BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : मौलाना खालिद मुजाहिद के हत्यारे पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी, निमेष आयोग की रिपोर्ट पर तत्काल अमल करने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की रिहाई की मांग को लेकर 22 मई से चल रहा रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना गुरुवार को भी जारी रहा.
रिहाई मंच के अनिश्चितकालीन धरने के 51 वें दिन उपवास पर राघवेन्द्र प्रताप सिंह, शाह आलम, योगेन्द्र सिंह यादव, अनुज शुक्ला, मौलाना क़मर सीतापुरी, लक्ष्मण प्रसाद और शिवदास प्रजापति बैठे.
दिल्ली से धरने के समर्थन में आए हस्तक्षेप के संपादक अमलेन्दु उपाध्याय ने कहा कि रिहाई मंच के इस धरने ने खौफ के उस माहौल में जब आईबी, और मीडिया का एक हिस्सा हर आतंकी घटना के पीछे मुसलमानों का नाम उछालकर पूरे समाज में असुरक्षा और डर पैदा कर रही थी, आईबी और राज्य मशीनरी की आतंकी भूमिका को उजागर किया है. दूसरे इस आंदोलन ने पहली बार सरकार के उन दलालों को भी बेनकाब किया है जो बहुरुपियों के भेस में रहकर पूरे समाज का सौदा करते हैं.
दिल्ली से धरने के समर्थन में आए पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक रंजन सिंह ने कहा कि यह व्यवस्था दमन व शोषण की बुनियाद पर खड़ी है. खालिद मुजाहिद के सवाल पर मुख्यधारा की मीडिया मौन है. राज्य सरकार विज्ञापन का दबाव बनाकर रिहाई मंच की ख़बरों को छपने से रोक रहा है यह बात दिल्ली में भी पत्रकारों के बीच आम है. ऐसे में समझा जा सकता है कि बेगुनाह मुस्लिमों का सवाल कितना गड़ा सवाल है जिसे रोकने के लिए सरकार ने हर जोर जुगत लगा रखी है.
भागीदारी आंदोलन के नेता पीसी कुरील ने कहा कि फिरकापरस्त ताकतें समाजवाद का नकाब पहने हैं, खालिद मुजाहिद की मौत पर सरकार ने मुस्लिम समाज के साथ जो खेल खेला है उसे मुस्लिम समाज कभी माफ नहीं करेगा. लखनऊ विधानसभा पर चल रहा रिहाई मंच का यह आंदोलन पूरे समाज की जेहनियत बदल रहा है और वंचित तबके को मुद्दों के आधार पर एक दूसरे के पास ला रहा है, ऐसी परिस्थितियों में ही नई राजनीतिक विचारों का आगाज़ होता है.
पिछड़ा महासभा के एहसानुल हक़ मलिक ने कहा कि आरडी निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट तत्काल प्रभाव से लागू की जाए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में धारा 8 के तहत सांप्रदायिक दलों पर कार्यवाई हो. उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदन में खालिद मुजाहिद मामले पर बहस के लिए तत्काल मानूसन सत्र बुलाया जाए.
धरने को संबोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सीनियर सदस्य मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि आज हमारे बेगुनाह मुस्लिम भाइयों को जेलों में रहने को मजबूर किया जा रहा है तो ऐसे में जब उनकी रिहाई को लेकर जंग चल रही हो तो रोजेदारों पर यह ज़रुरी हो जाता है कि जेलों में जो मजलूम बंद हैं उनकी रिहाई के लिए संघर्ष में शामिल हों.
उन्होंने कहा कि रमजान का महीना नेमतों का इसलिए नहीं है कि आप लजीज़ खाना खाएं और एसी में आराम करें. जुल्म के खिलाफ लड़ने में भी नेमतें मिलती हैं. मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि हुक्मरान जालिम हैं आईबी वाले इनके एजेंट हैं. अगर सरकार ने आरडी निमेष कमीशन पर एक्शन रिपोर्ट नहीं लाया तो यह आंदोलन पूरे रमजान महीने में जारी रहेगा और हम ईद की नमाज़ भी इसी रिहाई मंच के मंच पर अदा करेंगे.
उन्होंने इतिहास के हवाले से बात करते हुए कहा कि चांदनी चैक पर खड़े नीम के पेड़ों पर उलेमाए हक़ को फांसी के फंदों पर लटका दिया गया था. उसी तरह का दौर आ गया है. उलेमाए हक़ हमारे साथ आएं.
धरने का संबोधित करते हुए हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि इस्लाम की पहली जंग रमजान में हुई थी. हक़ की लड़ाई की हमेशा जीत होती है. तमाम मुसलमान इस इंसाफ की लड़ाई में शामिल होकर नाइंसाफी को खत्म करें.
फर्रुखाबाद से धरने के समर्थन में आए रिहाई मंच के नेता योगेन्द्र सिंह यादव ने कहा कि देश के अंदर मौजूदा शासक वर्ग सांप्रदायिक तौर तरीके से काम कर रही राज्य मशीनरी पर ब्रेक लगाने के बजाए उसे और बढ़ावा दे रहा है. उत्तर प्रदेश में खालिद मुजाहिद की हत्या के बाद से ही इस बात की आशंका थी कि एक दिन फांरेसिक लैब को अपने राजनीतिक दबाव में लेते हुए हत्या को सामान्य मौत दर्शाने का प्रयास करेगी.
