तृतीय शिक्षक नियोजन : सरकार और शिक्षा विभाग के लिए बना सरदर्द

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Rajeev Kumar Jha for BeyondHeadlines

पटना (बिहार) : टी.ई.टी. और एस.टी.ई.टी परीक्षा के लगभग डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी शिक्षकों का नियोजन नहीं हो सका है. सूबे के सभी पास अभ्यर्थियों में इसको लेकर काफी रोष है. इतना हीं नहीं नियोजन और शिक्षा विभाग को अब खुद समझ नहीं आ रहा है कि वो क्या करें. हालांकि विभाग नें लगभग 70 हजार नियोजन पत्र निर्गत करने की सूचना दी थी. लेकिन हकीकत यह है कि बमुश्किल 20 हजार शिक्षकों ने ही योगदान किया है.

बता दें कि राज्य में लगभग 1.68 लाख शिक्षकों का नियोजन होना है. लेकिन सरकार और विभाग ने नियोजन के जो नियम और तरीके बनाएं हैं, उसे यदि नहीं बदला गया तो इतने शिक्षकों का नियोजन होने में लगभग 25 साल लगेंगे.

Third teacher planning: making headaches for Government and Educationआपको यह बात चौंकाने वाली लग सकती है, लेकिन यह ज़मीनी सच्चाई है. देश में बिहार मॉडल पेश कर वाह-वाही लूटने वाली नीतीश सरकार शिक्षक नियोजन में इस बार गच्चा खा गयी है. लगातार बदलते नियम कानून से तो अभी तक यही लगता है कि शिक्षा विभाग की मंशा ही उतीर्ण अभ्यर्थियो के प्रति उदार और साफ़ नहीं है.

एस.टी.ई.टी.और टी.ई.टी. संघ के अध्यक्ष मार्कंड पाठक कहते हैं “प्राथमिक शिक्षक नियोजन में अपनाई जा रहीं अदूरदर्शी प्रक्रिया के सदमें से अभी अभ्यर्थी उबरे हीं नहीं थे कि सरकार ने एक नया सदमा दे दिया है. सरकार द्वारा एनसीईटी को दिए गए जानकारी और अप्रशिक्षितों को नियोजन करने की छुट देने के अनुरोध के आलोक में एनसीईटी ने माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षकों की बहाली में पिछड़ी और सामान्य जाति के अनट्रेंड पुरुष एवं महिला अभ्यर्थियों को नियोजित करने पर रोक लगा दी है.

केवल अनुसूचित जाति, जनजाति और अति-पिछड़ी जाति के अनट्रेंड अभ्यर्थियों को ही इस साल के लिए छुट मिली है. बेशक यह यह फैसला एनसीईटी का है लेकिन दीगर बात यह है कि इस तरह की विषैली और भ्रामक तथा अदूरदर्शी अनुरोध बिहार सरकार की ही थी.

इस तरह से बिहार देश का वह पहला राज्य बन गया है जहां जाति के आधार पर किसी ख़ास वर्ग को शिक्षकों की बहाली से दूर रखा गया है. हालांकि संघ ने सरकार और एन.सी.ई.टी. के इस नियमके विरोध में पटना हाई कोर्ट में रीट दायर कर दिया गया है. यह घोर अन्याय है.”

एक अन्य उत्तीर्ण अभ्यर्थी राजा कहते हैं “प्राथमिक और मध्य विद्यालय में नियोजन की इस बेहद धीमी प्रक्रिया नें युवाओं का शिक्षक बनने का उत्साह ठंढा कर दिया है. सबसे अधिक परेशानी गाँव के लड़कों के साथ है. वहाँ ऐसे भी जागरुकता की कमी है. किसी तरह स्वाध्याय से सैकड़ों युवाओं और लड़कियों से टी.ई.टी. परीक्षा में उत्तीर्णता प्राप्त की थी. लेकिन पिछले दो सालों से इसी नियोजन के चक्कर में घिसते पिसते उनका बचा खुचा कैरियर भी दांव पर लग गया. अब वो पंजाब लुधियाना जाकर कमाने को विवश हैं. यदि सरकार ने अपना अड़ियल रुख छोड़ कर नियोजन का यूपी मॉडल अपनाया होता तो आज जैसी स्थिति कभी नहीं होती.

