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मोदी, मीडिया, चीन और हम…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 7, 2014
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7 Min Read
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Amit Bhaskar for BeyondHeadlines

देश की जनता को महंगाई व भ्रष्टाचार से राहत दिलाने के नाम पर आई मोदी सरकार ने अभी पहले ही हफ्ते में अहसास दिला दिया है कि हम पूर्व के यूपीए सरकार से किसी भी मामले में कम नहीं है. बल्कि उससे कहीं दो क़दम आगे ही हैं.

लेकिन दिलचस्प बात यह है कि गैस के दाम बढ़ते ही सभी मीडिया हाउस के कैमरों का रुख अब बदल गया है. सबकी स्क्रिप्ट बदल चुकी है. इधर मोदी ने भी मंत्रियों को मीडिया से बात ना करने की सलाह दे दी है… अब टाइम्स नाउ के अरनब डिबेट नहीं कराएंगे कि ऐसा क्यों किया? बढ़े हुए गैस की क़ीमत अब देश के लिए किसी भी मीडिया के बहस का मुद्दा नहीं है.

मीडिया के माध्यम से बार-बार कहा जा रहा है कि मोदी भारत को चीन के बराबर लाना चाहते हैं. अच्छी बात है… फिर सबसे पहले भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों को फांसी की सजा का प्रबंध करो. ना इनसे यह काम न हो पाएगा… क्योंकि फिर भाजपा ही खत्म हो जाएगी…

शायद मोदी ‘साहब’ चीन को अच्छे से नहीं जानते… चीन अपने देश में सामान बनाता है और बाहर बेचता है. वो स्वदेशी में विश्वास रखता है. उसके बाद ज़रूरत पड़ने पर ही बाहरी कम्पनियों को बुलाता है, वो भी अपनी शर्तों पर…

चीन अपने देश का उत्पाद अपने देशवासियों को सस्ते में देता है और दूसरों को महंगे में बेचता है. मोदी की तरह अम्बानी को बाहर 4 या 2 डॉलर में गैस देने और अपने ही देश के कुएं से अपने ही देश के गरीब लोगों को 8 डॉलर में गैस देने का आदेश नहीं देता.

चीन में जो गाँव हैं… वहां भी भुखमरी है… गरीबी है… पर शायद मोदी साहब केवल शंघाई की चमक-दमक देख रहे हैं. चीन केवल 500-700 करोड़ में पूरी एक नदी के नाले जैसे पानी को पीने जैसा बना देता है. यहां कई हज़ार करोड़ खर्च करके भी नाला ही रहता है.

एक गुजरात की नदी के कुछ किलोमीटर के एरिया के किनारे पर फर्श बनाकर उसकी नुमाइश करके विकास मॉडल नहीं बनाता चीन. चीन में यदि ज्यादा गर्मी हो, तो ऐसे बच्चों को पढ़ाई में परेशानी को देखते हुए आर्टिफीसियल बारिश करवा दी जाती है. यहां की तरह सरकार बनते ही बिजली कटौती नहीं होती.

चीन शराब कंपनियों से दलाली खाकर उन्हें फायदा पंहुचाने के लिए अनाज नहीं सढ़ाता. चीन अपने सैनिकों के गला काटने वालों के साथ साड़ी और शॉल का खेल नहीं खेलता.

आइये! अब ज़रा आंकड़ों पर नज़र डालें. चीन की 14500 किलोमीटर के तटिय क्षेत्र की रक्षा पद्दति भारत के केवल 7000 किलोमीटर के तटीय क्षेत्र की रक्षा पद्दति से 100 गुना मज़बूत है. चीन के पास 2530 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस है, और भारत के पास 854 बिलियन क्यूबिक मीटर. फिर भी चीन विदेशों में गैस खर्च नहीं करता.

चीन अपनी युवा शक्ति का इस्तेमाल हर साल 280 मिलियन टन स्टील,418 मिलियन टन आनाज, 650 मिलियन टन सीमेंट,2190 बिलियन किलोवाट बिजली और 180 मिलियन टन कच्चे तेल के उत्पादन में लगाता है. जबकि भारत का सो कॉल्ड युवा शक्ति हर साल केवल 45 मिलियन टन स्टील,210 मिलियन टन अनाज,150 मिलियन टन सीमेंट,40 मिलियन टन कच्चा तेल और 557 बिलियन किलोवाट बिजली उत्पादित करता है.

चीन की जीडीपी 2102 बिलियन डॉलर की है और भारत की केवल 750 बिलियन डॉलर यानी 3 गुना कम. चीन की आबादी भारत से ज्यादा होने के बावजूद वहां केवल 131 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और भारत में 273 मिलियन लोग इस रेखा के नीचे हैं. यहां बता दूं कि चीन में 15 या 25 रूपये कमाने  वाले को अमीर नहीं मानते यहां की तरह. आबादी ज्यादा होने के बावजूद पर कैपिटा इनकम हर साल 1498 अमेरिकी डॉलर है, जबकि भारत की केवल 658 अमेरिकी डॉलर.

मोदी साहब इस ‘खाई’ को मीडिया के सहारे अपनी तारीफ़ करवा कर और चंद प्रतीकात्मक काम करके भरना चाहते हैं, जबकि सच्चाई ये है कि जब तक गांव के पंचायत और हर मज़दूर तक उसके हक़ का हिस्सा नहीं पंहुचेगा, तब तक ये सो कॉल्ड विकास केवल कागजों में दिखेगा या दलाली खाए मीडिया चैनलों पर.

लोग विकास को जीडीपी से तौलते हैं. जनाब! कांग्रेस के समय भारत की जीडीपी सबसे मजबूत स्तर पर गयी 2006 में… पर क्या आपको मुझे कोई फर्क पड़ा? क्या महंगाई कम हुई थी? क्या लोगों को नौकरी मिल गयी थी?

ये सारे फोर्मुले जो 25 रूपये कमाने वाले को अमीर बना सकते हैं. कभी भी किसी भी कीमत पर देश बदलने का दम नहीं रखते. ये सरकारी ढकोसले हैं, जो सरकार की पब्लिक इमेज़ बनाती है. मसलन मान लीजिय मोदी देश में बुलेट ट्रेन ले आयें पर उससे हमें और आपको क्या फ़ायदा? उस गांव के किसान और मजदुर को क्या फ़ाएदा जो आज भी रिजर्वेशन तक के पैसे बचाने के लिए जनरल में सफ़र करता है? फ़ायदा फिर अम्बानी या अदानी जैसों का ही होगा. क्योंकि ठेके उन्हें ही मिलेंगे.

आज देश में जहाज़ इतने सारे हैं, पर हममें से कितनों ने उसमें सफर किया है? चीजें कुछ लोग के पास ही हैं. उस तक चंद लोगों की पहुंच है. इससे कोई ज़मीनी विकास नहीं होगा. भारत असली 100% एफडीआई लाने विश्वशक्ति नहीं बनेगा, बल्कि जो संसाधन हमारे पास है उसे हर व्यक्ति की पंहुच में लाने से बनेगा. लोग जिंदगी जीना चाहते हैं, ज़िन्दगी काट-काट कर वो अब थक गए हैं. पर हमारे देश के मीडिया को यह कभी नहीं दिखेगा. यहां तो मोदी चालीसा का पाठ हो रहा है. ऐसे में आप सबसे बस यही अनुरोध है कि आप अपना आंख, कान और हां! दिमाग हो तो उसे भी खुला रखिएगा… फिर दुबारा से मीडिया द्वारा उत्पन्न किसी लहर या सुनामी को मत देख लीजिएगा…

TAGGED:modi media china aur ham
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