शुक्र है वो आज नहीं है…

Beyond Headlines
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By Abhishek Upadhyay

आज अगर वो होती तो…? फिजियोथेरेपी की डिग्री पूरी हो गयी होती. शायद कहीं नौकरी भी मिल गयी होती.

भीषण बलात्कार के बाद बड़ी दया दिखायी गयी थी. समाज… सिस्टम… गवर्नमेंट… सब के सब पसीज गए थे. कुछ रूपये भी मिले थे. एफडी मे पड़े होते शायद. ज़िंदगी जीने का इंतज़ाम तो हो ही गया था. पर कैसी ज़िंदगी…? सवाल तो उसी का है न?

आज अगर वो होती तो किसके साथ होती? उस हरामखोर प्रेमी के साथ, जो उसकी दर्दनाक मौत का किस्सा बयां करने के एवज में टीवी चैनलों से रुपयों का मोलभाव कर रहा था. इतना पैसा दो तब बोलूंगा. और क्या वो बलात्कार की शिकार इस मासूम से ब्याह भी करता?

वाक़ई अजीब त्रासदी हुई थी उस रात. उसी बस में बैठी एक लड़की दरिंदगी की इंतेहा झेलकर मौत के कगार पर थी. और उसी बस में बैठा उसका प्रेमी अपनी लंगड़ाती टांग पर किस्सागोई की कमाई का प्लास्टर चढ़ा रहा था.

अपने माँ-बाप के साथ होती तो..! बलिया के किस हिस्से में रखते वो उसे? दिल्ली लेकर आते? लुटियन जोन में जगह मिलती! बलात्कार की नोची लड़की इस समाज में कैसे ज़िंदा रहती है? किस हाल में जीती है? और क्या जी भी पाती है? साल 2009 में नोएडा के ग्रेट इंडिया मॉल से लौट रही एक लड़की को 11 दरिंदों ने मिलकर नोचा था. वो देश छोड़कर चली गयी. यही सच है. इस मुल्क में बलात्कार की शिकार लड़की के पास बस दो ही विकल्प होते हैं. या तो देश छोड़ दे. या फिर दुनिया…

अगर आज होती तो हर नुक्कड़, हर चौराहे अपने चरित्र का सर्टिफिकेट पा रही होती. “थी ही ऐसी…. अरे! उससे भी तो फंसी थी….. कोई ऐसे ही ज़बरदस्ती थोड़े ही न करता है….” अगर होती तो पता नहीं कोई फ़िल्म भी बनती उस पर या नही?

‘इंडियाज डॉटर!’ ‘भारत की बेटी.’ बड़ा भारी-भरकम नाम रख दिया था बनाने वाले ने. कहां का भारत! कौन सी बेटी! “Eyeballs grabbing” के लिए क्या क्या नहीं करते ये फ़िलम वाले! अगर फिलम बनती भी तो शायद वो इसके टेलीकास्ट के दौरान चैनल ही बदल देती. या फिर टीवी सेट ही तोड़ देती. अब कौन एक ही ज़हर बार-बार सुने! बार-बार पिए! बार-बार घुले! कभी पेट्रोल डालकर ज़िंदा जलाने की बात! कभी ज़्यादा छूट का नतीजा बताने की ज़िद! तो कभी क्या क्या कुछ…!

अरे नया क्या है इसमें? जो फिलम बना रहे हो, भाई. जो दुनिया को दिखा रहे हो. ऐसे ही तो सोचते हैं ये साले, हरामजा….

अगर होती तो अब तक कितनी बार मर चुकी होती. और जो थोड़ी बहुत सांसे बची होतीं वो तब उखड़ जातीं. जब वो ‘बेचारा’ नाबालिग़ हाथों में दस हज़ार रुपए और सिलाई मशीन लेकर अपनी रिहाई का जश्न मना रहा होता. शुक्र है ये ‘अगर’ सच नहीं है. वो आज नहीं है.

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