भैय्या तो रहते हैं दूर … कैसे मनाएं भैया दूज ?

Beyond Headlines
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Deepak Jha for BeyondHeadlines

शमशेर (बदला हुआ नाम) बिहार के समस्तीपुर जिले का रहने वाला है. फोटो न लगाने की शर्त पर बात करना शुरू करता है.

“बात करते-करते बैलेंस खत्म हो गिया है… बहीनी रो रही है… माई बोल रही थी कि सुलेखा (छोटी बहन) अभी 9वीं में पढ़ रही है. घरे पर… दिवाली से पहिले से ही मेरे घर आवे के खातिर अनघोल किए है. ओहु में आज भरदुतिया है. आप तो जानते ही हैं कि ई भाई-बहिन का पर्व होत है. सिजन छोड़ के आप ही कहिए भैया कैसे चल जाएं? छठ तक काम खुब रहता है एक मिनट का फुर्सत नाही है.”

शमशेर अपने मोबाईल के इनबॉक्स से एक हिन्दी में सुलेखा के नाम से आया हुआ मैसेज़ निकाल कर पढ़ने को देता है.

“पढ़ीए देखिए का लिख के भेजी है. पगली!”

मैसेज में लिखा है – “भैया तो रहते दूर… कैसे मनाए भैयादूज?”

लुधियाना में एक मोबाईल की दुकान पर शमशेर से अचानक मुलाकात हो गई है. उम्र पच्चीस साल… क़द काठी में पतला दुबला… आंख के आसपास काला घेरा –जो बहुत कुछ बिना कहे बयां कर जाता है. पेशे से दर्जी है पर यह पेशा उसने खुद चुना या इसे मजबूरी में चुनना पड़ा होगा, पुछना ज़रा मुश्किल है.

खैर, यह भी उन लाखों बदनसीबों में से है, जो अपनी रोजी-रोटी के खातिर अपनी मिट्टी, अपना धरौंदा छोड़ कर किसी अजनबी शहर में रहने को विवश है. शिक्षा के नाम पर उसके पास कहने को केवल 6 वीं पास की डिग्री है पर शर्म के मारे शमशेर इससे ज्यादा खुद को मुर्ख कहना ज्यादा पसंद करता है.

शमशेर के मुहं से इस भैया दूज पर्व का नाम सुन मुझे भी घर की याद आ गई. आसपास के सभी 7-8 बहने जब इकठ्ठा हो जाती थी तो 15 मिनट तक पीढी से उठना मुश्किल हो जाता था. लंबी आयु के लिए सभी के हाथों से अंकुरी खाने को मिलती थी और साथ में मिलता था सुबह से शाम तक अलग-अलग प्रकार के लजीज़ व्यंजन… यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहता था. बड़ी बहनों की दरियादिली की वज़ह से कुछ सौ सैकड़ों की आमद भी हो जाया करती थी.

दरअसल,  दिवाली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला यह हिन्दु पर्व यम द्वितीया या भैया दूज के नाम से जाना जाता है. इसे भाई बहन का पर्व माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन के यहां भोजन करेगा, उसे यमराज का भय नहीं रहेगा.

एक किंवदंती यह भी है कि सूर्य का पुत्र यमराज और पुत्री यमुना दोनों भाई-बहन हैं. इस दिन यमुना ने अपने भाई यमराज से यह वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, उसी प्रकार  हर भाई अपनी बहन के घर जाए तथा भाई अपने बहन के घर जाकर उनके हाथों से बनाया भोजन करे ताकि उनकी आयु बढ़े. तभी से भाई दूज (भैया दूज) मनाने की प्रथा चली आ रही है.

जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज (भैया दूज) पर अवश्य जाते हैं और उनसे टीका कराकर उपहार आदि देते हैं. बहनें पीढियों पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं. इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं.

इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं. उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे-धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए मंत्र बोलती हैं, जैसे “गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े.”

इस आडम्बर में भले मेरी आस्था अब बाकी न रही हो, पर एक चीज़ है जो मुझे इससे जोड़े हुए है वह है भाई बहनों का अटूट रिश्ता… रिश्तों के अभाव वाले इस दौर में कुछ तो हैं जो हमें और हमारे रिश्तों को आज तक बचाए हुए हैं.

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