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Reading: सुंदरता की नयी परिभाषा ‘डार्क इज़ ब्यूटीफुल’
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BeyondHeadlines > Entertainment > सुंदरता की नयी परिभाषा ‘डार्क इज़ ब्यूटीफुल’
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सुंदरता की नयी परिभाषा ‘डार्क इज़ ब्यूटीफुल’

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 13, 2014 2 Views
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7 Min Read
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Kashif Ahmed Faraz for BeyondHeadlines

आज भी वही हुआ जो हर बार होता था. स्वाती इतनी उदास हो चुकी थी इन सब से कि अपने कमरे में आकर फूट-फूट कर रोने लगी. हेमा जो स्वाती की भाभी थी, उसके दर्द को अच्छी तरह समझती थी. कमरे में आकर, हेमा ने स्वाती को समझाने की कोशिश की, लेकिन इतने समय तक ये सब झेलने के बाद आज उसका सब्र का बांध टूट चुका था, “क्या इस समाज में खूबसूरती का पैमाना  सिर्फ गोरापन है, तालीम, तहज़ीब और सलीक़े की कोई एहमियत नहीं… मैं कब तक अपने आप को ठुकराए जाने का दंश बर्दाश्त करती रहूंगी… मैं अब ये ज़िल्लत और सेहन नहीं कर सकती… इससे अच्छा है कि मैं शादी ही न करूँ!”

स्वाती का दर्द भारतीय समाज में बढ़ते रंगभेदी मानसिकता को दर्शाता है. जॉब से लेकर शादी तक गोरे रंग की ही पूछ है. दरअसल, ये रंगभेदी मानसिकता हमारे घर से ही उपजी है. लड़की के सांवले रंग पर मांओं द्वारा अक्सर रंग रूप का ख्याल रखने के लिए दबाव डाला जाता है. गोरे होने के नए-पुराने सभी नुस्ख़े आज़माएं जाते हैं. बात-बात पर ताना मारा जाता है इसी तरह काली बनी रही तो अच्छे रिश्ते कहां से आयेंगे? क्या इंसान की पहचान उसका रंगरूप है, उसकी शिक्षा और क़ाबलियत कोई मायने नहीं रखती?

गोरे रंग के पागलपन को जूनून तक पहुंचाने का काम फेयरनेस क्रीम के विज्ञापनों ने किया है. सौंदर्य प्रतियोगिता जीतने, नौकरी पाने से लेकर शादी होने तक, सफलता के सारे राज़ को सुंदरता और गोरेपन से जोड़कर प्रदर्शित किया गया.

70 के दशक में यूनीलीवर ने फेयर एंड लवली क्रीम को भारतीय बाज़ार में उतारा और आज इसका प्रतिवर्ष टर्नओवर 40 करोड़ डॉलर तक पहुंच चुका है. 2005 में इमामी ने नया प्रोडक्ट फेयर एंड हैंडसम मर्दों के लिए लांच किया जिसका ब्रांड एम्बेसडर शाहरुख़ खान को बनाया. एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुसार कॉस्मेटिक उद्योग का 2014 तक दुगुना होकर 3.6 अरब डॉलर होने की संभावना है. मुनाफ़ा रंग निखारने की हमारी दीवानगी को ज़ाहिर करता है.

रंग और सौंदर्य पर आधारित इस सामाजिक और सांस्कृतिक धारणा का सामना करने के लिए ‘वोमेन ऑफ़ वर्थ‘ एनजीओ ने ‘डार्क इस ब्यूटीफुल‘ नामक अभियान चलाया. ‘डार्क इज़ ब्यूटीफुल‘ अभियान पर ‘वोमेन ऑफ़ वर्थ‘ की संस्थापक और निदेशक कविता एम्मानुएल का कहना है कि “(1) निश्चित तौर पर हमारा समाज रंग को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित है. ये एक संवेदनशील मुद्दा है जो महिलाओं के आत्मविश्वास के स्तर पर सीधा प्रभाव डालता है और आत्मसम्मान को ठेस को पहुंचाता है.”

