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Reading: रमज़ान, ईशभय और भारतीय समाज
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BeyondHeadlines > Lead > रमज़ान, ईशभय और भारतीय समाज
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रमज़ान, ईशभय और भारतीय समाज

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 7, 2014
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20 Min Read
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Masihuzzama Ansari for BeyondHeadlines      

भारत अपनी विशिष्टता के कारण दुनिया में एक अलग स्थान रखता है. भारत की बहुत सारी विशेषताएं हैं जो दुनिया के किसी और देश में देखने को नहीं मिलती. यहां की विभिन्नता इसे विश्व के अन्य देशों से बिलकुल अलग करती है. इस देश में अनेक धर्मों व सांप्रदायों के लोग सदियों से एक साथ निवास करते आए हैं. सभी की अपनी–अपनी सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताएं हैं जो इनकी पहचान है.

सभी धर्मों के लोग अपनी आस्था के अनुसार तीज, त्योहार, व्रत तथा धार्मिक अनुष्ठान आदि करते रहते हैं. इन सभी कार्यों के पीछे इनकी ‘आस्था’ केन्द्रित होती है. पाप से मुक्ति व परलौकिक सुख की कल्पना इन्हें सत्कर्म के लिए प्रेरित करती है. भारत का संविधान भी सभी धर्मों का सम्मान करता है तथा अपनी आस्था के अनुसार धर्म पालन व प्रचार की स्वतन्त्रता प्रदान करता है.

देश में मुसलमान भी अपनी धार्मिक पहचान के साथ रहते हैं तथा इस्लाम धर्म के अनुसार अपना जीवन यापन करते हैं.

इस्लाम धर्म : इस्लाम का अर्थ है “शांति” या “अम्न”…  इस्लाम धर्म केवल धर्म ही नहीं, बल्कि “दीन” है. धर्म और दीन में जो बुनियादी फर्क है वो ये की धर्म पूजा पाठ, शादी ब्याह, धार्मिक कर्म काण्ड, तथा ईश्वर की उपासना आदि तक सीमित होता है. परंतु जब हम दीन की बात करते हैं तो इस में ईश्वर के उपासना के साथ–साथ मानव जीवन के सम्पूर्ण क्रियाकलाप सम्मिलित होते हैं. इसीलिए पवित्र कुरान में इस्लाम को केवल धर्म अर्थात पूजा  पाठ का माध्यम ही नहीं, बल्कि इसे दीन बताया गया है. यानी मानव जीवन के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक पहलू आदि भी शामिल होते हैं.

इस्लाम मानव जाती  की सम्पूर्ण समस्याओं के कारण तथा उसका निवारण भी प्रस्तुत करता है. इस्लाम धर्म चूंकि एक  दीन है और पूरी मानव जाती के लिए आया है और इसमें सम्पूर्ण मानव जाति के कष्टों का निवारण है इसलिए इसका संदेश केवल मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पृथ्वी के सभी मानव के लिए है. रमज़ान का पवित्र माह भी इसका एक उदाहरण है जिसमें संसार के मनुष्यों को आध्यात्मिक व सामाजिक परिवर्तन का एक क्रांतिकारी संदेश दिया गया है.

रमज़ान: रमज़ान अरबी महीनों का एक नाम है. अल्लाह ने इस माह में व्रत अर्थात रोज़े रखना सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य किया है. सभी मुसलमान सूर्योदय के पूर्व से सूर्यास्थ तक जल तथा भोजन आदि ग्रहण नहीं करते क्योंकि एक सीमित समय के लिए ये उनके लिए वर्जित है. बच्चों के लिए ये अनिवार्य नहीं परंतु जो चाहे रोज़े रख सकता है.

रमज़ान के इस पवित्र माह के बहुत सारे क़ीमती व कल्याणकारी सन्देश हैं जो मानव जाती की आत्मा को पवित्र करने और देश तथा समाज से बुराइयों को मिटाकर एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं.

