क्या सिमी पर सरकार फिर से प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है?

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अफ़रोज़ आलम साहिल, BeyondHeadlines

नई दिल्ली: स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) पर ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम के तहत लगाए गए प्रतिबंध की अवधि 31 जनवरी 2019 को समाप्त हो रही है. इसी के मद्देनज़र केन्द्र सरकार ने तमाम राज्य सरकारों से नए सिरे से सिमी की गतिविधियों के बारे में जानकारी मांगी है. सरकार का कहना है कि अगर ये संगठन अब भी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों में शामिल है तो फिर से नए सिरे से प्रतिबंध लगाया जा सकता है. सरकार ये फ़ैसला राज्यों से मिले फीडबैक के आधार पर करेगी.

सिमी के गिरफ़्तारियों के मामले में लगातार लिखने व बोलने वाले सीनियर खोजी पत्रकार अजीत साही का कहना है कि सिमी पर लगाया गया प्रतिबंध ‘क़ानूनी प्रतिबंध’ नहीं, बल्कि ‘राजनीतिक प्रतिबंध’ है. 

वो आगे कहते हैं कि, सिमी पर प्रतिबंध के क़रीब 17 साल होने को हैं, लेकिन इन 17 सालों में न केन्द्र सरकार और न ही पूरे हिन्दुस्तान की कोई भी राज्य सरकार किसी भी कोर्ट में सिमी के ख़िलाफ़ कोई सबूत दे पाई है.

अजीत साही बताते हैं कि, जिन मुक़दमों आधार बनाकर इस तंज़ीम पर प्रतिबंध लगाया गया, उन्हीं मुक़दमों में सब छूटते रहें. जब वो मुक़दमे ही ‘फ्रॉड’ हैं, तो फिर उन्हीं मुक़दमों के आधार पर आप कैसे कह सकते हैं कि ये संगठन आतंकी गतिविधियों में शामिल था. जबकि एक के बाद एक कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां सिमी के लड़कों को अदालतों ने छोड़ा न हो.

ग़ौरतलब रहे कि 2008 तक के उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि 7 राज्यों में 149 सिमी के नाम पर गिरफ़्तार हुए नौजवान अदालतों से बाईज़्ज़त रिहा हो चुके हैं.

ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवेद हामिद का इस संबंध में कहना है कि, सिमी पर प्रतिबंध मिथ्य तथ्यों के आधार पर लगाया था. अब जब सरकार हर तरफ़ से नाकाम हो रही है. सारे वादे ‘जुमले’ साबित हो रहे हैं, तो ऐसे में हिन्दुत्व ही एक सहारा बचता है. सिमी पर अब अगर फिर से प्रतिबंध लगाया गया तो ये असंवैधानिक तो होगी ही, साथ में क़ानून का भी मखौल उड़ाया जाएगा, जो सरकार के दिवालियेपन का सबूत भी होगा. और इस पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि अगर ये अपने दिवालियेपन का प्रदर्शन करें.

जमात-ए-इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय सचिव सलीम इंजीनियर बताते हैं कि, जब पहली बार सिमी पर प्रतिबंध लगाई गई तो उसकी कोई माक़ूल वजह सरकार की ओर से नहीं बताई गई. सरकार के ट्राईब्यूनल ने भी एक बार ये रिपोर्ट दी थी कि ऐसी कोई वजह हमें नज़र नहीं आती जिसके आधार पर हम कह सकें कि इस पर प्रतिबंध को जारी रखा जाए. इसके बावजूद प्रतिबंध को रिन्यू किया जाता रहा है. इससे साफ़ नज़र आता है कि सरकार इंसाफ़ से काम नहीं ले रही है.

आगे सलीम इंजीनियर का कहना है कि, ये प्रतिबंध लगाने का जो कल्चर है, इस कल्चर को हम जम्हूरियत के ख़िलाफ़ समझते हैं. अगर किसी के ख़िलाफ़ आपके पास कोई सबूत है तो मुल्क में उसके लिए क़ानून बने हुए हैं, उस क़ानून के मुताबिक़ आप उस पर कार्रवाई कर सकते हैं.

वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सैय्यद क़ासिम रसूल इलियास सिमी पर लगे प्रतिबंध को ग़ैर-क़ानूनी व असंवैधानिक मानते हैं. उनका कहना है कि अब तक सिमी पर लगाए गए पांचों प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है, जिसकी आज तक सुनवाई नहीं की गई. ऐसे में बुनियादी तौर पर ये प्रतिबंध ग़ैर-क़ानूनी है.

