Anita Gautam for BeyondHeadlines
रोज़ जिस चांद को बड़े प्यार से देखा करती थी आज वो चांद कुछ खास नज़र आ रहा है, आखिर आज क्या है इस चांद में! अरे ये क्या जो कभी आपस में झगड़ा करते थे, आज कितने प्यार से धर्म मजहब जाति को भुला कर सिर्फ इंसानियत का धर्म अपनाए एक दूसरे के गले मिल रहे हैं और ये मीठी-मीठी सेवईयों की महक हवाओं को भी मीठा कर रही है. ओह इसका मतलब आज ईद है. मुझे भी पिछले एक महीने से आज ही के दिन का इंतजार था. चलो आज वह दिन आ ही गया. प्यार और सौहाद्र का दिन…
इस चमकते तारे को देख आंखों में खुशी और मन में थोड़ी उदासी भी है, क्योंकि बचपन से ही सिखाया गया है कि ये त्यौहार हिन्दुओं का नहीं होता. पर ये किसी ने नहीं बताया कि खुशी पर भी क्या किसी धर्म मज़हब का अधिकार होता है. मैं ईद क्यों नहीं मना सकती. 15 अगस्त और 26 जनवरी पर तो पूरा भारत एक हो जाता है और जब कभी भारत पाकिस्तान का मैच हो तब भी तो कोई हिन्दु-मुसलमान नहीं देखता और बस भारत के जीताने के लिए सिर्फ उपर वाले से प्रार्थना करते हैं. फिर आज मैं ईद क्यों नहीं मना सकती. होली और दीपावली पर सब लोग फोन कर-करके अपने घर बुलाते हैं पर आज किसी ने भी ईदी देना तो दूर, ईद की मुबारकबाद तक देना उचित नहीं समझा! आखिर क्यों?
पिछले एक महीने से लगातार अपनी मुस्लिम सहेली से ईद के बारे में सुनती, रोजा खोलने से लेकर नमाज़ पढ़ने और दिन-दिन भर पानी की एक बूंद से दूर रह कड़े नियमों का पालन करती महिलाओं को ईद की शॉपिंग करते देख कभी तो आश्चर्य होता और कभी खुशी और मैं भी इस उपवास को अपने धर्म में नवरात्री तो कभी छठ तो कभी करवा चौथ जैसा कड़ा व्रत मानती और सहेली के उपवास का महत्व समझती और फिर बोलती, ईद पर सेवईयां तो पक्की और ईदी, वो तो तुम्हारे अब्बु से ज़बदस्ती ले ही लूंगी… पर आज न सहेली है और न ही ईद की सेवईंया…
खैर, शायद गलती उसकी भी नहीं जो उसने मुझे अपने घर नहीं बुलाया, हम सभी को बचपन से इंसानियत का पाठ पढ़ाने की जगह जातियत पाठ जो पढ़ाया जाता है, ऐसी सीमा में बांध कर रखा जाता है जिसमें दायरे ही दायरे होते हैं. सोचने की बात है जब हिन्दू-हिन्दू हो कर न जाने कितनी जातियों में बंट कर भेदभाव कर सकता है तो फिर मामला तो हिन्दू और मुस्लिम का है. पर जब सेना पर जवान युद्ध लड़ता है तो कोई उसका धर्म नहीं पूछता, अस्पताल में जान बचाने वाले भगवान स्वरूप डॉक्टर का नाम पूछ कर ईलाज नहीं करवाते तो फिर हिन्दू और मुस्लमान दो ताक़तों को हमेशा से ही आग की चिंगारी दिखा बीच-बीच में न जाने क्यों घी डालते रहते हैं.
कोई बोलता है अंग्रेजों ने दो दिलों के बीच दुरियां पैदा की है तो कोई नेताओं के लिए बोलता है कि अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए हमेशा दोनों दलों में आग लगाते रहते हैं पर कोई कभी अपने उपर जिम्मेवारी नहीं लेता कि आखिर दूसरे आपके दिल और दिमाग पर इतना कब्जा कैसे कर सकते है, आखिर उपर वाले ने भी तो हमें दिमाग दिया है.
वैसे हर बार की तरह इस बार भी मुझे हिन्दू होकर ईद की सेवईंयों का इंतजार है, और इस बार भी हर बार की तरह मैं अगले साल तक ईद की सेवईयां जिसमें प्यार कूट-कूट कर भरा होता है उसका इंतजार करूंगी. मैं शायद तब तक इंतजार करूंगी जब तक मुझे क्या मेरे पड़ोस के हिन्दू मुस्लिम परिवारों के बीच ईद की सेवईयों से लेकर होली के गुलाल का रंग न मिले, क्योंकि ये खुशियों का त्यौहार है.