आध्यात्मिक क्रांति का सन्देश: रमज़ान के पवित्र माह में व्रत रखना आध्यात्मिक रूप से मानव जाती को मज़बूत  बनाए रखना है. अल्लाह ये चाहता है कि मनुष्यों की आत्मा को पवित्र किया जाए ताकि उनके अंदर मानवता जन्म ले और परवान चढ़े. व्रत रखने से इंसान की आत्मा पवित्र होती है तथा उनके अंदर ईशभय पैदा होता है. रमज़ान के पवित्र माह में व्रत रखने की अनिवार्यता का उद्देश्य ही यही है कि मानव के हृदय में इशभय व्याप्त हो जाए. चूंकि इस्लाम एक सामाजिक परिवर्तन के लिए मानव जाती को प्रेरित करता है, और किसी भी परिवर्तन के लिए हृदय का पवित्र होना आवश्यक है. इसलिए एक माह लगातार रोज़े रखकर खुद को आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाना है.

ये इसलिए आवश्यक है क्योंकि जिस क्रांति व परिवर्तन कि बात इस्लाम करता है उसके लिए ये प्रथम व अनिवार्य शर्त है. दुनिया ने बहुत सारी क्रांतियाँ देखी हैं परंतु उन क्रांतियों कि वास्तविकता इतनी कठोर है कि आप उसे सहन नहीं कर सकेंगे. जिन क्रांतियों में औरतों, बच्चों, बूढ़ों, घरों तथा फसलों को भी बर्बाद कर दिया गया और दुनिया में इसे सामाजिक बदलावों व परिवर्तन के नाम से प्रचारित किया गया ऐसे आंदोलनों को सामाजिक भ्रांतियाँ तो कहा जा सकता है पर इसे क्रांतियाँ कहना मानवता को धोखा देना है.

इसी प्रकार देश में आध्यात्मिकता के नाम पर यहाँ कि भोली भाली जनता की आस्था के साथ जो मज़ाक किया जाता है उसकी कड़े शब्दों में आलोचना होनी चाहिए. देश में बहुत सारे साधु-सन्तों के ऐसे चेहरे सामने आए हैं जो आध्यात्मिकता की आड़ में काले धंधे चलाकर करोड़ों-अरबों रूपय के मालिक बन बैठे तथा आस्था के नाम पर यहाँ की जनता का केवल आर्थिक शोषण ही नहीं, बल्कि उनका शारीरिक तथा मानसिक शोषण भी करते थे. यहाँ की जनता जब दुनिया के छल-कपट से दूर आत्मा कि शांति के लिए आध्यात्मिक सुख प्राप्त करना चाहती है तो वहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगती है.

ऐसे में पवित्र माह रमज़ान इंसान को उन आध्यात्मिक सुख का सन्देश देना चाहता है.

जहां उसका हृदय व आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं. जिस प्रकार स्वस्थ शरीर मे स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है उसी प्रकार पवित्र हृदय व पवित्र शरीर में ही पवित्र आत्मा का वास होता है. पवित्र आत्मा के बिना किसी व्यक्ति का शरीर स्वस्थ हो ही नहीं सकता और यदि कोई ऐसा कहता है तो उसका ये दावा झूठा है.

इस्लाम इस आध्यात्मिक सुख की अनुभूति सभी मानव जाती को कराना चाहता है ताकि हम सामाजिक परिवर्तन के लिए खुद को तैयार कर सकें. इसी लिए रमज़ान का ऐक माह इसके लिए सुनिश्चित किया गया है.

ईशभय (तकवा) की आवश्यकता : ईशभय इंसान के हृदय को पवित्र बनाए रखता है तथा इसे गलत कार्यों से दूर रखता है. जब इंसान के हृदय में ईशभय व्याप्त हो जाता है तो वह किसी और भय से भयभीत नहीं होता. कुरान में रमज़ान के रोज़े या व्रत का उद्देश्य बताते हुए यही बात कही गई है कि तुम्हारे ऊपर व्रत अनिवार्य ही इसीलिए किया गया है कि तुम में ईशभय व्याप्त हो जाए. केवल ईशभय पैदा करने के लिए एक माह का व्रत अनिवार्य करना ये दर्शाता है कि इंसानी समाज के लिए ये कितना आवश्यक है. हम किसी देश के कानून से, किसी की नज़रों से तो बच सकते हैं पर ईश्वर कि निगाह से नहीं बच सकते क्योंकि वो सर्व व्यापी है और हमारे हृदय कि बातों को भी जानता है.

