Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
कैंसर का नाम सुनते ही हमारी रूह कांप जाती है. सभी अपने ईष्ट देव से प्रार्थना करने लगते हैं कि किसी को कैंसर न हो. लेकिन सच्चाई यह है कि कैंसर का रोग दिन-ब-दिन हिन्दुस्तान को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है. तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद भारत में कैंसर मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.
खुद नेशनल कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम के आंकड़ों का अनुमान है कि देश में 2026 तक 14 लाख लोग किसी न किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होंगे. वहीं आईसीएमआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक भारतीय पुरुषों में कैंसर के केसेज 20 फीसदी तक बढ़ जाएंगे…
ऐसा नहीं है कि सरकार कैंसर इस बढ़ते खतरे से अनजान है. बल्कि वो इन सच्चाईयों से बखूबी वाकिफ है. और इसको लेकर हमारी सरकार व नेता हमेशा अपने बयानों व भाषणों में गंभीर दिखे भी हैं. लेकिन BeyondHeadlines के पास जो जानकारी है, उससे यह साबित होता है कि सरकार के कथनी व करनी में काफी अंतर है. वो कभी भी इस बीमारी को लेकर गंभीर नहीं रही. इसका अंदाज़ा आप नीचे के आंकड़ों से लगा सकते हैं.
BeyondHeadlines को आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि ‘नेशनल कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम’ के तहत साल 2007-08 में 140 करोड़ रूपये का बजट रखा गया, लेकिन यह बजट सरकारी खजाने की शोभा बढ़ाती रही. इसमें से सिर्फ 46.32 करोड़ रूपये ही खर्च हो सकें.
साल 2008-09 का हाल भी ऐसा ही था. इस साल 120 करोड़ का बजट पास किया गया, लेकिन खर्च सिर्फ 33.62 करोड़ ही हो सका. साल 2009-10 में बजट को घटाकर 95 करोड़ कर दिया गया, लेकिन इसके साथ ही खर्च भी घट गया. इस साल सिर्फ 28.25 करोड़ रूपये ही खर्च हो पाया.
साल 2010-11 में सरकार ने ‘नेशनल कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम’ का दायरा थोड़ा और बड़ा करते हुए इस प्रोग्राम को तब्दील कर दिया. अब इस प्रोग्राम का नाम ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन ऑफ कैंसर, डायबिटीज, शुगर एंड स्ट्रोक’ यानी ‘एनपीसीडीसीएस’ हो गया. लेकिन इस प्रोग्राम दायरा बढ़ने के बाद भी सरकार अपनी गंभीरता का दायरा नहीं बढ़ा सकी.
साल 2010-11 में ‘एनपीसीडीसीएस’ का बजट 180 करोड़ रखा गया. लेकिन खर्च सिर्फ 31.97 करोड़ ही किया जा सका. साल 2011-12 में सरकार ने थोड़ी गंभीरता दिखाई. बजट को बढ़ाकर 200 करोड़ कर दिया गया. और खर्च बढ़कर 99.79 करोड़ हो गया.
आरटीआई से हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ यह भी बताते हैं कि ‘एनपीसीडीसीएस’ के सीडीएस कम्पोनेन्ट को पाइलेट प्रोजेक्ट के तौर पर 2007-08 में ही शुरू कर दिया गया था. 2007-08 में इसका बजट 442.44 लाख रूपये था, लेकिन खर्च सिर्फ 5.18 लाख ही किया जा सका. वहीं साल 2008-09 में 61.48 लाख का बजट रखा गया और खर्च 89.67 लाख हुआ. साल 2009-10 में 30.95 लाख का बजट रखा गया और खर्च 48.21 लाख किया गया. 2010-11 में इस कार्यक्रम को पूरी तरह से लागू कर दिया गया. 2010-11 और साल 2011-12 में क्रमशः 2867.46 लाख और 9297.33 लाख का बजट रखा गया, लेकिन खर्च शुन्य रहा.
