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Reading: अखिलेश सरकार के तीन साल सवालों के घेरे में -रिहाई मंच
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BeyondHeadlines > India > अखिलेश सरकार के तीन साल सवालों के घेरे में -रिहाई मंच
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अखिलेश सरकार के तीन साल सवालों के घेरे में -रिहाई मंच

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 15, 2015
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6 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : सपा सरकार द्वारा तीन साल पूरे होने पर ‘पूरे हुए वादें’ को झूठा क़रार देते हुए रिहाई मंच ने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि वह आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी और पुर्नवास व मुआवजा देगी, जो उसने नहीं किया.

रिहाई मंच ने दिसंबर 2007 में रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट के माध्यम से हम जनता के सामने इस तथ्य को लाना चाहते हैं कि किस तरह से एक झूठी आतंकी घटना जिस पर पूर्ववर्ती प्रदेश सरकार सीबीआई जांच के लिए तैयार थी, की जांच न करवाकर आतंकवाद के हौव्वे को ही न सिर्फ बरक़रार रखने की कोशिश की जा रही है, बल्कि बेगुनाहों को सात साल से जेलों में सड़ने को मजबूर किया जा रहा है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आर.डी. निमेष आयोग की रिपोर्ट ने तारिक़ और खालिद की गिरफ्तारी को फर्जी बताते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है. पर प्रदेश सरकार जिस तरह से इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने से न सिर्फ भागती रही है, बल्कि मौलाना खालिद के हत्यारोपी तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजीपी बृजलाल सहित 42 दोषी पुलिस व आईबी अधिकारियों व कर्मचारियों को बचाने की कोशिश की, उसने साफ कर दिया है कि सपा सरकार न सिर्फ इंसाफ के खिलाफ है, बल्कि आतंकवाद के हौव्वे के नाम पर देश को बांटने वाली राजनीति के गुनहगारों की संरक्षक भी है. इसीलिए मौलाना खालिद की हत्या में दोषी पुलिस व आईबी अधिकारियों को क्लीन-चिट दिलवाने के लिए फर्जी विवेचना का सहारा लिया गया.

उन्होंने कहा कि सपा के नुमाइंदे लगातार झूठ बोलते रहते हैं कि उनकी सरकार में आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तारी नहीं हुई. पर सच तो यह है कि सरकार बनते ही मई 2012 में सीतापुर से वसीर, आज़मगढ़ के एक मदरसे के छात्र सज्जाद बट्ट व वसीम बट्ट की गिरफ्तारी से जो सिलसिला शुरु हुआ वह 2014 के लोकसभा चुनावों और यूपी उप-चुनावों के दरम्यान इतना बढ़ गया कि मिर्जापुर, फतेहपुर, मेरठ, बिजनौर, सहारनपुर से लगातार गिरफ्तारियां होती रहीं और प्रदेश की अखिलेश सरकार चुप रही.

उन्होंने कहा कि लियाकत शाह जिसे सुरक्षा एजेंसियों द्वारा झूठा फंसाया गया था, की भी गिरफ्तारी यूपी से ही हुई थी, पर प्रदेश सरकार आतंकवाद के नाम पर झूठा फंसाने वाली दिल्ली स्पेशल सेल और एनआईए के खिलाफ मुक़दमा दर्ज करना तो दूर कोई सवाल उठाने की हिम्मत तक नहीं कर पाई. वहीं जेलों में हालत इस क़दर खराब हैं कि लखनऊ की जिस जेल से लाते-ले जाते वक्त मौलाना खालिद की हत्या कर दी गई. अब उसी जेल में जेल के अधिकारियों तो कभी भाड़े के गुण्डों का सहारा लेकर तारिक़ कासमी की हत्या का षडयंत्र रचा जा रहा है. जिसपर प्रदेश सरकार का मौन साबित करता है कि वह इसमें संलिप्त है.

रिहाई मंच आज़मगढ़ प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि सपा ने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह आतंकवाद के नाम पर निर्दोष साबित हुए लोगों के पुर्नवास व मुआवजा की गारंटी करेगी, पर प्रदेश सरकार ने इस वादे को भी पूरा नहीं किया. जबकि कानपुर समेत कई जगहों के लोग अपनी पुर्नवास व मुआवजा के लिए अखिलेश यादव तक से मिल चुके हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री के झूठे आश्वासन के अलावा अब तक कुछ नहीं मिला. रामपुर के जावेद उर्फ गुड्डू, ताज मोहम्मद, मक़सूद बिजनौर के नासिर हुसैन और लखनऊ के मोहम्मद कलीम को न्यायालय द्वारा दोषमुक्त किया जा चुका है.

सपा सरकार के दौरान न्यायालय से निर्दोष साबित हो चुके इन नौजवानों को अब तक मुआवजा न मिलना साबित करता है कि सरकारें एक नीतिगत स्तर पर मुस्लिम समाज के लोगों को आतंकवाद के नाम पर फर्जी तरीके से फंसाना ही नहीं उनके एजेण्डे में है बल्कि समाज से उनको एक अलगाव की स्थित में भी रखना है. जिससे समाज में दहशत का वातावरण बना रहे और उनके नाम पर चुनावी राजनीति होती रहे. क्योंकि अगर किसी व्यक्ति को सरकार पुर्नवास व मुआवजा देती है तो उससे समाज में यह संदेश जाता है कि सरकार ने अपनी ग़लती की भरपाई की, पर सरकारें ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहती. इसी प्रक्रिया में अखिलेश सरकार भी है.

उन्होंने मांग की कि सपा सरकार के चुनावी घोषणा पत्र में किए वादे और आरडी निमेष कमीशन में दी गई व्यवस्था के तहत आतंकवाद के आरोप से दोषमुक्त लोगों के मुआवजा व पुर्नवास की गारंटी करे.

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