कॉस्मेटिक विज्ञापनों के ग़ैर-ज़िम्मेदार रवैये पर कविता का कहना है कि “सभी विज्ञापन बुरा प्रभाव नहीं डालते, निश्चित तौर पर उनमें से कुछ अच्छे विज्ञापन भी हैं और न ही हम विज्ञापन उद्योग के खिलाफ हैं. हम इस उद्योग से सिर्फ इतना चाहते हैं कि वो सत्य के साथ खड़े हों, विज्ञापन के माध्यम से क्या संदेश जायेगा और उसके क्या प्रभाव हो सकते हैं, उसपर उन्हें सोचना चाहिये. आज युवाओं पर वैसे ही कई दबाव हैं, गैर जिम्मेदाराना विज्ञापन इन लोगों में कई आत्म-संदेह पैदा कर सकता है. आज ज़रूरत इस बात की है कि हम मीडिया के छिपे घातक एजेंडे को समझें. हम इसी दिशा में काम कर रहे हैं”

इमामी विज्ञापन पर इस अभियान से जुड़े लोगों ने change.org पर एक याचिका दायर की है, जिसमें कंपनी से फेयर एंड हैण्डसम के विज्ञापन बंद कराने की मांग की है. इस विज्ञापन में शाहरुख़ खान एक युवक को अपनी सफलता का राज़ फेयरनेस क्रीम से आये निखार को बताते हैं.

पिछले दो दशक में भारतीय मध्यम वर्ग ने काफी तरक्की की है, उच्च शिक्षा का स्तर भी अच्छा हुआ है लेकिन लैंगिक और रंगभेदी मुद्दों पर समाज में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया.

‘डार्क इज़ ब्यूटीफुल‘ अभियान फ़िल्म अभिनेत्री नंदिता दास के जुड़ने से और भी चर्चा में आया. बॉलीवुड में गोरे रंग के भेदभाव पर नंदिता कहती हैं “शूटिंग के दौरान एक बार निर्देशक और कैमरामैन ने मुझसे कहा आपको मेकअप कर अपना रंग लाइट करना होगा क्यूंकि आप एक उच्च वर्ग की पढ़ी लिखी महिला का किरदार निभा रही हैं. सांवले रंग पर मेरी राय जानने के बाद भी मुझसे ऐसा कहा गया तो सोचिये दूसरी सांवली लड़कियों के साथ क्या होता होगा! मैं अपनी त्वचा में सहज महसूस करती हूँ. हैरत होती है कि यदि आप सांवली या काली हैं तो आप पर जुग्गी-झोपडी और ग्रामीण महिला का किरदार ही निभा सकती हैं, लेकिन एक पढ़ी लिखी-शहरी महिला के किरदार के लिए सिर्फ गोरे रंग की महिला ही उचित हो सकती.”

बदलाव में वक़्त ज़रूर लगता है लेकिन अहम है इसकी शुरुआत होना. ‘डार्क इज़ ब्यूटीफुल’ के ज़रिये समाज के रंगभेदी नज़रिये को बदलने की पहल हो चुकी है. इसकी अनुभूति हम तनिष्क ज्वेलरी के उस विज्ञापन से कर सकते हैं जिसमें एक गहरे रंग की लड़की जिसके एक बच्ची भी है, का पुनर्विवाह दिखाया है. पुनर्विवाह जो हमारे समाज में बहुत असामान्य है और वो भी एक बच्ची की माँ का..!!

दरअसल, ये बदलाव की आहट है जिसे हमें आगे बढ़ाना है… अब ज़रूरत है कि हम सामाजिक धारणाओं के अनकहे ज़ख्मों को जाने और उन्हें भरने की कोशिश करें और ऐसे समाज का निर्माण करें जो हर तरह के पूर्वाग्रह और भेदभाव से मुक्त हो…

(काशिफ़ अहमद फ़राज़ एक स्वतंत्र पत्रकार और एक्टिविस्ट हैं. उनसे kkashif.peace@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.)

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