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दूध के मूल्य में वृद्धि पर विरोध पर क्या पशुओं के आहार में वृद्धि पर विरोध जताया है?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 27, 2013 3 Views
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7 Min Read
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Rakesh Panchal & Ilyas Khan Pathan

गुजरात में जुलाई के पहले सप्ताह से सभी कैटेगरी में अमूल का दूध 2 रूपये लीटर मंहगा हो जाएगा. ये इस साल की पहली मूल्यवृद्दि होगी. गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ( जी.सी.एम.एम.एफ.) ने जानकारी देते हुए कहा कि डेयरी किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य मिलना चाहिए. इसलिए हमने कीमतों में बढ़ोत्तरी का फैसला किया है. दूध के भाव में जब बढ़ोत्तरी होती है तब उसका विरोध किया जाता है, लेकिन सच्चाई जानने की कोशिश  नहीं होती. अपने इस दर्द को बांटने के लिए  जी.सी.एम.एम.एफ. ने गुजरात के आणंद में हुई 39वीं साधारण सभा में दूध में हो रही बढ़ोत्तरी को पशुपालकों के हक़ में होने की अपनी राय रखी.

बढ़ोत्तरी के मुख्य कारण

increase in milk ratesविश्व में दूध का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश न्यूजीलैंड है, लेकिन वहां घास के उत्पादन में कमी नहीं है. डेन्मार्क और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में घास मुफ्त दी जाती है, लेकिन अपने देश में पशुपालकों की स्थिति भिन्न है, हमे पशु के लिए ज़रूरी घास की बुवाई करनी पडती है. मॉनसून के समय की जाने बुवाई बारिश पर निर्भर करती है. जब बारिश कम या ज्यादा हो जाती है, तो किसान पशुओं के लिए घास भी पैदा नहीं कर पाते, तब उसे महंगी क़ीमतो में चारा बाहर से खरीदना पड़ता है. उसके अलावा पशु के लिए ज़रूरी पौष्टिक आहार की क़ीमतों में काफी ईज़ाफा हुआ है. पिछले चार सालो में पशु आहार में काफी बढोत्तरी हुई है, जिसके चलते पिछले चार साल में पशुपालकों को दूध के भाव में 14 फ़ीसदी बढोत्तरी का फायदा मिला है. उसकी वजह से  दूध के भाव में भी बढ़ोतरी हुई है. दूध के भाव में यह बढ़ोतरी पिछले चार साल में 64 प्रतिशत हुई है.

अमूल का प्रयास

अमूल ने गांव की महिलाओं को प्रोत्साहित और आर्थिक रूप से मज़बूत करने के लिए नई दिशा में क़दम उठाने का प्रयास कर रही है. अमूल मानती है कि  ज़्यादातर ग्रामीण विस्तारों में पशुपालन पर ध्यान महिलाएं देती हैं. पूरे दिन काम करने के बाद भी पैसे महिलाओं के हाथ में नहीं आते है. घर में पशु का मालिक जो कोई भी हो, लेकिन दूध का पैसा पशु का ध्यान रखने वाली महिलाओं के हाथ में पहुंचे, इसके लिए हर प्रकार की कोशिश और हर तरह का आयोजन जी.सी.एम.एम.एफ. करने का प्रयास करेगी.

अमूल को जहां महिलाओं की चिंता है, वो महिलाओं के हाथों में कमाई देना चाहती है. लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की चिंता सताने लगी है, जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालकों को नसीहत दे रहे हैं. लेकिन गांव के  पशुपालक न तो अपने मुख्यमंत्री की नसीहत पर चल सकते हैं और न ही अमूल के इस सराहनीय प्रयास से  बदलाव की उम्मीद रखते हैं.

पशुपालकों कों मोदी की नसीहत

इस साल 14 जून को गुजरात के आणंद जिले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रवेशोत्सव कार्यक्रम के तहत कुछ स्कूली बच्चों को प्रवेश दिया था. तब उन्होंने पशुपालकों को नसीहत देना नहीं चूके थे. जिसमें उन्होंने कहा था कि अपने बच्चों को दूध पिलाने के बाद ही डेयरी में दूध दें. अगर बच्चा कुपोषित होगा तो उसका भविष्य क्या बनेगा? गुजराती जनता आर्थिक दृष्टि से ही हर चीज़ को देखती है, लेकिन यह पहली ऐसी नसीहत थी जिसमें पशुपालकों को कहा गया कि पहले अपने बच्चों को दूध पिलाएं और उसके बाद ही डेयरी में दूध दें.

पशुपालकों की मजबूरी

किसानों की समस्या सिर्फ पशु आहार की क़ीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि बरसात के इस मौसम में ज़्यादातर इनके पशु बीमार हो जाते हैं. और बीमारी के हालत में यह पशु दूध नहीं दे सकते हैं.  उस वक्त पशुपालक अपने पशु को घास एवं ज़रूरी  पौष्टिक आहार देना बंद नहीं कर सकता.

भले ही दूध के भाव में बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन साथ ही पशुपालकों की दिक्कतें भी बढी हैं. देश का वातावरण जिस तरह से करवट ले रहा है, वो पशुपालकों के लिए कई तरह की मुसीबतें खड़ा कर रही हैं. पशु आहार के साथ पशु आरोग्य भी चिंता का विषय बना हुआ है. बारिश और गर्मी के समय पशुओं का आरोग्य काफी बिगड़ता है. अगर एक पशु  भी बीमारी की चपेट में आ गया तो मुश्किलें बढ़ जाती हैं.

जानकारों की राय

जानकार मानते हैं कि अगर पशुपालन सही तरीके से किया जाए तो काफी मुनाफा हो सकता है. सबसे पहला क़दम पशु आरोग्य पर विशेष ध्यान रखना ज़रूरी है. अगर कोई पशु बीमार हो गया तो सबसे पहले दूध की पैदावार पर भारी असर होता है. पशुपालक के दैनिक खर्चे में कोई कटौती नहीं होती है. चार पशु में से एक पशु बीमार होने पर बाकी के तीन पशु पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है, नहीं तो सारे पशु प्रभावित हो सकते हैं. पशु को दैनिक पौष्टिक आहार देना ज़रूरी है. अगर उसमें कटौती हुई तो दूध की क्वालिटी पर असर होगा जिसके चलते पैसा कम आएगा. ग्रामीण क्षेत्रो में पशु आरोग्य सबसे ज्यादा चिंता का विषय है. यह चिंता मॉनसून और गर्मी के समय काफी बढ़ जाती है.

एक नज़र इधर भी…

सच तो यह है कि देश में जब भी दूध के क़ीमत में इज़ाफा होता है तो हम खूब विरोध करते हैं, लेकिन क्या कभी हमने पशुओं के आहार में होने वाली वृद्धि पर अपना विरोध जताया है… शायद नहीं! और हमारी सरकार ने भी इन्हें खुली छूट दे रखी है. सिर्फ पशुपालकों की ही नहीं, बल्कि किसानों की भी देश में जो हालात हैं, वो किसी से छिपा हुआ नहीं है. गुजरात में तो किसानों की हालत और भी दयनीय है. और एक सच यह भी है कि खाद व पशु आहार बनाने वाली कम्पनियां सरकार की गोद में बैठ कर अपनी मनमानी जारी रखे हुए हैं. लेकिन आम जनता की नज़र इन पर जाती ही नहीं.

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