जब किसी समाज का निर्माण ईशभय कि बुनियाद पर किया जाएगा तो वहाँ भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए किसी लोकपाल विधेयक की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. निःसन्देह ऐसे समाज को भ्रष्टाचार से मुक्ति अवश्य मिल जाएगी.

रमज़ान में पवित्र कुरान का अवतरित होना : रमज़ान के महीने की एक विशेषता ये भी है की इसमें अल्लाह ने मानव जाती के मार्गदर्शन लिए अपने अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद सल्ल0 पर पवित्र कुरान अवतरित किया. पवित्र कुरान में जहां रमज़ान का वर्णन किया गया है वहीं इस बात का भी ज़िक्र किया गया है की इस कुरान को रमज़ान के महीने में अवतरित किया गया है जो सारी इंसानियत की भलाई व मार्गदर्शन के लिए है.

इस पंक्ति में सबसे महत्वपूर्ण बात जो कही गयी है वो यही है कि ये अंतिम आसमानी पुस्तक केवल मुसलमानों के लिए नहीं भेजी गयी बल्कि संसार के सभी मनुष्यों के लिए भेजी गयी और ये पवित्र पुस्तक जीवन के हर क्षेत्र में सभी इन्सानों का मार्गदर्शन करती है. जब हम कुरान को इस दृष्टी से पढ़ेंगे तो ये स्पष्ट हो जाएगा कि इस पवित्र पुस्तक में हर उस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया गया है जिनका सामना वर्तमान में हमारा देश और समाज कर रहा है. वो समस्याएँ चाहे गरीबी हो, अशिक्षा हो, भुखमरी हो, आर्थिक मंदी हो, स्त्री का अपमान हो या धार्मिक उन्माद हो.

पवित्र कुरान जो रमज़ान में अवतरित हुई और जो पूरी मानवता के लिए भेजी गयी उस के पवित्र सन्देश को कुछ पंक्तियों मे बताना तो अत्यंत कठिन है परंतु ये बात तो सार्वभौमिक सत्य है कि कुरान का सन्देश मानव जाति की पीड़ा व दर्द का निवारण है. वैसे तो कुरान का मतलब ही “पढ़ी जाने वाली किताब” है अर्थात इस पवित्र पुस्तक को सदैव पढ़ते रहना चाहिए पर रमज़ान के इस पवित्र माह में कुरान को पढ़ना और उसके संदेशों का पालन सदैव करते रहना बड़े ही पुण्य का काम है.

 

संघर्ष के लिए प्रेरणा : रमज़ान में अल्लाह के आदेश के अनुसार व्रत के हालत में व्यक्ति दिन भर जल तथा अन्न ग्रहण नहीं करता तो उसे भूख और प्यास का एहसास होता है परंतु इसे वो ईश्वर का आदेश मानकर खुशी से स्वीकार करता है. दूसरी तरफ ये भूख प्यास का एहसास उन हजारों लाखों लोगों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है जिनके लिए भोजन बड़ा दुर्लभ है और वो अक्सर भूखे पेट ही सो जाया करते हैं. रमज़ान का ऐक सन्देश ये भी है कि जब इंसान खाने-पीने के पर्याप्त साधन रहते हुवे भी भूखा हो तो वो अपने आस-पास उन लोगों के बारे में सोचे जिनके पास अन्न नहीं और वो भूखे हैं तो उस समय इंसानियत के दर्द को बड़े नजदीक से महसूस किया जा सकता है.

समाचारों में सुनने, अखबारों और पुस्तकों में पढ़ने से भूखे लोगों की या भूख से मौत की सूचना तो मिल सकती है लेकिन भूख का अनुभव नहीं किया जा सकता. परंतु रमज़ान में जब हम प्यास और भूख को महसूस करते हैं तो ये सिर्फ भूख और प्यास नहीं, बल्कि उन लोगों के दर्द को हम महसूस करते हैं जो एक इंसान हैं, जो हमारे ही जैसे हैं परंतु देश की लाचार व्यवस्था ने व पूंजीवादी मानसिकता ने उन्हे उनके हक़ से महरूम कर दिया है. इस प्रकार लाखों-करोड़ों लोग अपने ही देश में अपने ही लोगों के द्वारा अपने हक़ से महरूम हैं.