प्रथम चरण के नियोजन की समाप्ति का फैसला भी विभाग कर चुका है लेकिन कई ऐसी नियोजन इकाइयां हैं जहां अभी इसकी शुरुआत भी नहीं हुई है. विभागीय सूत्रों की माने तो शिक्षा विभाग अपने ही फैसले और तरह तरह की नियमावली के जंजाल में फंस गयी है. वह इससे निबटने के लिये लगातार डीईओ और अपने पदाधिकारियों से मीटिंग कर रहा है.”

नीरज झा कहते हैं “शिक्षक नियोजन की इस ढुलमुल रवैये से हजारों अभ्यर्थियों के कैरियर को भारी नुकसान हुआ है. सरकार को इसकी कीमत चुकानी होगी. आने वाले चुनाव में शिक्षकों का मुद्दा सर्वप्रमुख होगा. समान काम के लिए समान वेतन और सभी वर्ग के अनट्रेंड अभियार्थियों के नियोजन करने की यदि सरकार त्वरित घोषणा नहीं करती है तो इसके परिणाम सरकार के लिए भयंकर होंगे.

शिक्षक अभ्यर्थी सोनू कहते हैं “संविधान के किसी भी अनुच्छेद और अनुसूची में यह नहीं लिखा है कि जाति के आधार पर किसी ख़ास वर्ग को किसी नियोजन या नौकरी से बाहर कर दिया जाए. जाति को आधार बना कर इस तरह की समाज तोडू नियम बनाने वाला एनसीटीई कौन होता है. सरकार को यदि लगता है कि उसके पास सामान्य और पिछ्ड़ी जाति के ट्रेंड अभ्यर्थी हैं तो वह इसका आंकड़ा सर्वविदित करे. यह बिहार के स्वर्णिम इतिहास में एक काला अध्याय है.”

अति-पिछ्डा वर्ग के शिक्षक अभ्यर्थी सुजीत कहते हैं “इस तरह के फैसले से समाज टूटता है और बेरोजगार युवाओं में कुंठा और वैमनष्य पनपती है. यह समाज और राज्य दोनों के लिए घातक है. अब जाति पिछड़ी नहीं है इलाके पिछड़ें हैं. इन पिछड़े इलाकों में रहने वाले सभी लोग पिछड़े हैं. सरकार को जल्द हीं अपने इस नियमावली में संशोधन करना चाहिए.”

उच्चतर माध्यमिक शिक्षक अभ्यर्थी कुंदन कहते हैं “सरकार ने यह अनुसंशा अचानक में नहीं की. यह उसका पूर्व प्लानिग था. यदि उसकी मंशा साफ़ होती तो सारे के सारे पास अभ्यर्थी आसानी से नियोजित हो जाती. यदि सरकार राईट टू एजुकेशन को अपनाती है तो उसे हजारों शिक्षकों का नियोजन और करना पड़ेगा. 2011 में उसने 1.68 शिक्षकों को नियोजित करने की सूचना प्रेषित किया था. जबकि मात्र डेढ़ लाख के लगभग हीं अभ्यर्थी उत्तीर्ण हैं.

बहरहाल टी.ई.टी.और एस.टी.ई.टी. सफल अभ्यर्थियों की उत्साह ठंढी पड़ती जा रही है और वो एक व्यापक आन्दोलन के मूड में दिख रही है.

(लेखक बिहार विश्वविद्यालय में पत्रकारिता में शोधरत हैं. इन से cinerajeev@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)    

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