मुसलमान…
ये ज़िन्दगी ख़ुदा की नेमत
ये आवाज़ हक़-परस्ती खातिर
फिर किस ख़ौफ़ से डरें
क्यूँ जिकर भी मरें
क्यों न कहें जो हक़ीक़तें हैं तुम्हारी
आखिर कब तक चलेगी ये ज़ुल्म-व-सितम की सवारी
तुम हो बुझदिल, शायद ये बात तुम भी जानते हो
इसलिए बेगुनाहों को तुम मारते हो
मज़हब के नाम पे लोगों को बरगलाते हो
झूठे-झूठे क्या ख़ूब सुनहरे ख्वाब तुम दिखाते हो
नफ़रत नहीं है अपने आपमें जल रहे हो तुम
अपने पागलपन से इंसानियत को कुचल रहे हो तुम
किस इस्लाम ने तुमको ये सबक़ है सिखाया
मार दो सबको बच्चा हो, बुजुर्ग हो, अपना या पराया
क़त्ल-व-ग़ारत बस जिहाद यही है…?
आतंक जो फैलाये बस मुसलमान वही है…?
क्या सलीक़े से कभी क़ुरआन पढ़ा है तुमने?
जाहिलियत से अपने आगे बढ़ा है तुमने?
तुम्हारी चाह दूसरी है…
तुम्हारी राह दूसरी है…
तुम मुसलमान नहीं हो, मैं ये दावे से कहता हूँ
क्यूंकि क़ुरआन पाक को मैं अच्छे से पढ़ता हूँ…
जो हक़ बात को बतलाये
राहे-रास्त पे जो चलाये
अमन व आमान, अख़लाक़-मुहब्बत, भाई-चारगी
बस इस्लाम यही है…
बुराइयों से रुक जाओ
ख़ुदा का फ़रमान यही है…
अपने आप पे जो क़ाबू कर ले
ज़िहाद वही है…
जो समझे इंसानों, बेज़ुबानों का दुःख-दर्द
बस मुसलमान वही है…
(युवा कवि साहिल तनवीर चम्पारण के बैशखवा गांव के रहने वाले हैं. इन दिनों दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं. इनसे 7838967058 पर सम्पर्क किया जा सकता है.)