रमज़ान के इस पवित्र माह से हमें ये भी सन्देश मिलता है कि सभी इन्सानो को दूसरों के हक़ व इंसाफ दिलाने के लिए संघर्ष करना चाहिए. इस प्रकार इस्लाम केवल व्रत, नमाज़ आदि को ही धर्म नहीं कहता बल्कि सम्पूर्ण मानव जाती के न्याय, उनके अधिकारों के लिए संघर्ष व उन्हे इन्सानों कि गुलामी से आज़ाद करने को भी धर्म बताता है. ऐसे में रमज़ान के इस पवित्र माह से हमें निरंतर संघर्ष कि प्रेरणा भी मिलती है.

ईशभय (तकवा) और सामाजिक बदलाव : भारत में सामाजिक बदलाओ पे बहुत ही चर्चा हुई है और आए दिन होती ही रहती है परंतु ये बदलावों केवल चर्चा तक ही सीमित रहता है तथा इसका असर समाज में नहीं पड़ता. इसका सबसे मुख्य कारण ये है कि हम कभी समस्याओं कि जड़ में नहीं जाते और यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है. ज़्यादा से ज़्यादा हम किसी कठोर कानून या सज़ा कि बात करते हैं (सिर्फ बात ही करते हैं) लेकिन किसी सज़ा कि ज़रूरत तो अपराध के बाद पढ़ती है और इतिहास गवाह है कि कभी भी केवल सज़ा मात्र से समाज नहीं बदला है, कभी भी कानून बना देने से ही अपराध नहीं खत्म हो गया है.

इस बात पर भी विचार करना होगा कि ऐसा क्या हो कि व्यक्ति अपराध कि तरफ ही अपना कदम ना बढ़ाए. निःसंदेश अल्लाह के सर्वव्यापी होने का ऐहसास ही इंसान को पाप से दूर रखता है. व्यक्ति के हृदय में अल्लाह का गहरा और सच्चा प्रेम पैदा हो जाए तो उसका कदम बुरे कार्यों कि तरफ नहीं जाता. इंसान जिस से सच्चा प्रेम करता है उसे कभी धोखा नहीं देता.

रमज़ान का उद्देश्य ही यही है कि इंसान के दिल मे तकवा पैदा हो जाए यानि ईशभय उसके हृदय में प्रवेश कर जाए. किसी भी सामाजिक बदलाओ कि शुरुआत अच्छे व चरित्रवान लोगों से ही होती है और अच्छा चरित्र अच्छे विचारों से ही बनता है. इस्लाम रमज़ान में तकवा (ईशभय) के जरिये हमारे अंदर ऐसे ही विचार, चरित्र व गुणों को पैदा करना चाहता है ताकि हम सामाजिक बुराइयों के खिलाफ मजबूती के साथ खड़े हो सकें और इस देश में समाजिक बदलाओ के स्वप्न को हक़ीक़त में तब्दील कर दें.

भारतीय समाज की निर्धनता : भारतीय समाज में जो निर्धनता है हम सभी उस से भली भांति अवगत हैं. अमीर और गरीब में ज़मीन आसमान का फर्क है. मुट्ठीभर लोगों के हाथ में देश देश की 80 % से ज़्यादा पूंजी है और देश का आम जन मानस आर्थिक संघर्ष से जूझ रहा है. समय–समय पर सरकारें भी पूंजी के विकेन्द्रीकरण के लिए कदम उठाती हैं परंतु समय के साथ उन क़दमो की आहट दम तोड़ देती हैं और दूसरी तरफ देश के गरीब भूख से दम तोड़ देते हैं.