BeyondHeadlines को प्राप्त दस्तावेज़ यह भी बताते हैं कि सरकार का ध्यान कैंसर के इलाज पर कम, परन्तु इसके विज्ञापनों पर अधिक रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के कैंसर रिसर्च सेक्शन से मिले दस्तावेज़ों के मुताबिक साल 2008-09 में 12.09 करोड़, साल 2009-10 में 14.26 करोड़, साल 2010-11 में 8.77 करोड़ और साल 2011-12 में 4.11 करोड़ रूपये सिर्फ विज्ञापनों पर खर्च हुए हैं.
‘स्वस्थ भारत विकसित भारत’ अभियान चला रही प्रतिभा जननी सेवा संस्थान के राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह इस बावत कहते हैं कि ‘भारत सरकार हिन्दुस्तानियों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर नहीं है.’
सरकार की स्वास्थ्य नीति को अदूरदर्शी बताते हुए आशुतोष बताते हैं कि भारत जैसे ह्यूज पॉपुलेशन वाले देश में सरकार के लिए नागरिकों का स्वास्थ्य का मसला प्रथम वरीयता में होनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारी सरकार हिन्दुस्तानियों को बीमार करने पर तुली हुई है. एक तो हेल्थ के नाम पर बजट कम है, उल्टे में जो है वह भी मरीजों तक नहीं पहुँच पा रहा है, ऐसे में भारत को कैसे स्वस्थ बनाया जा सकता है?
कैंसर के नाम पर कागज़ों में सरकारी बाबुओं का घोटाला…
इतना ही नहीं BeyondHeadlines को आरटीआई के ज़रिए अलग-अलग समय पर मिले दस्तावेज़ों से यह भी पता चला है कि किस तरह से कागजों पर बजट में हेराफेरी हो रही है. जो एक बड़े घोटाले की ओर इशारा करता है.
2013 के आखिर में मिले दस्तावेज़ों के मुताबिक साल 2007-08 में नेशनल कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम’ के तहत 140 करोड़ रूपये का बजट रखा गया और खर्च 46.32 करोड़ रूपये हुए. लेकिन 2012 के अप्रैल में स्वास्थ्य मंत्रालय के कैंसर रिसर्च सेक्शन से मिले दस्तावेज़ बताते हैं कि इस साल 52.27 करोड़ रूपये खर्च किए गए. वहीं 2010 के दिसम्बर महीने में BeyondHeadlines को मिले दस्तावेज़ बताते हैं कि इस साल बजट 110 करोड़ का रखा गया था और खर्च 46.42 करोड़ हुआ.
यही नहीं, 2013 के आखिर में मिले दस्तावेज़ों के मुताबिक साल 2008-09 में 120 करोड़ रूपये का बजट रखा गया और खर्च 33.62 करोड़ रूपये हुए. लेकिन 2012 के अप्रैल में मिले दस्तावेज़ बताते हैं कि इस साल 109 करोड़ रूपये खर्च किए गए. 2010 के दिसम्बर महीने में मिले दस्तावेज़ भी यही बता रहे हैं.
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. 2013 के आखिर में मिले दस्तावेज़ यह भी बता रहे हैं कि इस साल 2012-13 में ‘एनपीसीडीसीएस’ के लिए 300 करोड़ का बजट रखा गया था. और सीडीएस कम्पोनेन्ट पर ही 86.33 करोड़ रूपये खर्च किए जा चुके हैं.
आगे के आंकड़े और भी पेचीदे हैं. लेकिन हम आपको आंकड़ों के इस खेल में उलझाना नहीं चाहते. लेकिन आप कागज़ों पर होने वाले तमाम खेलों व घोटालों और वास्तव में सरकार हमारी स्वास्थ्य को लेकर कितनी गंभीर है, आसानी से समझ सकते हैं. अगर कैंसर से वाक़ई आप लड़ना चाहते हैं तो आज ‘कैंसर दिवस’ पर ज़रूर सोचिएगा कि पहले सरकार को कैंसर मुक्त कैसे बनाया जाए…