Soni Kishor Singh for BeyondHeadlines
इस देश की आधी से ज्यादा आबादी धार्मिक होने के चक्कर में मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना तो करती ही है, साथ ही साधु-महात्माओं की कृपा पाने के लिये भी सदैव तत्पर रहती है. परिणाम यह होता है कि धर्म के ये ठेकेदार हजारों पाप करके संत और महात्मा बन जाते हैं. लोग इनकी बातें आँख मूँदकर मानने लगते हैं. धीरे-धीरे धन, वैभव, लोकप्रियता के आसमान पर पहुँच जाते हैं और तब दुनिया की आँखों में ब्रह्मचर्य का धूल झोंकने वाले ये तमाम बाबा अपने असली रूप में आते हैं. इनके रसूख के चलते इनके भोग विलास के किस्से दुनिया के सामने खुलकर आता ही नहीं और अगर गलती से पता चल भी जाता है तो इनके ऊपर कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि इस हम्माम में सब नंगे हैं.
इस देश में शायद ही कोई ऐसा लोकप्रिय संत हो जिसके ऊपर हत्या, बलात्कार आदि का आरोप न लगा हो. ये अलग बात है कि हर बार ये बच निकलते हैं क्योंकि सरकार और प्रशासन इन पर हाथ डालने से डरती है. सवाल यह है कि ऐसे हत्यारे-बलात्कारी बाबाओं के हजारों-लाखों भक्तों का विवेक उस वक्त सुन्न क्यों हो जाता है जब इनके तथाकथित भगवान किसी की अस्मत लूटते हैं, गुण्डागर्दी करते हैं, हत्या करते हैं, आदि, आदि.
भारत धर्मभिरूओं का देश है ये तो पता है. लेकिन कायरों की इतनी लम्बी चौड़ी फौज हमारे आपके बीच पनप गई है, जो आस्था और धर्म के नाम पर ये घिनौना खेल देख रहे हैं. दोषी बाबाओं को सजा मिले न मिले ये कानून का विषय है लेकिन सामाजिक बहिष्कार तो होना ही चाहिए वरना ऐसे ही बच्चियों की अस्मत लुटती रहेगी और एक दिन ऐसा आयेगा जब धर्म के नाम पर ये ठेकेदार निरंकुश बलात्कारी होकर हर घर पर कुदृष्टि डालेंगे.
लोगों को समझना होगा कि धर्म के इन दलालों का अतीत कितना काला है. अगर भक्तों की आस्था और विश्वास के बल पर इन्हें महान और भगवान की संज्ञा दी भी जाये तो ये अपनी मूल पैशाचिक प्रवृति से मुँह नहीं मोड़ पाते हैं. इसलिये धर्म का कारोबार और इसके ठेकेदारों को अगर सरकार सजा देने से बच रही है तो हम-आप मिलकर उसे सजा दे सकते हैं उसके संत होने का तमगा छीनकर, उसे यह अहसास करा कर कि वो संत तो क्या आम इंसान होने के लायक भी नहीं है.
(लेखिका महिला विषयों पर स्वंतत्र लेखन करती हैं.)