छू कर बुलन्दियों से उतरने लगा हूँ मैं…

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Sushil Krishnet for BeyondHeadlines

छू कर बुलन्दियों से उतरने लगा हूँ मैं, शायद निगाह-ए-वक़्त से डरने लगा हूँ मैं…

यह शेर भोजपुरी अभिनेता और गायक मनोज तिवारी ‘मृदुल’ के कड़वे समय के लिए सही है.  एक समय भोजपुरी में काफी नाम-सम्मान कमाने के बाद वो बाज़ार और सस्ती लोकप्रियता के शिकार होते गए. कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया मगर उम्र और “लुक” ने साथ नहीं दिया, इसलिए अभिनय से पीछे हटना पड़ा.

शोहरत में एक लत होती है कि आप हमेशा अपना नाम, अपनी आवाज़ और अपना चेहरा ही देखना चाहते हैं. एक समय बाद यह जब आपके हाथ से जाने लगता है तो आप भी सामान्य मनुष्य कि तरह व्यवहार करने लगते हैं. समय रहते यदि आपने पहचान लिया आने वाले समय को तब तो ठीक अन्यथा आपका पराभव बहुत दुखदाई होता है.

manoj tiwari पिछले कुछ समय से आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान मनोज तिवारी ने बिहार सरकार और भोजपुरी अकादमी द्वारा दिये गए सारे सम्मान वापस कर दिये हैं. इसका कारण भोजपुरी अकादमी द्वारा मालिनी अवस्थी को अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक राजदूत  मनोनीत किया जाना है.

मालिनी अवस्थी के इस मनोनयन का विरोध कर रहे मनोज तिवारी का कहना है कि मालिनी अवस्थी अवधि गायिका हैं और बाहर (अर्थात उत्तर प्रदेश) की  हैं. तिवारी के अनुसार बिहार में शारदा सिन्हा, भारत शर्मा, रवि किशन के होते हुये किसी बाहर के कलाकार को यह सम्मान दे कर भोजपुरी का अपमान किया गया है.

अपनी प्रतिक्रिया में अकादमी के अध्यक्ष प्रो आर. के दूबे ने कहा कि शारदा सिन्हा का स्थान ऐसे सम्मान से परे और आदरणीय है. अकादमी को एक ऐसे कलाकार की तलाश थी जो अपने आचारण-व्यवहार, पहनावे और अभिव्यक्ति से भोजपुरी माटी का लगे. ऐसे मानकों पर मालिनी अवस्थी का मनोनयन ब्रांड एम्बेस्डर के लिए सर्वथा उपयुक्त है. अध्यक्ष ने मनोज तिवारी को अकादमी के कार्यों में राजनीति न करने की नसीहत दी.

बहुत पहले मनोज तिवारी ने एक गाना गया था ’’जब घर के चक्कर में आइ जाला आदमी, त कुल बेद सास्तर भुलाई जाला आदमी” आज उनकी स्थिति ऐसी ही है. सारा वेद-शास्त्र भूल चुके मनोज तिवारी अपनी महत्वाकांक्षा और निराशा के चलते कुतर्क कर रहें हैं.

भोजपुरी को सिर्फ बिहार या किसी राज्य की चौहद्दी में क्यों सीमित कर रहें हैं आप! ऐसे देखेंगे तब तो यह मध्य प्रदेश की बोली होनी चाहिए क्योंकि वहीं के भोजवंशी परमार राजाओं ने अपने पूर्वज राजा भोज के नाम से आरा के उस जगह का नाम रखा जो आज भोजपुर के नाम से जाना जाता है.

भोजपुरी बिहार के दस जिलों में बोली जाती है जबकि उत्तर-प्रदेश के करीब 25 जिलों में । इसके अलावा झारखंड के तीन जिलों में.

देश के बाहर नेपाल की तराई के 7 जिले भोजपुरी भाषी हैं. प्रवसन के चलते मारिशस, फ़िजी, त्रिनिदाद अन्य देशों में भी यह बोली जाती है. जनसंख्या के आधार पर भी बिहार (2.10 करोड़) से ज्यादा उत्तर-प्रदेश (5 करोड़ ) में यह बोली जाती है. भाषा, बोली, संगीत किसी चौहद्दी में बांधने वाली नहीं हैं. इस विरोध के पीछे मनोज तिवारी की मालिनी अवस्थी की लोकप्रियता से क्षुब्धता ही प्रमुख कारण है.

मालिनी अब एक नाम नहीं, भोजपुरी, कजरी, चइता, सोहर की पर्याय हैं जो भोजपुरी की माटी के लोगों के लिए संजीवनी की तरह हैं. अश्लीलता के बाण से आहत भोजपुरी अब इस संजीवनी से फिर अपने सम्मान को पाने लगी है. एक कलाकार को आप बाहर का बता रहें हैं और आप स्वयं उत्तर प्रदेश से लोक सभा का चुनाव लड़ चुके हैं और आपको सारी शोहरत बनारस की माटी ने ही दी.

वक़्त का सामना कीजिये मनोज बाबू , भोजपुरी को आप और आपके उत्तराधिकारी रंगीलों और निरहुओं ने बहुत बदनाम कर डाला है. यह सिर्फ पान की दुकान, जीप, ट्रक और छेड़खानी की बोली नहीं है. न ही होली जैसे त्यौहार को फूहड़ और भाभी-साली को गाली देने वाली बोली है.

खुसरो, भिखारी ठाकुर, पद्मश्री शारदा सिन्हा की पवित्र और शुद्ध वसीयत है. अब जब इसकी बागडोर एक योग्य उत्तराधिकारी के हाथों में है तो राजनीति मत कीजिए. समय के सत्य को स्वीकार कीजिए और अपनी इस बोली का सम्मान कीजिए. ईर्ष्या और कुंठा त्यागिए आइए साथ मिलकर चलें और संविधान की आठवीं अनुसूची में इसे शामिल कराएं.

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