हम सबने साफ देखा है कि खालिद के शव पर जो मारपीट के निशान थे और उसके चेहरे के विभिन्न भागों से गिरे खून से जिस तरह चादर सनी थी वो साफ बयां कर रही थी कि यह हत्या है. इस प्रकरण में शुरु में ही पोस्टमार्टम करने वाली टीम ने खालिद के शरीर से चोटों के निशान को पहले ही कागजों में दर्ज नहीं किया.
अयोध्या से धरने के समर्थन में पहुंचे जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) के महासचिव शाह आलम ने कहा कि रिहाई मंच आज 51 दिन से मौलाना खालिद के इंसाफ की इस लड़ाई को विधानसभा पर लड़ रहा है. मैं सभी पत्रकार साथियों और संगठनों से अपील करना चाहूंगा कि जम्हूरियत जब-जब खतरे में पड़ी है तब-तब क़लम के सिपाहियों ने सत्ता को चुनौती दी है. पर आज जिस तरह कारपोरेट घरानों के बढ़ते वर्चस्व की वजह से आम अवाम के हक़, हूकूक और इंसाफ की लड़ाई को मीडिया में स्थान नहीं मिल रहा है वो चिंता का विषय है.
उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि बहुत सारे पत्रकार साथी सियासी दहशतगर्दी के खिलाफ हैं पर उनकी बातों को मीडिया संस्थान जगह नहीं देते, हम ऐसे सभी साथियों से अपील करेंगे कि वो सोशल मीडिया के अन्य संसाधनों का वैकल्पिक उपयोग कर रिहाई मंच के इस आंदोलन को मज़बूती दें. क्योंकि जिस तरह सूबे में पिछले दिनों गुजरात में बेगुनाह मुसलमानों के गुनहगार अमित शाह ने हमारी साझी शहादत और विरासत की नगरी अयोध्या आकर फिर से सूबे में सांप्रदायिक माहौल का जहर घोलने की रणनीति 2014 के लिए तैयार की है. ऐसे में इंसाफ पसन्द ताकतों की गोलबंदी ज़रुरी है जो सपा जैसी हूकूमतों को सबक सिखाए कि एक तरफ मोदी के नाम पर मुसलमानों का वोट बटोरती है और दूसरी तरफ मुसलमनों को बीमारी कहने वाले सांप्रदायिक अपराधी वरुण गांधी को बरी करवाती है.
धरने को संबोधित करते हुए डा0 हारिस सिद्दीकी ने कहा कि रिहाई मंच का आंदोलन सूबे में मुसलमानों की आवाज़ बनकर उभर रही है, इस आंदोलन ने पिछले पचास दिनों में जिस तरह खुलेआम तार्किक ढ़ग के मुस्लिमों पर हो रहे दमन की एक-एक दास्तान को हमारे सामने लाया है उसे देख कर एहसास होता है कि अगर इसे पचास साल पहले ही उठाया गया होता तो आईबी में घुसपैठ करने वाले संघी तत्व देश को तबाही की इस कगार पर नहीं पहुंचा पाते. अब से भी हमें चेत जाना चाहिए और जम्हूरियत को बचाने की इस जंग में शामिल होकर इस पाक रमजान के महीने में अन्याय के खिलाफ इस जंग को तेज करना चाहिए.
धरने को संबोधित करते हुए रिहाई मंच इलाहाबाद के प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा इस धरने में केवल खालिद मुजाहिद की हिरासत में हुई हत्या का ही सवाल मौजू नहीं है, हम देश के हर कोने में शासक वर्ग की ओर से आम जनता के खिलाफ चल रहे दमन के खिलाफ अभियान छेड़ हुए हैं. यह बेहद शर्मनाक है कि उत्तर प्रदेश में कार्यरत सपा, भाजपा, बसपा और कांग्रेस के पास मुस्लिम समाज को देने के लिए सिवाए दंगे और फर्जी एंकाउंटर के कुछ भी नहीं है. सवाल यह है कि इनके लुभावने मकड़जाल से, नारों से दिखावटी रहनुमाई से आम जनता को कैसे जागरूक किया जाय.
धरने का संचालन जलगांव महाराष्ट्र से आए पत्रकार अनुज शुक्ला ने किया. धरने में डा0 अली अहमद कासमी, हाजी फहीम सिद्दीकी, लक्ष्मण प्रसाद, डा0 एसएम अहमद, जैद अहमद फारुकी, एहसानुल हक मलिक, पीसी कुरील, आरपी सिंह, अमित कुमार शुक्ला, गौतम यादव, अभिषेक रंजन सिंह, शाह आलम, डा0 हारिश सिद्दीकी, मुसन्ना, मो0 फैज़, शिब्ली बेग, तुगहरल, शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव शामिल रहे.