स्वास्थ्य सेवाओं पर बाज़ार की नज़र, मुश्किल में आम लोग

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BeyondHeadlines News Desk

पटना : ‘आम लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं पर अब बाज़ार की गहरी नज़र है. स्वास्थ्य सेवाएं एक ऐसे उद्योग में तब्दील हो रहा है, जहां पर प्राइवेट प्लेयर बहुत मज़बूत हैं. डॉक्टरों को पैसा उगलने वाली मशीन बना दिया गया है.’

यह बातें सामाजिक कार्यकर्ता अनामिका ने कही. वो चार्म संस्था के तत्वावधान में आयोजित सिटीजन चार्टर रिपोर्ट के प्रकाशन के मौक़े पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थी.

उन्होंने आगे कहा कि मैं उदाहरण देकर बता रही हूं कि मेरी भतीजी की एक उंगली दुर्घटना में दब गई. जब उसे हम दिल्ली के एक बड़े हॉस्पिटल में ले गए तो उन्होंने कहा कि हमें प्लास्टिक सर्जरी करनी होगी और इसके दो लाख लगेंगे. जबकि ज़ख्म मामूली थे. अब आप सोचिए जिसका उपचार चंद रुपये में किया जा सकता है, उसके लिए भारी भरकम पैसे मांगे जाते हैं. ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि हमारी कल्याणकारी कैरेक्टर वाली सरकार धीरे-धीरे प्राइवेट कंपनियों के चंगुल में फंसती चली गई है.

चार्म संस्था के प्रमुख डॉक्टर शकील ने कहा कि आज जीडीपी का 4 फ़ीसदी स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि पब्लिक हेल्थ एक्सपेंडिचर में केवल 1 फ़ीसदी खर्च हो रहा है? यानी कुल बजट का 3 हिस्सा प्राइवेट कंपनियों की झोली में जा रहा है. बड़े कॉरपोरेट प्लेयर खुलकर खेल रहे हैं. एक अध्ययन का आंकड़ा कह रहा है कि आने वाले 4 सालों में हमारे स्वास्थ्य का बजट 22 हज़ार अरब खर्च होंगे.

इस मौक़े पर उपस्थित ‘भोजन के अधिकार संगठन’ के प्रदेश प्रभारी रुपेश ने कहा कि चार्म की टीम को बधाई देता हूं कि उन्होंने एक ऐसा सिटीजन ऑडिट रिपोर्ट पेश किया है जिसमें ईमानदारी से यह बताया गया है कि आंगनबाड़ी से लोगों को कुछ सेवाएं मिल रही हैं. इसके लिए आंगनबाड़ी के कर्मचारियों को भी श्रेय जाता है. जहां तक उनसे मिलने वाली सेवाओं की बात है तो दवा मिल रही है या नहीं? केन्द्रों तक दवाएं पहुंच रही है या नहीं? इस पर भी अध्ययन की दरकार है. उपलब्धता और वितरण की पारदर्शिता पर हम सभी को बात करनी चाहिए.

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