BeyondHeadlines Correspondent
पटना: लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र मुसलमान वोटरों को लुभाने का दौर शुरू हो चुका है. इसी कड़ी में हाल ही में मोदी सरकार से अलग हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में अब्दुल क़य्यूम अंसारी की याद में मुस्लिम बेदारी कांफ्रेंस का आयोजन किया.
इस मुस्लिम बेदारी कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी ख़राब है. स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल क़य्यूम अंसारी ने 1953 में गरीब पिछड़ों के लिए आयोग बनाने की मांग की थी, लेकिन 65 साल बाद भी उनका सपना पूरा नहीं हुआ.
आगे उन्होंने कहा कि आबादी के अनुसार आरक्षण की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए. इसलिए जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक हो. ये सामाजिक न्याय की बात करने वाले केवल जुमलेबाज़ी कर रहे हैं. ऐसे लोगों को नीचे लाने व सबक़ सिखाने की ज़रूरत है. दरअसल इनका निशाना बिहार के सीएम नीतीश कुमार की तरफ़ था.
उन्होंने यह भी कहा कि लालच देकर व डराकर वोट लेने वालों के दिन लद गए. अब मुसलमानों को लॉलीपॉप या मटन बिरयानी खिलाकर कोई भी राजनीतिक दल वोट हासिल नहीं कर सकती. उनके हित के लिए काम करना होगा.
BeyondHeadlines से बातचीत में रालोसपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद औरंगज़ेब अरमान ने बताया कि ये मुस्लिम बेदारी कांफ्रेंस उनके अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने ही आयोजित किया था. इस सम्मेलन का मक़सद मुसलमानों के साथ होने वाली नाइंसाफ़ियों से बिहार के लोगों को आगाह कराना था. आज बिहार में उर्दू टीचरों की कमी है. तक़रीबन 35 हज़ार उर्दू टीचरों के पद खाली हैं और राज्य की नीतीश सरकार इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है.
आगे उन्होंने कहा कि उर्दू के ख़िलाफ़ नीतीश कुमार का सौतेला रवैया बिहार में साफ़ तौर पर नज़र आ रहा है. बीपीएससी के तहत 2015 से 2018 तक तमाम विषयों में असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों की बहाली हो गई, लेकिन उर्दू वालों का अब तक इंटरव्यू भी नहीं हुआ.
उन्होंने हालिया दिनों में हुई सांप्रदायिक घटनाओं और मॉब लिंचिंग जैसे मामलों की बात करते हुए कहा कि देश में हाल के दिनों में जिस तरह समाज को बांटने की कोशिश की गई है, वह ना तो समाज के लिए बेहतर है और ना ही देश के लिए.
बता दें कि बिहार में मुसलमान वोटरों को लुभाने की कोशिश में तमाम राजनीतिक पार्टियां लगी हुई हैं. नीतीश कुमार की पार्टी ने भी पिछले साल नवम्बर महीने में अल्पसंख्यक कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें ख़ास तौर पर इन कार्यकर्ताओं की भूख मिटाने के वास्ते मटन और बिरयानी का इंतज़ाम किया गया था, लेकिन बावजूद इसके सम्मेलन में आधी से ज़्यादा कुर्सियां खाली रह गईं. अब आगे देखना दिलचस्प होगा कि दूसरी पार्टियां मुसलमानों को रिझाने के लिए क्या-क्या कोशिशें करती हैं.