इस्लाम अपने मानने वालों को ये आदेश देता है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा दान करें, अपने आस-पास के लोगों के आवश्यकताओं को महसूस करें और उनकी सहाएता करें. क्यों कि ये ज़रूरी नहीं कि हर व्यक्ति अपनी जरूरतों को आप के सामने रखे या आप के आगे हाथ फैलाये. इस्लाम सभी कि इज्ज़त का खयाल रखता है चाहे कोई गरीब हो या अमीर। रमज़ान के इस पवित्र माह में भी लोगों को ये आदेश है कि वो गरीबों और जरूरतमंदों कि सहएता करें.

इस्लाम अमीरों को ये आदेश देता है कि वो अपनी पूंजी का ऐक निश्चित हिस्सा गरीबों को दान करें जिसे ज़कात कहते हैं. हालांकि ये राशि किसी भी महीने में दी जा सकती है परंतु अधिकतर लोग रमज़ान के महीने में ही अपनी जमा पूंजी का 2.5 % अल्लाह के आदेश के अनुसार गरीबों को दान करते हैं. ये राशि हर उस मुस्लिम पर अनिवार्य है जो दौलतमंद है.

ऐसा करने से देश में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं मरेगा. क्यों कि देश में जितने अमीर हैं वो अगर ईमानदारी से अपनी जमापूंजी का 2.5 % गरीबों को दान करें तो भारत गरीबी पर विजय पालेगा जो कि आज़ादी के 67 साल बाद भी ऐसा संभव नहीं हो सका है. इस प्रकार इस्लाम केवल पूजा-पाठ के तरीके ही नहीं बताता बल्कि समाज के ज्वलंत मुद्दों को भी हल करता है.

भारतीय समाज में रमज़ान : हमने देखा कि किस प्रकार रमज़ान का महीना अपने अंदर बहुत सारे पहलुओं को समेटे हुए है. ऐक तरफ ये आध्यात्मिकता का सन्देश देता है तो दूसरी तरफ सामाजिक परिवर्तन का, कहीं ये हमारे समाज कि गरीबी को मिटाने का मंत्र देता है तो कहीं भ्रष्टाचार से मुक्ति का. कहीं अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए प्रेरित करता है तो कहीं बुराई से दूरी का सन्देश देता है.

वैसे तो सभी धर्मों के त्योहार कुछ न कुछ सन्देश अवश्य देते हैं. परंतु रमज़ान का सन्देश हमें ऐक अल्लाह पर गहरी आस्था के साथ-साथ अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करता है तथा हमे ऐसे समाज कि स्थापना के लिए उकसाता है जहां पर गरीबी व भुखमरी ना हो, जहां धर्म, आस्था व अध्यात्मिकता के नाम पर लोगों को ठगा न जाए, जहां इंसान-इंसान कि इज्ज़त करें जहां भूख इंसानों कि जान ना ले.

अगर कम शब्दों में कहा जाए तो रमज़ान का पवित्र माह हर साल ऐक माह के निरंतर परिश्रम के द्वारा हमें आध्यात्मिक व सामाजिक क्रांति के लिए तैयार करता है और हमारे दिलों में एक अल्लाह की मुहब्बत पैदा करता है. इस पवित्र माह से हमे जो सीख मिलती है वो भारतीय समाज और देश कि पीड़ा के लिए औषधी से कम नहीं है. ये सन्देश दम तोड़ती इंसानियत के लिए अमृत है.

ऐसा इसलिए कि रमज़ान, कुरान या इस्लाम का सन्देश केवल मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है. ये केवल किताबी बातें नहीं, बल्कि दुनिया में ऐसे बहुत सारे उदाहरण मौजूद हैं जिन्होंने इन शिक्षाओं पर अमल किया तो अच्छा समाज वजूद में आया.

हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय समाज भी तकवा अर्थात ईशभय को अपनाएगा और ऐक ऐसे समाज को जन्म देगा जहां हिंसा, अन्याय, सांप्रदायिकता का खात्मा होगा और प्रेम, एकता व अखण्ड्ता को बढ़ावा मिलेगा. यही रमज़ान का पवित्र सन्देश है और इसपर अमल करना हमारा कर्तव्य….

(मसीहुज़्ज़मा अंसारी छात्र संगठन एस.आई.ओ. के राष्ट्रीय सचिव हैं)

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