डॉ. इलियास का ये भी कहना है कि, पहले प्रतिबंध में इस तंज़ीम पर आतंकवाद का कोई आरोप नहीं था. प्रतिबंध लगने के बाद इसे आतंकवाद के साथ जोड़ा गया. लेकिन सारे ट्रायल केसेज़ से लोग छूट गए, लेकिन फिर भी प्रतिबंध जारी है. ये प्रतिबंध ग़लत लगा था, ये प्रतिबंध हटना चाहिए.

बता दें कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव एस.सी.एल. दास की तरफ़ से तमाम राज्यों को भेजे गए पत्र में कहा गया है, ‘राज्य सरकार अगर पाती हैं कि सिमी अब भी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों में शामिल है और ऐसी गतिविधियों में लगा है जो देश की अखंडता और आंतरिक सुरक्षा के लिए पूर्वाग्रह से ग्रस्त है या जिनसे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ख़तरा है, तो इसकी सूचना गृह मंत्रालय को दी जाए.’

लेकिन इस सिमी के सदस्य रह चुके डॉ. शाहिद बद्र फ़लाही का कहना है कि हम लगातार लीगल लड़ाई लड़ रहे हैं. हमारी कोई एक्टिविटी ऐसी नहीं थी, जिससे हम पर प्रतिबंध लगे, लेकिन सरकार लगातार प्रतिबंध को आगे बढ़ा देती है.

डॉ. फ़लाही का कहना है कि, देश के क़ानून पर हमें यक़ीन है. प्रतिबंध के ख़िलाफ़ हमारी लीगल लड़ाई जारी रहेगी.

एक सवाल के जवाब में डॉ. फ़लाही आगे ये भी कहते हैं कि प्रतिबंध हटने के बाद हम फिर से इस तंज़ीम की नए सिरे से शुरूआत करेंगे. इंसानियत व मज़हब के लिए हमारा काम जारी रहेगा. डॉ. शाहिद बद्र फ़लाही प्रतिबंध के समय सिमी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष थे.

दिल्ली का दफ़्तर खंडहर में हो रहा है तब्दील

‘सिमी’ का गठन 1977 में भले ही उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ हो, लेकिन एक दफ़्तर दिल्ली में भी था. ये दफ़्तर दिल्ली के ज़ाकिर नगर में स्थित है. ये दफ़्तर अब धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होता जा रहा है और इसे देखने वाला कोई नहीं है.

डॉ. सैय्यद क़ासिम रसूल इलियास कहते हैं कि, एक संगठन पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया, उसके दफ़्तर को सील कर दिया, लेकिन सरकार की ओर से उसको देखने वाला कोई नहीं है. वहां से सारे सामान चोरी हो चुके हैं. ऐसे में मेरा सवाल है कि जब सरकार ने इसे अपने क़ब्ज़े में लिया था तो फिर इसके देख-रेख की ज़िम्मेदारी सरकार की थी, लेकिन सरकार की ओर से ये ज़िम्मेदारी अदा नहीं की गई. ऐसे में जब वहां असमाजिक तत्वों का जमावड़ा लगने लगा, ग़लत हरकतें होने लगीं तो वहां के लोगों ने इस दफ़्तर के बाहर एक दीवार खड़ी कर दी है ताकि कोई अंदर न जा सके.

सिमी पर कब-कब लगा प्रतिबंध?

सिमी पर पहला प्रतिबंध 27 सितंबर, 2001 को लगाया गया. यह प्रतिबंध अगले दो सालों यानी सितंबर 2003 तक चलता रहा. इसके साथ ही इस प्रतिबंध को अगले दो सालों के लिए फिर से बढ़ा दिया गया. ये प्रतिबंध 27 सितंबर, 2005 तक चलता रहा. 

2006 के फ़रवरी महीने में कहा गया कि इस संगठन के सदस्यों का देश के अलग-अलग हिस्से में हुए विस्फोटों में हाथ है. सरकार की इस दलील के आधार पर सिमी पर एक बार फिर से 08 फरवरी, 2006 को प्रतिबंधित कर दिया गया. मगर साल 2008 के अक्टूबर माह में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस संगठन पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया. लेकिन सरकार इस आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई, अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को फिर से जारी कर दिया. क्योंकि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अदालत को बताया था कि ‘सिमी’ का संबंध पाकिस्तान स्थित चरमपंथी संगठनों के अलावा भारत से संचालित ‘इन्डियन मुजाहिदीन’ नाम के चरमपंथी संगठन से भी है.

इसके बाद ये प्रतिबंध दो साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया. पांचवी बार 2014 में 1 फ़रवरी से सिमी को प्रतिबंधित कर दिया गया. पांच साल का ये प्रतिबंध 31 जनवरी 2019 को समाप्त हो जाएगा. अब आगे इस संगठन पर कितने और प्रतिबंध लगेंगे, ये सरकार ही बेहतर जानती है.

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