तो फिर आपस में ये झगड़ा क्यूं?

Beyond Headlines
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Farhana Riyaz for BeyondHeadlines

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना….. ये पंक्तियां हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं. लेकिन वक़्त गुजरने के साथ ये सिर्फ काग़ज़ पर लिखी हुई पंक्तियां भर रह गई हैं. देश में मौजूदा हालात पर नज़र डाली जाये तो इसका महत्व खत्म होता नज़र आ रहा है.हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया के कोने-कोने में इंसान के साथ बुरा बर्ताव सिर्फ इसलिए हो रहा है कि वो अलग मज़हब से है.

Fascists at Door-Steps – Wake up, Unite and Fightअपने व्यक्तिगत और राजनैतिक फायदे के लिए कुछ स्वार्थी लोग धर्म की आड़ लेकर, इंसानियत को शर्मसार करते हुए भोली जनता में सम्प्रदायिकता के बीज बो रहे हैं. उनको इस तरह गुमराह कर रहे हैं कि एक धर्म के लोग ही दूसरे धर्म के लोगों की समस्याओं की जड़ हैं. भोली जनता इन स्वार्थी और धूर्त लोगों की चाल में फंस कर एक दुसरे के कट्टर विरोधी बन जाती है और  फिर धर्म के नाम पर जो दंगे होते हैं, उसमें इंसानियत कैसे पनाह मांगती है, उसके कुछ उदाहरण आप मुज़फ्फरनगर, असम और पुणे में हुए दंगो में देख सकते हैं.

धर्म के आड़ में हुए इन दंगो में सिर्फ जान माल की ही क्षति नहीं होती, बल्कि लोगों की भावनाएं भी आहत होती हैं. राजनेताओं की चाल में फंसकर आपस में लड़ने वाली भोली जनता शायद नहीं जानती कि इन दंगो में कोई राजनेता नहीं मरता… कोई अमीर नहीं मरता… कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं मरता, बल्कि मरता है तो सिर्फ इंसानियत… मरते हैं वो निर्दोष जिसे सुबह-शाम अपनी रोज़ी रोटी के तलाश के अलावा कुछ नहीं सूझता…

अपने स्वार्थ और वर्चस्व की लड़ाई को धर्म की आड़ लेकर लोगों को धर्म के नाम पर लड़ाने वाले और मानवता को कलंकित करने वाले धर्म के ठेकेदार, शायद ये नहीं जानते कि दुनिया का कोई धर्म नहीं कहता कि दूसरे धर्म के लोगों की हत्याएं करो.संसार के सभी धर्मों में केवल एक ही जाति है… वो है मानवता….यदि देखा जाये तो सभी धर्म एक ही शिक्षा देते हैं… तो फिर आपस में ये झगड़ा क्यूं?

दरअसल, धर्म की आड़ लेकर अपने स्वार्थ और वर्चस्व की लड़ाई लड़ने वाले राजनेताओं को डर होता है कि अगर सभी नागरिक एकजुट होकर अपने आर्थिक विकास और बढ़ती महंगाई को लेकर सरकार और व्यवस्था को कोसते हुए संगठित  हो जायेंगे तो ये उनके लिए शुभ संकेत नहीं होगा. इसलिए राजनितिक पार्टियां मनुष्य में धर्म के पवित्र आदर्शों के बीज अंकुरित नहीं होने देना चाहती है.यही वजह है कि इन राजनीतिक पार्टियों की शक्ति और अहं की बढ़ती अभिलाषा ने आज धर्म को यातना और उत्पीड़न का साधन बना दिया है.

मेरा अपने देशवासियों से अनुरोध है कि राजनीतिक पार्टियों का एजेंडा चाहे जो भी हो,हमें अपने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर लगे साम्प्रदायिकता के इस दाग़ को मिटाना होगा.माहौल को ठीक करने का ज़िम्मा भी हमें ही लेना होगा.हमें इस पर सिर्फ बात नहीं करनी होगी, बल्कि अमल में भी लाना होगा.आपस में प्रेम, विश्वास और इंसानियत के साथ रहकर आपसी भाईचारे को कायम करना होगा.

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