच का निष्कर्ष रखा था कि बोफोर्स तोप खरीद में कोई दलाली नहीं ली गई है.

एक ईमानदार प्रधानमंत्री को दाग और दाग़दार क्यों अच्छे लगते हैं?

आज एक बार फिर कांग्रेस 2जी घोटाले में हुई लूट को ढ़कने के लिए घोटाले का सारा दोष तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर थोपने का कुप्रयास कर रही है. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का खुलासा होने पर प्रधानमंत्री ने पहले तो यह कहा था कि उन्हें घोटाले की कोई खबर नहीं है, किंतु सर्वोच्च न्यायालय का चाबुक पड़ने के बाद उन्होंने अपनी सफाई देते हुए कहा कि ए. राजा ने उनके निर्देशों की अनदेखी की है…

क्या यह संभव है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है, वहां मंत्रिमंडल का मुखिया अपने ही मंत्री की कारगुजारियों से अपना पल्ला झाड़ सकता है? राजा ने जेपीसी के सामने बुलाए जाने की मांग की थी, उन्हें क्यों जेपीसी ने जांच में शामिल नहीं किया? अब जबकि राजा 17 पन्नों का नोट भेजकर प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को कसूरवार बता रहे हैं तो इन दोनों को जेपीसी क्लीन चिट कैसे दे सकती है?

कोयला घोटाले में भी सरकार शुरू से ही लीपापोती करने का प्रयास कर रही है. किंतु अदालत के हस्तक्षेप के कारण सरकार को जांच के लिए बाध्य होना पड़ा. अभी इसकी सीबीआइ जांच चल रही है, जिसकी निगरानी सर्वोच्च न्यायालय कर रही है.

अब यह खुलासा हुआ है कि कोयला घोटाले की जांच की प्रगति रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय को दिखाने से पूर्व सीबीआइ ने इसे सरकार को दिखा दिया है. सरकार ने न केवल इसे देखा, बल्कि कानून मंत्री ने रिपोर्ट का विश्लेषण करने के बाद कई संशोधन भी कराए. वित्त मंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से उनकी नींद खराब नहीं होती. उसके कुछ ही दिन बाद हर्षद मेहता का शेयर और प्रतिभूति घोटाला सामने आया था. उनके प्रधानमंत्री रहते हुए देश में घोटालों की बाढ़ सी आ गई है. इनमें से ज्यादातर घोटालों के बारे में पता चल रहा है कि ये प्रधानमंत्री की जानकारी में हुए. देश को पता नहीं है कि आजकल मनमोहन सिंह की नींद का क्या हाल है, लेकिन हर ईमानदार आदमी के पास एक अंतरात्मा नाम की चीज होती है.

मनमोहन सिंह ईमानदार जाने और माने जाते हैं इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि उनके पास भी अंतरात्मा होगी. पर लगता है कि उनकी अंतरात्मा भी उन्हीं की तरह बेआवाज़ है. महाभारत काल में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य जैसों की निष्ठा हस्तिनापुर से बंधी थी. ऐसा लगता है कि मनमोहन सिंह का भी कोई हस्तिनापुर है. प्रधानमंत्री शायद यह भूल गए हैं कि यह राजशाही का ज़माना नहीं है और जनतंत्र में सत्ता में बैठे लोगों की निष्ठा सिर्फ मतदाता और देश के संविधान से बंधी होनी चाहिए.

मनमोहन सिंह का असफल हो जाना दूसरे कई प्रधानमंत्रियों की तरह नहीं है. उन्होंने अपनी नाकामी से देश के नेतृत्व के लिए खालिस राजनेताओं से परे देखने वालों की उम्मीद पर पानी फेर दिया है. मनमोहन सिंह की ईमानदारी लोगों को समझ में नहीं आ रही. वे ऐसे ईमानदार प्रधानमंत्री हैं, जिनके राज में बेइमानों की पौ बारह हैं. उनकी पहरेदारी में देश लुट रहा है.

विपक्ष बोल रहा है. संवैधानिक संस्थाएं बोल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट बोल रहा है और सरकारी शिकंजे वाली जांच एजेंसियों को भी गाहे-बगाहे बोलना ही पड़ रहा है. मनमोहन सिंह की निगरानी और निगेहबानी में घोटाला करने वालों को अदालत के कोप से बचाने के लिए देश का कानून मंत्री सामने आता है और प्रधानमंत्री उसकी ढाल बनते हैं. इससे क्या निष्कर्ष निकाला जाए? एक ईमानदार प्रधानमंत्री को दाग और दाग़दार क्यों अच्छे लगते हैं? विपक्ष प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहा है…

सोनिया गांधी कह रही हैं कि उन्हें मांगने दीजिए, साफ है कि कांग्रेस ने तय कर लिया है कि वह भ्रष्टाचार से नहीं भष्टाचार का विरोध करने वालों से लड़ेगी. भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस की रणनीति बहुत साफ है. आरोप लगाने वालों को भी भ्रष्टाचारी बताने की कोशिश करो. इस सरकार को अब सुप्रीम कोर्ट का भी डर नहीं है.

सोनिया गांधी के इस एक बयान से सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं सहित खाद्य सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण, बीमा और पेंशन जैसे विधेयकों के संसद के इस सत्र में पास होने की उम्मीद धूमिल हो गई है. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे तो लोगों को यह उम्मीद थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका आचरण दूसरे नेताओं से अलग होगा. पर ऐसा अलग होगा इसकी तो शायद ही किसी ने कल्पना की हो.

पिछले नौ साल में देश ने उन्हें केवल एक मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए देखा और वह था अमेरिका के साथ (नागरिक) परमाणु करार. क्या यह महज इत्तोफाक है कि आजादी के बाद से देश में दो बार लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त हुई और दोनों ही बार मनमोहन सिंह सरकार में थे. पहली बार असरदार और दूसरी बार ‘सरदार’ की भूमिका में.

प्रधानमंत्री न केवल संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा पर प्रहार होने दिया, बल्कि उसमें सक्रिय भूमिका निभाई. कोयला खदानों के आवंटन में हुए घोटाले में प्रधानमंत्री आरोप के घेरे में हैं. इस घोटाले की जांच में सरकार के रवैये से नए-नए सवाल उठ रहे हैं.

मनमोहन सिंह की सत्ता के प्रति यह आसक्ति बताती है कि वे प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं. अपनी ईमानदारी की छवि को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं. बल्कि लगा ही दिया है. इसके लिए सांसदों की खरीद-फरोख्त करनी पड़े या भ्रष्ट लोगों का बचाव. सरकार और पार्टी की ऐसी कोशिशों की ओर से वह आंख मूंदे रहेंगे. शर्त इतनी है कि उनका प्रधानमंत्री पद बरकरार रहे. घोटाला करने वालों को भला ऐसा सरदार कहां मिलेगा, जिसकी ईमानदारी पर कोई सवाल न उठाए और जो बेईमानों से कोई सवाल न करे?

प्रधानमंत्री जी और सोनिया जी यह भूल रहे हैं कि जनता जब सवाल करती है तो जवाब देना पड़ता है और जनता सवाल उठा रही है…

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