रजिया! तुम और मुसलमानों से अलग हो…

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Razia Ansari for BeyondHeadlines

ग्रेजुएशन में मेरी एक दोस्त थी. और अभी भी वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है. अंशु सिंह नाम है. मेरे घर और कॉलेज के रास्ते के बीच उसका घर पड़ता है. हम उसको रिसीव करते और फिर साथ हम कॉलेज जाते.

वो हमें बहुत मानती थी. और क्लास ओवर होने के बाद हमें अपने घर ले जाती. उसे नये-नये पकवान बनाने का बहुत शौक था. और सबसे ज्यादा हमें खिलाने का… पर एक चीज़ हम दोनों के बीच था, वो था जात–पात व धर्म की एक दीवार… जो हमें कभी नज़र नहीं आई.

अंशु धर्म में बहुत विश्वास करती थी. हमसे लाख मुहब्बत होने के बाद भी चूंकि हम मुसलमान थे तो वह हमें अलग बर्तन में खाने को देती. पर हमने कभी माइंड नहीं किया. और न ही कोई ख्याल दिल में आया. जब वो हमारे घर आती तो हम भी उसका एहतेमाम करते. पर हमने उसके लिए अलग बर्तन का इस्तेमाल नहीं किया.

एक दिन वह हमसे बोली –”रजिया तुम और मुसलमानों से अलग हो. तुम बहुत अच्छी हो.”

हमने पूछा कि तुम्हारे नज़र में और मुसलमान कैसे हैं? वह बोली मेरी बुआ कहती है कि मुसलमान हिन्दुओं से नफ़रत करते हैं और जब मन्दिर देखते हैं तो थूकते हैं. ये सुनकर हमें बहुत हैरानी हुई. हमने उससे पूछा कि ये बात तुम्हारी बुआ तुम्हें कब बताई थीं. वह बोली बचपन में. हम बोले तुम अभी बड़ी नहीं हुई क्या?

हमने उसे फिल्म “माई नेम इज़ खान” का एक डायलॉग बताया. जिससे हम खुद भी बहुत प्रभावित थे. “दुनिया में सिर्फ दो तरह के इंसान होते हैं. एक अच्छे और एक बुरे. और वो अच्छे बुरे दुनिया के हर कोने में, हर समाज में, हर धर्म में होते हैं.”

अगर इंसान कोई अच्छा काम करता है तो लोग पर्सनली उस इंसान की तारीफ करते हैं और जब बुरा काम करता है तो लोग कहते हैं “हां वो हिन्दू है न इसलिए ऐसा किया. या मुसलमान है न इसलिए” वगैरह वगैरह….

मेरी बात मेरी दोस्त को बहुत अच्छे से समझ में आ गई. अब स्थिती ये है कि हम एक बर्तन में खाना खा लेते हैं और एक गिलास से पानी भी पीने में कोई हर्ज नहीं है. पर अफसोस अभी बहुत से लोग ऐसे हैं जो ऐसी ज़ेहनियत के शिकार हैं. उनको कोई कैसे समझाए? जो धर्म के पैरोकार बने हैं, वो धर्म के नाम पर लोगों के दिलों में नफ़रत बो रहे हैं, जबकि धर्म तो सिर्फ और सिर्फ प्यार सिखाता है…

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