मानव-हाथी संघर्ष में 198 लोगों के साथ 14 हाथियों की मौत…

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BeyondHeadlines News Desk

जंगलों की अंधाधुंध कटाई का सीधा असर अब मानव पर पड़ना शुरू हो गया है. विकास के नाम पर हो रहे इस खेल के कारण छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष में लगातार इज़ाफा हो रहा है. बल्कि स्थिति यह है कि हाथियों के हमले से मरने वाले लोगों की संख्या में आठ गुनी वृद्धि हुई है. इस तथ्य का खुलासा हाल में ग्रीनपीस द्वारा जारी एक रिपोर्ट “एलिफेंट इन द रुम” से हुआ है.

इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2005 से 2013 के बीच छत्तीसगढ़ के चार वन प्रभागों दक्षिण सरगुजा, कटघोरा, कोरबा और धर्मजयगढ़ में 14 हाथियों की बिजली के झटके से मौत हुई. इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 198 मानव मौत हुई. राज्य में 2004 से 2014 के बीच  8,657 घटनाएं संपत्ति नुक़सान और 99,152 घटनाएं फ़सल नुक़सान की दर्ज की गयी. इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 2140.20 लाख मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया. इसके बावजूद सरकार पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. राज्य सरकार इस मामले को सुलझाने में पूरी तरह से नाकाम है.

इस रिपोर्ट के लेखक नंदीकेश शिवलिंगम बताते हैं कि “इन वन प्रभागों में हाथियों की मौजूदगी के स्पष्ट सबूत और कोरबा तथा धर्मजयगढ़ के जंगलों को बचाने के लिये विशेष संस्थाई निकायों की सलाह के बावजूद सरकार संभवतः खनन हितों के लिये प्रस्तावित लेमरु हाथी रिजर्व के प्रस्ताव से पीछे हट गयी है. यह जंगल न सिर्फ हाथियों के लिए पर भालू, तेंदुओं और संभवतः बाघों के लिए घर है. पर यह विडंबना है कि केंद्र से लेमरू के लिए 2007 में हरी झंडी मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने इसे रद्द कर दिया.”

इस विडंबना की ओर इशारा करते हुए गोल्डमैन इनवॉयरमेंट पुरस्कार के विजेता कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल का कहना है कि “राज्य द्वारा इन जंगलों से दूर हाथियो के लिये सुरक्षित क्षेत्र का प्रस्ताव स्पष्ट रुप से इस समस्या का कोई हल नहीं है. हाथियों ने छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहना और प्रजनन करना शुरू कर दिया है. राज्य को उथले समाधान सुझाने बंद कर देने चाहिए जो असल समस्या को हल नहीं करते. इससे राज्य के लोगों और हाथियों की जिन्दगी का नुक़सान हो ही रहा है, साथ ही लोगों को पैसे की क्षति भी हो रही है. इसलिए राज्य के लोगों और वन-जीवन की सुरक्षा के लिए एक सक्षम रणनीति की ज़रुरत है.”

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