एक बेगुनाह ‘आतंकी’ की दर्द भरी दास्तान…

Beyond Headlines
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Iqbal Ahmed Jakati

मेरा नाम इक़बाल अहमद जकाती है और पिछले कई वर्षों से पुलिस जुर्म का शिकार हूँ. पेशे से मैं पत्रकार हूँ. इसके बावजूद मुझे बेइंतेहा तकलीफ दी जा रही है. अब हाल ही में मुझ पर मार्किट पुलिस थाना बेलगाम (क्राइम न. 3 और 4)दर्ज किया हुआ है. मुझे इसकी एफआइआर मांगने से भी नहीं दी जा रही है. मैं इनकी हर रोज़ की परेशानी से इस क़दर परेशान हूँ कि अब मेरे पास सिवाय अपने आप को ही खत्म करने के सिवा कोई रास्ता नहीं.

मैं वह बदनसीब शक्स हूँ, जिस पर दहशतगर्दी के इल्ज़ाम में तक़रीबन चार साल तक बिला वजह जेल भेज दिया गया. मैं  बेलगाम में एक कार कंपनी में जॉब करता था. इसी अनुभव की वजह से मैं शारजाह नौकरी के लिए चला गया.

मुझे बेलगाम पुलिस ने आतंकवादी बताकर घरों की तलाशी ली और हथियार होने की झूटी ख़बर बना कर मेरे माता-पिता और छोटे बच्चों को तकलीफ दी. जिसकी वजह से मैं शारजाह से मुंबई आया. मेरे आते ही मुझे फ़ौरन गिरफ्तार कर लिया गया.  मुंबई पुलिस ने तरह-तरह की तकलीफे दी और रात भर देशद्रोही कह कर पीटते रहे.

बेलगाम पुलिस ने मुझे मुंबई से बेलगाम लाया. कभी मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि ऐसी तकलीफे मुझे दी जाएगी. मुझे 17 दिन बेंगलुरु में नार्को, ब्रेनमैपिंग जैसे टेस्ट किये गए. सिमी संघटन का मुखिया भी इन्हीं पुलिस वालों ने बना दिया.

बेलगाम में तीन और हुबली कोर्ट धमाके का मुक़दमा मुझ पर दायर कर दिया. मैंने पुलिस वालों को हाथ पांव जोड़कर कहा कि मेरा इन मामलों से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं. लेकिन बेरहम पुलिस रात देर तक जानवरों की तर पिटती थी.

हुबली  कोर्ट धमाका का सरगना गिरफ्तार जैसी सुर्खिया न्यूज़ चैनल और अख़बारों ने भी दी. जलन की लम्बी दास्तां मेरे नाम पुलिसवालों ने रक़म कर दी.

जेल में भी पुलिस वालों ने पीटा. जब कि कहा ये जाता है कि जेल में नहीं पीटते. खैर तक़रीबन चार साल के ट्रायल के बाद अदालत ने बेकसूर कह कर रिहा कर दिया. घर पहुंचा तो घर में सिवाय परेशानी के कुछ नहीं था. माँ-बाप, बीवी सभी बीमार थे. मुहल्ले में कोई भी बात नहीं करता था. एक तरह का सोसिअल बायकॉट था. और इसी में मेरे पिताजी का देहांत हो गया.

घर में अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मैंने नौकरी तलाशनी शुरू की, लेकिन किसी ने मुझे नहीं लिया. इसलिए कि मुझे लोगों ने आतंकवादी कहना शुरू किया था. मेरे बच्चे सड़क से गुज़रते तो उन्हें भी यही ताने सुनने पड़ते.

फिर मैंने अपनी आवाज़ को लोगों तक पहुंचाने के लिए अखबार निकालने का फैसला किया. मेरे भाई ने मुझे कुछ पैसे दिए, जिससे पैगाम-ए-इत्तेहाद के नाम से साप्ताहिक शुरू किया.

पिछले एक साल से अखबार चला रहा हूँ. पुलिस बेवजह मुझे बुलाकर तंग करती रहती है. घंटों पुलिस ठाणे में बिठा दिया जाता है. शहर में कहीं पर भी कुछ हुआ तो मुझे बुलाकर धमकी दी जाती है.

आईजीपी भाष्कर राव ने मुझे एनकाउंटर तक की धमकी दी. अखबार बंद करने को कहा. मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर मैंने क्या जुर्म किया है, जो बार-बार मुझे धमकियां और मुक़दमें डालने की बात कही जाती है. इन्हीं पुलिस वालों की वजह से मैंने समाजकार्य भी करना छोड़ दिया. आखिर मैं करू तो क्या करूं.

दो दिन पहले मुझे ये इत्तेला मिली कि मुझ पर फिर शांतता भंग के जुर्म में मार्किट पुलिस ठाणे में क्राइम न.3 और 4 के तहत केस बुक किया हुआ है.

कोई भी समाज का मुझे सप्पोर्ट नहीं मिल रहा है. लोग भी पुलिस से डरे हुए है. इतना जुल्म हो चूका है कि अब मुझ में और सहने की हिम्मत नहीं है. पुलिस ठाणे में क्यों मुझे तकलीफ दी जा रही, जब ये पूछता हूं कि तो कहते हैं कि कमिश्नर का हुक्म है. मुझे एफआइआर की कापी भी नहीं दी जा रही है. सिर्फ बताया कि मुक़दमा दायर करने का हुक्म है. और दो चार दिन में हम समन भेज देंगे.

आखिर में मुझे ऐसा लग रहा है कि यहां पर ज़ुल्म इसी तरह से होता रहेगा. हर रोज़ मरने से एक ही बार मर जाना बेहतर है. शायद इन्हें कुछ आराम मिले…

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