कोर्ट का नोटिस : क्यों नहीं दिया आरटीआई के तहत फोन टैपिंग की जानकारी?

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BeyondHeadlines News Desk                 

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा विगत दस वर्षों से की गयी फोन टैपिंग की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत नहीं दिये जाने पर गृह और सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

दरअसल, भोपाल की प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता रोली शिवहरे ने पिछले दिनों आरटीआई के ज़रिए राज्य में होने वाले फोन टेपिंग की जानकारी मांगी थी, जिसका जवाब देने से सरकारी अधिकारियों ने मना कर दिया था. तब उन्होंने जनहित याचिका के माध्यम से कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

18 जून को मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस आलोक आराधे की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई. इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता रोली शिवहरे का पक्ष अधिवक्ता राजेश चंद व सौमित्र दुबे ने रखा.

उन्होंने दलील दी कि जनहित व भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में आरटीआई एक्ट के तहत अपेक्षित जानकारी हासिल की जा सकती है. इस प्रावधान के बावजूद प्रदेश के गृह विभाग ने पिछले दस सालों की अवधि में जो फोन कॉल रिकॉर्ड किए उनके बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने से साफतौर पर इंकार कर दिया.

इस संबंध में दाखिल की गई आरटीआई के आवेदन को यह कहते हुए खारिज किया गया कि सरकार ने आरटीआई की धारा 24(2) में दिए गए अधिकार का प्रयोग करते हुए विशेष शाखा पुलिस मुख्यालय, गृह विभाग की सी शाखा, सीआईडी और आरपीएफ को सूचना के अधिकार से बाहर कर दिया है. इस संबंध में सरकार ने 30 अगस्त 2007 को गजट अधिसूचना जारी की है.

लेकिन याचिका में सरकार द्वारा जारी गजट अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा गया कि आरटीआई की धारा 8(1) जी और 8(1) एच में प्रावधान है कि खुफिया और सुरक्षा संबंधी जानकारी देने से सरकार इंकार कर सकती है जबकि आरटीआई की धारा 24(2) के दूसरे भाग में यह प्रावधान है कि सरकार भ्रष्टाचार और जनहित से जुड़े मामलों की जानकारी देने से इंकार नहीं कर सकती.

याचिका पर अगली सुनवाई 22 जून को निर्धारित की गयी है.

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