सच बोलने के नुक़सान और झूठ बोलने के फ़ायदे…

Beyond Headlines
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Dr. Purshottam for BeyondHeadlines

सच के बारे में एक आम धारणा यह है कि सच में बहुत ताक़त होती है, लेकिन अकाट्य सत्य यह भी है कि आज के दौर में झूठ अपने चरम पर है. नतीजतन लोग सच बोलने से कतराते हैं जबकि सच बोलने वालों को इसकी क़ीमत चुकानी पड़ती है. अपने जीवन में हुए कई अनुभवों से मेरी ऐसी धारणा बनी है.

इस संदर्भ में एक घटना का स्मरण हो रहा है. कुछ समय पहले मैं एक सरकारी कार्यालय में वित्त विभाग में काम किया करता था. कार्यालय में सामान सप्लाई करने वाले दिवाली के समय विभाग के मुखिया को एक “लिफ़ाफ़ा”, मिठाई का डब्बा, डायरी, कपड़े आदि देते थे.

यह एक प्रकार की अनौपचारिक लेकिन अनिवार्य परम्परा बन चुकी थी. इस परम्परा को निभाते हुए सप्लायर एक बार दिवाली पर विभाग के मुखिया को ये तोहफ़े दे गया. उन्होंने सामान अपने पास रख लिया और मिठाई स्टाफ़ में बंटवा दी. इन कर्मचारियों में मैं भी शामिल था जिसे मिठाई खाने का अवसर मिला.

थोड़ी देर बाद मेरा विभाग के मुखिया के कमरे में जाना हुआ तो वे मुझसे मज़ाक़ करने लगे कि तूने मिठाई खाई है और ये निकलेगा. खैर, मैं यह सुनकर वापस आ गया. लगभग आधे घंटे बाद फिर से मेरा उनके कमरे में किसी काम से जाना हुआ तो वहां पर पहले से ही कई सीनियर कर्मचारी मौजूद थे.

जैसे ही मैं कमरे में अन्दर घुसा तो उन्होंने वही लाइन फिर से दोहराई. अचानक मेरे मुंह से निकल गया कि सर जी! मोटा माल तो आपने रख लिया और छोटी सी चीज़ कर्मचारियों में बांटवा दी. इसके बाद तो उस अफ़सर का चेहरा लाल हो गया. उसने मुझसे कमरे से बाहर चले जने को कहा और मैं तुरन्त वहां से निकल गया.

कर्मचारियों के बीच यह बात आग की तरह फैल गई कि मैंने ऐसा कहा है. उसके बाद तो लोग मेरे पीछे पड़ गए. मुझे परेशान करने लगे. विभिन्न प्रकार से मानसिक यातनाएं मुझे दी जाने लगीं और नौकरी छोड़ने के लिये मुझे मजबूर किया जाने लगा. देर रात 10-11 बजे तक मुझसे काम लिया जाने लगा. तब मैने जाना कि सच बोलने के क्या नुक़सान हैं.

दूसरी घटना भी आपके साथ साझा करना चाहता हूं. किसी दूसरे आफिस में अच्छी पोस्ट पर काम करने लगा. वहां पर एक कर्मचारी जिसकी उम्र मुझसे दुगनी थी, वो रोज़ाना मुझसे हाथ जोड़कर नमस्कार करता था और कई दिनों से करता आ रहा था तो मुझे थोड़ा बुरा सा लगता था.

मैंने एक दिन उसे रोककर कहा –बाबूजी, मुझे हाथ जोड़कर नमस्कार मत किया करो, क्योंकि आप मुझसे उम्र में ज्यादा बड़े हैं. आपको करना ही है तो हाथ मत जोड़ा करो. मेरा इतना कहने के बाद वो अगले दिन से मुझे देखकर मुंह फेर लेने लगा और मुझे बदनाम करने लगा. मैंने उसको कुछ नहीं कहा और सब वक्त पर छोड़ दिया.

मुझे लगा कि वाक़ई सच लोगों को हज़म नहीं होता है. मैंने फेसबुक पर कोट किया कि अगर आप दुश्मन पैदा करन चाहते हैं तो सच बलिए क्योंकि बुरे लोग सच को स्वीकार नहीं करते.

कभी-कभी लगता है कि झूठ बोलने वाले लोग फ़ायदे में रहते हैं. मेरा एक सहकर्मी मित्र आदतन झूठ बोलता है. जिससे भी मिलेगा हमेशा रोता रहेगा कि मुझे ये दुःख है, ये तक़लीफ़ है.

मैंने गौर किया है कि ऐसा वो लोगों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए करता है. संभवतः दुनिया के बारे में उनकी धारना यह है कि दुनिया भर के लोग भोले और बेवकूफ़ हैं. और वो सबको अपनी तेज़ी ज्ञान और चतुराई से बेवकूफ़ बना देगा. पर हक़ीक़त यह है कि लोग उसे अच्छी तरह से समझते हैं फिर भी उसको ज़ाहिर नहीं होने देते.

झूठ बोल कर आप लोगों को थोड़ी देर के लिए तो ठग सकते हैं और लाभ की स्थिति में रह सकते हैं पर जब आपका भेद खुलता है तो आपको भागने के लिए दुनिया छोटी पड़ जाती है. ऐसे मौक़ों पर से लोग अपना मुंह छिपाते फिरते हैं. समय सबसे बलवान होता है और वह लोगों के चेहरो पर से सारे मुखैटे उतार देता है. लेकिन मेरे सहकर्मी मित्र जैसे लोग क्षणिक लाभ के लिए अमूल्य मानवीय सम्बन्धों की क़ीमत पर अनैतिक समझौते कर लेते हैं क्योंकि वे अपने वर्तमान से परे नहीं देख पाते.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में वाणिज्य विषय के प्राध्यापक हैं.)

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