राष्ट्रीय बालिका दिवस : आईए अपनी सोच बदलें

Beyond Headlines
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Siraj Mahi for BeyondHeadlines

19 वर्षीय अनिल जो यूपी के जरवल कस्बा में रहते हैं. अनिल खुशी-खुशी बताते हैं कि बाहर शौच के लिए जाना मतलब एक तीर से दो निशाना… एक तो सुबह की सैर हो जाती है और दूसरे शौच वाला भी काम हो जाता है.

लेकिन जब उनसे पूछता हूं कि अगर आपके घर से आपकी मां-बहन बाहर शौच के लिए जाती हैं और खेतों में लोग काम कर रहे होते हैं और उन्हें शौच के लिए जगह नहीं मिलती तो इस पर आप क्या कहेंगे? तो उनका सिर शर्म से झुक जाता है. शायद उनके पास कोई जवाब नहीं था.

आसाम निवासी सादिक़ जो दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन में काम करते हैं, कहते हैं कि गांवों में अक्सर औरतें खाना कम खाती हैं ताकि उनको शौच के लिए दिन में न जाना पड़े. वह अक्सर सूरज निकलने के पहले या सूरज डूबने के बाद शौच के लिए जाती हैं. इसी का फायदा गांव के कुछ असभ्य लड़के उठाते हैं. जिससे आए दिन न जाने कितनी खबरें अखबारों में आती हैं. औरतों का कम खाना उनकी सेहत के लिए भी खतरा बन जाता है.

उत्तरप्रदेश के जनपद बहराईच निवासी शफीक बताते हैं कि हमें घर में पैखाना और पास का समधियाना पसंद नहीं है.

कहने को तो यह छोटी बातें हैं लेकिन आज भी हमारे गांव की स्त्रियों की यही कहानी है. और इसके पीछे एक अहम वजह है शिक्षा की कमी…

गांवों में अक्सर देखा गया है कि लड़कियों के साथ दो तरह का व्यवहार किया जाता है.  लड़कियों को अगर कक्षा पांच तक शिक्षा मिल जाये तो बहुत बड़ी बात है. लड़कियों को ज्यादातर घर के काम में ही व्यस्त रखा जाता है. हर बार उनको याद दिलाया जाता है कि तुम्हें पराए घर जाना है. उनकी उम्र भी नहीं हो पाती कि उनके लिए रिश्ता ढूंढना शुरू हो जाता है.

कस्बे में अगर कोई लड़की पढ़ने जाती है, तो उस लड़की के खानदान वाले उसके चाचा चाची ही उसकी पढ़ाई के दुश्मन बन जाते हैं. कई बार तो मेरी बहन को ही मेरे चाचा ने कहा है कि “अब बस करो बहुत हो गया. कहां तक पढ़ती रहोगी?”

समस्या बस इतना भर ही नहीं है. उत्तरप्रदेश के गोण्डा जनपद की रहने वाली नूरजहां बताती हैं कि “मैं अपने पति से बहुत डरती हूं. उनका मिजाज बहुत कड़ा है. अगर दाल में नमक कम हो जाए तो हमें डांट के साथ-साथ कभी-कभी मार भी खानी पड़ जाती है.”

नूरजहां की 20 वर्षीय पुत्री अफसाना बताती है कि हम लोग अपने पापा की बहुत इज्ज़त करते हैं. जब वह खाना खा लेते हैं, तब ही हम सब खाते हैं.

‘ऐसा क्यों?’ उनसे पूछने पर जवाब मिला कि अगर ऐसा नहीं करेंगे तो पड़ोसी कानाफूसी करेंगे.

इस प्रकार देश में महिलाओं की अनगिनत समस्याएं हैं. उनके समाधान के लिए सरकार कई सारी योजनाएं चला रही है. लेकिन सच तो यह है कि सिर्फ योजनाओं से कुछ नहीं होने वाला. असल चीज़ है लोगों की मानसिकता को बदलना… पुरूषवादी सोच को बदलना… तो आईए आज राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर अपनी सोच बदलने की प्रतिज्ञा लें. पत्तों को पानी देने के बजाए जड़ को पानी से सींचे. तभी जाकर इस समस्या का समाधान हो सकता है.

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