जब एक अंधे भिखारी ने दिया गांधी को चार आने का दान…

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BeyondHeadlines History Desk

देश को आज़ादी मिलने से ठीक पहले बिहार में हुए भीषण दंगे के बाद जब महात्मा साल 1947 के मार्च महीने में 6 तारीख़ को पटना आए तो यहां दंगे में मारे गए मुस्लिम पीड़ितों के लिए उन्होंने ‘मुस्लिम सहायता कोष’ बनाया. 

एक दिन गांधी जब टहल कर लौट रहे तो रास्ते में एक अंधा भिखारी बैठा मिला. उसने चार आने बापू जी को मुस्लिम सहायता कोष के लिए दिए. 

इस घटना का ज़िक्र मनु गांधी, जिन्हें गांधी अपनी पोती मानते थे, ने अपनी पुस्तक ‘बिहार की क़ौमी आग में’ किया है. 

वो लिखती हैं —‘गांधी के चरणों में हज़ारों रुपये रखे गए होंगे. उनके आनन्द से अनेक गुना अधिक आनन्द बापू जी को इस अंधे भिखारी के बचाए हुए चार आने लेने में हुआ. उनका चेहरा हास्य और उल्लास से चमक उठा. उन्होंने भिखारी की पीठ थपथपाई और कहा कि आज से भीख मांगना छोड़ दो, अंधा आदमी भी बहुत काम कर सकता है. कात तो सकता ही है. मुझे उस भाई को तकली देने को कहा और सदाकत आश्रम में उसका सदुपयोग हो, इस प्रकार का काम देने की एक स्वयंसेवक को सूचना की.’

मनु गांधी आगे लिखती हैं —पैर धोते समय बापू जी मुझसे कहने लगे, “तुमने देख लिया न, भिखारी जैसे ने भी पैसा अपने पेट में न डालकर खास नाम लेकर मुस्लिम सहायता कोष के लिए दिया. उसके 4 आने की क़ीमत मेरी दृष्टि में 4 करोड़ से भी अधिक है. इसका नाम है सच्चा दान! यह है बिहार की जनता! बिहार में क़दम रखे आज तीसरा ही दिन है. इतने में ही यह छोटी सी घटना हो गई, उसका मेरे मन पर बहुत अद्भुत असर हुआ है. हम जितने सच्चे होते हैं, उतना ही उन गुणों का प्रतिबिम्ब ईश्वर हमें दिखाता ही है…”

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