भारत के ‘सेक्युलरिज्म’ पर विवाद…

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BeyondHeadlines News Desk

गणतंत्र दिवस पर अख़बारों में छपे एक विज्ञापन को लेकर विवाद गहरा गया है, जिसमें संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द ग़ायब थे. इसी बीच शिवसेना ने संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को स्थायी तौर पर हटाने की मांग करके विवाद को और बढ़ा दिया है.

शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा, “ये देश कभी सेक्युलर नहीं था. 1947 में विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है और पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना है. पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बना है तो हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए है. तो ये देश सेक्युलर नहीं है.”

आगे उन्होंने कहा कि “भले ही यह अनजाने में उठाया गया क़दम हो, लेकिन यह भारत के लोगों की भावना का सम्मान करने जैसा है. अगर इन शब्दों को इस बार गलती से हटाया गया है तो अब इन शब्दों को संविधान से स्थायी तौर पर हटाया जाना चाहिए. यह देश कभी धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता. बाला साहब ठाकरे और उनसे पहले वीर सावरकर ने कहा था कि भारत को धर्म के आधार पर बांटा गया. उनका मानना था कि पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बनाया गया और जो बचा हुआ हिस्सा है, वह हिन्दू राष्ट्र है.”

जबकि इस बहस को आगे बढ़ाते हुए कभी भाजपा के बुद्धिजीवियों में शुमार रहे सुधींद्र कुलकर्णी ने ट्वीट किया है कि “सरकार के इस क़दम की आलोचना की जानी चाहिए. अगर भाजपा सरकार संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाना चाहती है कि उसे इस संबंध में संविधान संशोधन करने की हिम्मत जुटानी चाहिए. प्रस्तावना में शामिल ये शब्द संविधान के बुनियादी ढांचे में शुमार हैं और भाजपा सरकार चाहकर भी इन्हें नहीं हटा सकती है.”

आगे उन्होंने ट्वीट किया कि “आरएसएस नेता भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कर रहे हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को देश को आश्वस्त करना चाहिए कि वह धर्मनिरपेक्षता के प्रति समर्पित हैं या नहीं?” कुलकर्णी ने आगे कहा कि “समाजवाद शब्द भारत को समानतामूलक समाज बनाने के सिद्धांत के केंद्र में है और कोई भी सरकार इसे नहीं हटा सकती.”

इतना ही नहीं उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि भाजपा के समर्थक इतने अहंकारी क्यों हैं? जबकि भाजपा के अपने संविधान में कहा गया है कि पार्टी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के प्रति समर्पित है. अगर ये शब्द भाजपा के समर्थकों को अच्छे नहीं लगते हैं तो उन्हें पहले पार्टी के संविधान से इन्हें हटाने की मांग करनी चाहिए. भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि ये दोनों शब्द पार्टी के संविधान में हों, अगर आज भाजपा इन्हें हटाने की मांग करती है तो इसका मतलब है कि भाजपाई ही वाजपेयी को नकार रहे हैं.

वहीं कांग्रेस ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले पर सफाई मांगी है.

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है, “प्रधानमंत्री स्वयं और अपनी सरकार का रुख ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ को लेकर स्पष्ट करें जिन पर बार-बार संशय उठ रहा है.”

कांग्रेस नेता और पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर केंद्र पर हमला करते हुए दावा किया कि सरकार के विज्ञापन में दो शब्द ‘‘हटा दिए गए’’. लगता है कि सरकार इन शब्दों की जगह ‘कम्युनल’ और ‘कॉरपोरेट’ शब्द जोड़ना चाहती है.

इस पर केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि ‘देश सेक्युलर है और हमेशा बना रहेगा.’

उन्होंने कहा कि ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ ये दोनों शब्द संविधान की मूल प्रस्तावना में नहीं थे. उनके अनुसार, “संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द 1967 में 42वें संशोधन के ज़रिए जोड़े गए थे, क्या इसका ये मतबल है कि इससे पहले की सरकारें सेक्युलर नहीं थीं.”

उन्होंने दावा किया कि यही तस्वीर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अप्रैल 2014 के विज्ञापन में छापी थी. उस वक्त तिवारी इस विभाग के मंत्री थे.

क्या लिखा है संविधान की प्रस्तावना में?

वर्तमान में संविधान की प्रस्तावना यह है- “हम भारत के लोग भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.”

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