नीतीश की ‘चाणक्य नीति’ और मांझी का ‘जंग-ए-एलान’

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BeyondHeadlines News Desk

पटना:  नीतीश कुमार के ‘चाणक्य नीति’ की बिहार में हर तरफ चर्चा है कि कैसे उन्होंने अपने मास्टर स्ट्रोक से एक साथ तीन शिकार कर लिये. जहां बहुत आसानी से उन्होंने विधानसभा में विश्वास मत हासिल करके दिखा दिया, वहीं भाजपा को मतदान का बहिष्कार करने के लिए मजबूर कर दिया. इससे भी बड़ी बात यह रही कि कल तक जो मांझी सरकार बनाने का खम ठोंक रहे थे, उन्हें भी बिल्कुल अकेला कर दिया. दिलचस्प तो ये था कि मांझी के समर्थकों ने भी मांझी को इस दौरान नहीं पहचाना.

दरअसल, नीतिश कुमार ने संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधान खूब फायदा उठाया. बल्कि भाजपा को चिढ़ाने के लिए यह भी कह डाला कि यह प्रावधान केंद्र की एनडीए सरकार ने ही किया है. इसी प्रावधान के तहत उन्होंने मांझी को भी पार्टी व्हिप के दायरे में ला खड़ा किया. हालांकि, मांझी सदन में पहले ही असम्बद्ध क़रार दिए जा चुके थे.

नीतीश कुमार ने बार-बार इस दौरान इस बात का भी जिक्र कर रहे थे कि मांझी का जदयू के 40-50 विधायकों के संपर्क में रहने का दावा के क्या हुआ? उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय बार-बार कहते थे कि जब चाहेंगे, सरकार गिरा देंगे, उस दावे का क्या हुआ? हालांकि भाजपा ने अपनी ओर से यह कोशिश ज़रूर की थी कि वोटिंग की नौबत नहीं आए. यही कारण रहा कि वोटिंग का समय आने से पहले ही भाजपा के सभी सदस्य सदन से वाक-आउट कर गए. लेकिन उनकी यह रणनीति काम नहीं आई.

लेकिन इसके विपरित मांझी ने सदन में नहीं आकर अपनी सदस्यता गंवाने का रिस्क ज़रूर लिया और साथ ही नीतिश कुमार के खिलाफ जंग का ऐलान भी कर डाला.  साथ ही विश्वासमत को लेकर विधानसभा में चल रही चर्चा के दौरान मांझी ने एक अणे मार्ग स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से यह भी कह डाला कि उनको व्हिप की अवहेलना करने के कारण विधायकी खत्म होने की कोई चिंता नहीं है. वसूल और सिद्धांत के लिए वे हर कुर्बानी देने को तैयार हैं.

मांझी ने कहा कि वे विश्वासमत प्रस्ताव पर चर्चा में कैसे शामिल होते. पार्टी ने उनको निष्कासित कर दिया है. विधानसभा सचिवालय ने असंबद्ध सदस्य माना है. समर्थक विधायकों के विश्वासमत में भाग लेने के बारे में मांझी ने कहा कि वे लोग मेरे ही आदेश पर सदन में उपस्थित हुए हैं. विश्वासमत में हिस्सा नहीं लेने पर उनकी सदस्यता समाप्त हो जाती, ऐसा मैं नहीं चाहता हूं. इससे हम लोगों की स्थिति कमजोरी हो जाएगी. नीतीश आज भले ही विश्वासमत हासिल कर लें, मगर उनको 22 अप्रैल तक हर दिन चुनौती मिलती रहेगी. विधानसभा सत्र के दौरान कभी भी सरकार गिरा सकता हूं. मांझी ने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष नियम के बजाय नीतीश कुमार के कहने पर काम करते हैं.

वहीं मांझी ने खुद को जदयू को सच्चा सिपाही बताते हुए कहा कि मेरी लगातार बढ़ रही लोकप्रियता से नीतीश घबरा गए और अपने लोगों से मुझे अपमानित कराने लगे. इससे मेरे स्वाभिमान को चोट लगी है. नीतीश को लालटेन या साईकिल को पकडऩा पड़ेगा और तीर को छोडऩा पड़ेगा. जदयू के महा-गठबंधन में शामिल होने पर चुनाव-चिह्न तीर पर हम लोग दावा करेंगे. ऐसा नहीं होने पर 20 अप्रैल को गांधी मैदान में नई पार्टी की घोषणा करेंगे. नीतीश के खिलाफ अब जंग का एलान हो चुका है.

इस बीच नीतीश कुमार ने मांझी सरकार के 34 फैसलों को रद करने का भी साहस भी दिखा दिया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने इस फैसले को जनता के समक्ष सही ठहराने के लिए वह कौन सी रणनीति अपनाएंगे?

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