आरटीआई के ज़रिए भ्रष्टाचार की लड़ाई में शहीद हुए राजेन्द्र के घर से एक ग्राउंड रिपोर्ट…

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Ujjawal Kumar, BeyondHeadlines के लिए

मोतिहारी (बिहार) : 19 तारीख़ को आरटीआई कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह जी की गोली मार कर सरेआम सड़क पर हत्या कर दी गई. पिपरा थाना क्षेत्र में यह घटना घटी. यह उनकी हत्या का चौथा प्रयास था. पहली बार चाकू से हमला, दूसरी बार जीप से हमला, तीसरी बार कुल्हाड़ी से और आख़िरी बार बंदूक से हमला किया गया.

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) एवं सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान (NCPRI) के पहल पर मैं उज्ज्वल कुमार और मोतिहारी में सामाजिक काम कर रहे NAPM के ज़िला संयोजक रंजीत गिरि, राजेन्द्र जी के परिवार वालों से मिलकर पूरे वस्तु- स्थिति की जानकारी ली.

राजेन्द्र जी को अपनी हत्या का अनुमान पहले से था. उन्होंने डीआईजी मुज़फ़्फ़रपुर को 09 अक्टूबर, 17 को एक पत्र लिख ये सूचना दी कि मेरी हत्या कभी भी हो सकती है. मगर पुलिस ने कभी मामले को गंभीरता से नहीं लिया.

राजेन्द्र जी रोज़ाना डायरी लिखा करते थे. उन्होंने इस डायरी में भी कई घटनाओं का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि उनके कुछ मित्रों ने उन्हें जान से मारे जाने की आशंका की ख़बर दी थी.

एक फोटो दुकान वाले ने भी फोन करके कहा कि कुछ लोग फेसबूक से आपके कई फोटो मेरे यहां बनवाने आए थे. क्या आपने भेजा था? 

तीन-तीन बार हत्या के प्रयास क बावजूद पुलिस ने अपराधियों या किसी हमलावर को नहीं पकड़ा.

जब परिवार के लोग समझाते थे कि क्यों आप ये सब कर रहे हैं तो कहा करते थे कि मैं दुश्मनों की गोली से मर जाना पसंद करूंगा, लेकिन हार नहीं मानूंगा. अगर आप लोगों ने मुझे रोका तो मैं आत्महत्या कर लूंगा. जब तक जीऊंगा चोरों को सबक़ सिखाते रहूंगा और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लड़ता रहूंगा.

आस-पास के लोग भी ये कह रहे थे कि वे एक बार जिस मामले को ले लेते फिर किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं करते.

जिस दिन उनकी मौत हुई, उस दिन भी वह एक सम्बन्धी के यहां से होकर मोतिहारी कोर्ट से तरीख़ कर लौट रहे थे.

राजेन्द्र जी ने अपने आरटीआई के ज़रिए कई मामलों की सूचना हासिल कर भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागड़ किया. सरकारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके ईंट, चिमनी और आरा मशीन चल रहा था. उन ज़मीनों को खाली करने और जितने दिन से चिमनी और मील चल रहा है, उसका रेंट वसूलने के लिए राजेन्द्र जी ने कोर्ट में केस किया था.

यही नहीं, पूर्व मुखिया ने फ़र्ज़ी डिग्री पर अपने साला और अन्य कुछ लोगों को शिक्षक के पद पर नियुक्ति करा दिया था. राजेन्द्र जी के कारण उन सभी शिक्षकों को इस्तीफ़ा देना पड़ा. BEO संग्रामपुर को जेल जाना पड़ा. स्थानीय डीलर कई लोगों के फ़र्ज़ी राशन कार्ड बनाकर राशन गबन कर रहा था, उसके ख़िलाफ़ इन्होंने लोक-शिकायत किया.

ऐसे कई मामले जैसे, आंगनबाड़ी में मध्याह्यन भोजन के राशन का गबन का मामला हो, मुखिया के द्वारा मनरेगा का भ्रष्टाचार की बात हो अथवा किसी के केस की पैरवी हो सबकी मदद किया करते थे.

कई बार उन्हें पुलिस फ़र्ज़ी मुक़दमे में भी फंसा देती थी. मगर वे जहां भी जाते उसका साक्ष्य ज़रूर रखते थे. किस तारीख को गए, किसके साथ गए, कितना समय रहे आदि. इस कारण उनकी ज़मानत हो जाती थी.

