याकूब मेमन की फांसी पर पांच सवाल…

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BeyondHeadlines News Desk

सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और सिविल सोसाइटी के बड़े हिस्से द्वारा याकूब मेमन की फांसी की सजा रद्द किए जाने की मांग के बावजूद अगर उसे फांसी दी जाती है तो इसे भारतीय लोकतंत्र द्वारा दिन दहाड़े की इंसाफ की हत्या माना जाएगा.

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने याकूब मेमन की फांसी को लेकर पांच सवाल उठाए हैं.

पहला- याकूब मेमन की गिरफ्तारी के दावों पर ही गंभीर अंतर्विरोध है. जहां सीबीआई ने उसे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पकड़ने का दावा किया था तो वहीं उसके और तत्कालीन खुफिया अधिकारी बी रामन के मुताबिक उसे नेपाल से उठाया गया था.

दूसरा- याकूब की सजा का आधार जिन छह सह आरोपियों का बयान बनाया गया है, उसमें से पांच अपने बयान से मुकर चुके हैं. यहां सवाल उठता है कि जो लोग अपने बयान से पलट चुके हों, उनके बयान के आधार पर किसी को फांसी तो दूर, साधारण सजा भी कैसे दी जा सकती है?

तीसरा- यह भी सामान्य समझ से बाहर है कि जब बम प्लांट करने वाले आरोपियों की सजाएं उम्र कैद में बदल दी गईं तो फिर कथित तौर पर घटना के आर्थिक सहयोगी के नाम पर, जिससे उसने इंकार किया है, को फांसी की सजा कैसे दी सकती है?

चौथा- जब वह इस मामले का एक मात्र गवाह है जिसनें जांच एजेंसियों को सहयोग करते हुए तथ्य मुहैया कराए तब उसे कैसे फांसी की सजा दी जा सकती है? क्योंकि किसी भी न्यायिक प्रक्रिया में मुख्य गवाह जो जांच एजेंसी या उसे पकड़ने वाली एजेंसी के कहने पर गवाह बना हो को फांसी देने का परंपरा नहीं है. अगर ऐसा होता है तो इसे उस शक्स के साथ किया गया धोखा ही माना जाएगा. यानी अगर याकूब फांसी पर चढ़ाया जाता है तो यह विधि सम्मत फांसी होने के बजाए धोखे से किया गया फर्जी एनकाउंटर है, जो पुलिस द्वारा रात के अंधेरे में किए गए फर्जी एनकाउंटर से ज्यादा ख़तरनाक है. क्योंकि इसे पूरी दुनिया के सामने अदालत द्वारा अंजाम दिया गया होगा.

पांचवा- जब याकूब मेमन को भारत लाने वाले रॉ अधिकारी रामन यह कह चुके हैं कि इस मुक़दमें में अभियोजन पक्ष ने याकूब से जुड़े तथ्यों को न्यायपालिका के समक्ष ठीक से रखा ही नहीं तो क्या अभियोजन पक्ष द्वारा मुक़दमें के दौरान रखे गए तथ्यों और दलीलों को सही मानकर दिए गए पोटा अदालत का फैसला खुद ब खुद कटघरे में नहीं आ जाता? वहीं याकूब जब पुलिस की हिरासत में आ गया था और वह अपने परिवार को करांची से भारत लाने के नाम पर गवाह बना तो ऐसे में यह भी सवाल है कि याकूब ने जो गवाही दी वह मुंबई धमाकों से जुड़े तथ्य थे या फिर पुलिसिया कहानी थी.

दरअसल होना तो यह चाहिए कि बी रामन के लेख की रोशनी में अभियोजन पक्ष द्वारा तथ्य को छुपाए जाने, उन्हें तोड़ मरोड़कर अदालत में रखने उनके द्वारा आरोपियों से बयान लेने के लिए इस्तेमाल किए गए गैर कानूनी तौर तरीकों जिसका जिक्र जस्टिस काटजू ने भी अपने बयान में किया है, की जांच कराई जाए. यह जांच इसलिए भी ज़रुरी है कि इस मामले में अभियोजन पक्ष के वकील उज्जवल निकम रहे हैं, जो कसाब मामले में मीडिया में उसके खिलाफ़ झूठे बयान देने कि वह बिरयानी की मांग करता था स्वीकार कर चुके हैं.

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