पहले पुलिस ने ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से उठाया, और अब रासुका लगाने की तैयारी

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BeyondHeadlines News Desk

आज़मगढ़: 26 अप्रैल 2018 को अमित साहू द्वारा फेसबुक पर नफ़रत भरी साम्प्रदायिक टिप्पणी के ख़िलाफ़ आज़मगढ़ के सरायमीर थाना स्थित कोरौली खुर्द गांव के कलीम जामेई ने पुलिस से शिकायत की और कार्रवाई की मांग की. लेकिन पुलिस ने उल्टे न सिर्फ़ कलीम को अभियुक्त बनाया, बल्कि 1 अक्टूबर 2018 को उसे सरायमीर स्थित ढाबे से ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से उठा लिया. पुलिस की इस आपराधिक कार्रवाई पर सवाल उठने के बाद पुलिस ने उस पर फ़र्ज़ी मुक़दमा दर्ज कर जेल भेज दिया. जबकि इस मामले में माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद ने कलीम की गिरफ्तारी पर रोक लगा रखी थी.

उत्तर प्रदेश की सामाजिक व राजनीतिक संगठन रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव बताते हैं कि 6 फ़रवरी 2019 को माननीय हाईकोर्ट इलाहाबाद द्वारा ज़मानत दे दी गई है. 

लेकिन उनका आरोप है कि कलीम से खुन्नस खाई पुलिस उन पर रासुका के तहत कार्रवाई करने का षड्यंत्र रच रही है. यह अंदेशा इसलिए भी है कि 28 अप्रैल 2018 को सरायमीर मामले के अभियुक्त मुहम्मद आसिफ़, शारिब, राग़िब को न्यायालय द्वारा ज़मानत दिए जाने के बाद साज़िशन रासुका के तहत निरुद्ध कर दिया गया था. 

राजीव कहते हैं कि, इस पूरे मामले में पुलिस की आपराधिक कार्यशैली लगातार सवालों के घेरे में है. यहां तक कि कलीम जामई के ढाबे की पुलिस द्वारा की गई तोड़फोड़ के वीडियो तक मौजूद हैं. 28 अप्रैल की घटना के 2 दिन पहले सरायमीर थाना अध्यक्ष द्वारा किया गया मुक़दमा स्पष्ट करता है कि पुलिस उनसे निजी रूप से खुन्नस खाई हुई थी. 

बता दें कि रिहाई मंच की ओर से राजीव यादव ने इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, गृह मंत्रालय सहित यूपी के पुलिस महानिदेशक को पत्र भी भेजा है और मांग की है कि क़ानून का अनुसरण कर कलीम जामई की रिहाई सुनिश्चित की जाए तथा रासुका का ग़लत इस्तेमाल रोका जाए.

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