गोली चली तो मरा कौन… नक्सल या मासूम…?

Beyond Headlines
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Abhishek Upadhyay for BeyondHeadlines

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सलियों ने जो कुछ किया है, उसका समर्थन कौन कर सकता है? कम से कम वे लोग तो उसका समर्थन न ही करें तो दिल्ली से लेकर दौलताबाद तक कूलर/एसी की हवा खाकर वोदका के नशे में बुद्विजीवी बनने के लिए पसीना बहा रहे हों…

और अगर समर्थन करना ही है तो सिर्फ एक दिन के लिए अपने पूरे परिवार, मां, बाप, बहन, भाई, चाचा, फूफा, बुआ, ताई, बहन की बच्ची, भाई के लड़के, नाना, मामा, ममेरे रिश्तेदार… सभी को लेकर छत्तीसगढ़ में सुकमा से जगदलपुर के बीच ज्यादा नहीं, थोड़ा सा ही वक्त बिताकर देख लें… मौत के खौफ से उनकी कथित विचारधारा की धुर्रियां उड़ जाएंगी.

परिवार और रिश्तेदारों के “सेफ जोन” में होने के बाद क्रांतिकारी और बुद्धिजीवी बनने में गजब का आनंद होता है… जैसे भरी दुपहरिया में पानी पीने से पहले हाथों में गुड़ की चासनी रख दी गई हो…

गोली चली तो मरा कौन... नक्सल या मासूम...?  (Photo Courtesy: the hindu)

मगर बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है… प्रधानमंत्री जी, सोनिया मैडम जी और विरासत में मिली देश की जागीर के नए नवेले मालिक युवराज राहुल गांधी जी…! जब 17-18 मई की रात सरकारी कोबरा फोर्स के कमांडों ने छत्तीसगढ़ के ही बीजापुर में 8 गांव वालों को नक्सलियों के नाम पर भून दिया, जिसमें तीन छोटे बच्चे भी शामिल थे, तब आप कहां थे? तब आपकी सरकार को क्या काठ मार गया था? उस समय प्लेन की टिकट नहीं मिल पाई थी, या एयर इंडिया के विमान में तेल खत्म हो गया था?

छत्तीसगढ़ सरकार ने न्यायिक जांच का आदेश देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी. न तो रमन सिंह की आत्मा पर तीन मासूम बच्चों को नक्सली बताकर मार देने को बोझ पड़ा और नहीं आपकी सरकार के भारी भरकम कारिंदों पर ही कोई असर पड़ा. ये तीन बच्चे, ये आठ गांव वाले, नक्सलियों के नाम पर कोई पहली बार नहीं मारे गए हैं. बार बार मारे जा रहे हैं, या यूं कह लें कि इनकी जघन्य हत्याएं की जा रही हैं और 80-90 हजार प्रति माह का वेतन पाने वाले सीआरपीएफ के आला अधिकारियों ने अपनी सारी प्रतिभा इन हत्याओं को जायज ठहराने में लगा रखी है. उनके मुताबिक नक्सली इन्हें आड़ में लेकर गोलीबारी कर रहे थे, इसलिए मार देना पड़ा.

तो इसी बात की ट्रेनिंग के लिए इनके उपर हजारों करोड़ रुपए बहा दिए जाते हैं कि अगर नक्सली मासूम गांव वालों को आड़ में ले भी लें तो, ये उन्हीं गांव वालों की बलि ले लें. ये काम तो इलाहाबाद के कटरा इलाके का एक अदना सा हिस्ट्रीशीटर भी कर देगा. फिर आप में और एक हिस्ट्रीशीटर में फर्क क्या है?

देश के वर्तमान मालिक मनमोहन सिंह जी और भावी मालिक राहुल गांधी जी, कभी कभी नक्सलियों के नाम पर होने वाली आदिवासियों की हत्या पर भी आंसू बहा दिया कीजिए… नक्सलियों से तो आप फिर भी निपट लेंगे, पर अपने लोगों से कहां तक निपटेंगे… आपकी सारी आर्मी फेल हो जाएगी. सारा असलहा बेकार हो जाएगा और कुछ भी हासिल नहीं होगा जब तक आपके अपने आपके साथ नहीं खड़े होंगे…

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