By Gaurav Pandey
भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन को भारत वापस भेजने के ऐलान के साथ इमरान खान ने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर यह घोषणा कर दी है कि पाकिस्तान भारत के साथ शांति चाहता है और शांति के रास्ते पर पहला क़दम उसने उठा लिया है. हालांकि पाकिस्तान के इस शांति समर्थन के दावे में कितनी हक़ीक़त है यह तो पाकिस्तान ही बता सकता है.
पाक सरकार के इस निर्णय को भारत के दबाव में लिया गया फ़ैसला और भारत की जीत कहने वाले एक बार इमरान खान का पाक संसद में दिया गया पूरा संबोधन भी सुनें.
इमरान ने स्पष्ट कहा है कि यह शांति का इशारा है. लेकिन इस फ़ैसले का यह मतलब कतई न निकाला जाए कि पाकिस्तान डर गया है. पाक संसद में भी खान ने कहा कि तनाव से न भारत को फ़ायदा होने वाला है न पाकिस्तान को. हम चाहते हैं कि तनाव कम हो, लेकिन इसे हमारी कमज़ोरी न समझा जाए.
हालांकि अभिनंदन की वापसी को जिनेवा समझौते की शर्तों की वजह से पाकिस्तान की मजबूरी भी माना जा सकता है. लेकिन इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान ने इस फ़ैसले के साथ यह संदेश दिया है कि पाक शांति की राह पर चलने को तैयार है और इसमें अगर कहीं दिक्कत है तो वह भारत की ओर से…
यह भी सही है कि मात्र एक दावे भर से भारत को पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करना चाहिए. यदि इमरान खान के दावों में सच्चाई है तो उन्हें इस निर्णय के साथ-साथ आतंकवाद व आतंकवादियों पर लगाम लगाने के लिए उचित कार्रवाइयां प्रारंभ करनी चाहिए और संदेश के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपने कार्य रखने चाहिए.
अब बारी हमारी है. उन्मादी और आक्रोशित लोगों को छोड़ दें तो सभी यह समझते हैं कि युद्ध कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता. इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो ऐसे कितने ही उदाहरण मिल जाएंगे जहां पता चलेगा कि युद्ध से लाभ कितनों को हुआ और उसकी विभीषिका कितनों ने और कितने समय तक सही.
बुद्ध, महावीर और गांधी के इस देश में यदि युद्ध को एकमात्र रास्ता मान लिया जाएगा तो यह भारत की आत्मा की हत्या होगी. हां! यह ठीक है कि आक्रामकता एक समय तक सही जा सकती है और एक स्तर के बाद आक्रामकता का उत्तर देना ज़रूरी है. लेकिन यदि इस जवाब में निर्दोषों का खून बहे तो यह जवाब भविष्य के लिए कितने सवाल खड़े करेगा, इस बारे में अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल है.