एक बार स्थानीय मुसहरी चौक पर एक दंगा हुआ. एक दलित महिला को गांव के कुछ दबंग लोग तंग कर यह थे. पुलिस इंस्पेक्टर ने इन्हें फोन कर मामले को शांत कराने में मदद मांगी. राजेन्द्र जी वहां गए और भीड़ को समझा-बुझाकर लोगों को शांत कराया. बाद में उसी इंस्पेक्टर ने उन्हें दंगा भड़काने का मुक़दमा दर्ज कर जेल भेज दिया.

उनके पास पर्याप्त सबूत थे कि दंगे के वक़्त वे मोतिहारी में थे, इंस्पेक्टर ने उन्हें फोन कर बुलाया आदि. जिस कारण तीन दिन में ही ज़मानत हो गई.

संग्रामपुर पुलिस इंस्पेक्टर से लकड़ी और गांजे की ज़ब्ती की आरटीआई की जानकारी मांगी, उन्होंने जानकारी नहीं दी. फिर उन्होंने हाई कोर्ट में रिट फाइल किया. केस अभी चल रहा है.

यह संजोग ही है कि आज वो पुलिस इंस्पेक्टर अरेराज के डीएसपी बन गए हैं और ज़िला एसपी ने जो एसआईटी टीम गठित की है, उस टीम में वे भी शामिल हैं. हमारी बातचीत एसआईटी टीम से भी हुई.

मैंने और रंजीत गिरि ने राजेन्द्र जी के परिवार वालों से मिलकर मामले की विस्तार से जानकारी ली. उनके परिवार की ओर से उनकी बेटी ममता सिंह, लवली, पत्नी और दामाद राकेश रंजन जी ने कुछ पारिवारिक बातें भी साझा की.

कुछ दिन पहले जब राजेन्द्र जी घर में नहीं थे, उस समय उनका भाई सत्येन्द्र सिंह राजेन्द्र जी के घर आये और बहुत सारी फाईल उठाकर ले जाने लगे. जब पत्नी ने विरोध किया तो उन्हें धक्का देकर उस कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. कमरे में दो दरवाज़े थे. दूसरे दरवाज़े से कई महत्वपूर्ण फाईल लेकर वह गाली देते हुए चला गया.

पत्नी का कहना है कि उन फाइलों में लोक-शिकायत, आरटीआई और कोर्ट में चल रहे केस के कई महत्तपूर्ण दस्तावेज़ थे. इस घटना को लेकर वे एफ़आईआर करने संग्रामपुर थाने गए, मगर दरोगा ने एफ़आईआर नहीं किया, उल्टे उनसे सुलह करने को कहने लगा. भाई द्वरा ले गए फाइलों में थाना प्रभारी से मांगी गई लकड़ी और गांजा के ज़ब्ती की सूचना की फाईल भी थी.

परिवार के लोगों का यह भी कहना था कि बेटा नहीं होने के कारण भाई सत्येंद्र सिंह, राजेन्द्र जी का ज़मीन क़ब्ज़ाना चाह रहे थे. राजेन्द्र जी कहते थे कि मैं अपनी ज़मीन न तो भाई को दुंगा, न बेटियों को. मैं अपना ज़मीन गरीबों को दान कर दूंगा.

आरोप है कि भाई सत्येंद्र का चिमनी वाला डीलर, पूर्व मुखिया और थाना प्रभारी से पुरानी सांठ गांठ थी. परिवार वालों का संदेह है कि इन सब लोगों ने मिलकर अपने-अपने स्वार्थ के लिए राजेन्द्र की हत्या करा दी है.

मामला काफ़ी गंभीर है. राजेन्द्र जी के परिवार को सरकार से कोई मुआवज़ा नहीं चाहिए, उन्हें सिर्फ़ न्याय चाहिए.

मेरा और रंजीत गिरि का मनना है कि इस मामले की जांच सीआईडी करे, क्योंकि स्थानीय पुलिस प्रशासन और अधिकारियों से वे हमेशा लड़ते भिड़ते रहते थे. ऐसे में एसआईटी जांच कितना निष्पक्ष होगा, कहा नहीं जा सकता है.

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