मां गंगा को दिया चौकीदार मोदी ने धोखा, फंड से की कमाई और अब फिर से ठगने की कोशिश

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Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

नई दिल्ली: ‘न मुझे किसी ने भेजा है, और न मैं यहां आया हूं. मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है.’ ये ‘जुमला’ किसने और कब कहा था, शायद ये बताने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है.

आज मां गंगा का ये बेटा खुद को चौकीदार बता रहा है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि फिर से अपनी मां गंगा के लिए क्या वायदे करता है. फिलहाल बीजेपी के संकल्प पत्र में इस मां का ज़िक्र बहुत ज़्यादा नहीं है. बस इतना ही कहा गया है कि स्वच्छ गंगा का लक्ष्य 2022 में हासिल कर लिया जाएगा.

बता दें कि गंगा सफ़ाई के लिए कैबिनेट मंत्रालय बनाकर ‘नमामि गंगे’ नाम का मिशन चलाने वाली सरकार मां गंगा को अब तक सिर्फ़ धोखा देती ही नज़र आ रही है. जबकि गंगा नदी का न सिर्फ़ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40% आबादी इसी गंगा पर निर्भर है.

मां गंगा की सफ़ाई को लेकर सरकारी दावे

राज्‍यसभा में कपिल सिब्बल द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण एवं मानव संसाधन विकास राज्‍य मंत्री डा. सत्‍यपाल सिंह ने 11 फ़रवरी, 2019 को बताया कि ‘नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत, गंगा नदी की सफ़ाई के लिए कई समन्‍वित कार्य शुरु किए गए हैं. सीवरेज अवसंरचना, औद्योगिक प्रदूषण उपशमन, घाटों का निर्माण और मोक्षधामों का विकास, नदी तट विकास, वृक्षारोपण एवं जैव विविधता संरक्षण, जैव उपचार, ग्रामीण स्‍वच्छता, अनुसंधान एवं विकास, संचार एवं जन पहुंच कार्यक्रम आदि जैसे क्षेत्रों में अब तक 261 परियोजनाएं मंज़ूर की गई हैं जिनकी अनुमानित लागत 25563.48 करोड़ रुपये है. इनमें से 76 परियोजनाएं पूरी हो गई हैं और शेष परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं.’

वहीं इसी दिन राज्‍यसभा में डा. अभिषेक सिंघवी द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में बताया गया कि अब तक 261 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं जिनकी अनुमानित लागत 25563.48 करोड़ रुपये है. इन 261 परियोजनाओं में से 136 परियोजनाएं सीवरेज अवसंरचना और सीवेज परिशोधन क्षमता के सृजन द्वारा गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की सफ़ाई के लिए मंज़ूर की गई हैं जिनकी अनुमानित लागत 20623.13 करोड़ रुपये है. इसके अलावा, गंगा के किनारे स्‍थित गांवों में तरल अपशिष्‍ट प्रबंधन परियोजनाओं के कार्यान्‍वयन के लिए 123.96 करोड़ रुपये दिए गए हैं. 

लेकिन कैग खोल रही सरकार की पोल

अब इन सरकारी दावों से अलग सच्चाई ये है कि नमामि गंगे कोष का लगभग 25,00 करोड़ रुपये इस्तेमाल नहीं हुआ है. इसकी जानकारी किसी और ने नहीं, बल्कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी एक ऑडिट रिपोर्ट में दी है. कैग ने केन्द्र सरकार के प्रमुख नमामि गंगे कार्यक्रम में पिछले तीन साल के दौरान वित्तीय प्रबंधन, योजना और क्रियान्वयन में ख़ामियों को लेकर भी सवाल उठाए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के पास क्रमश: 2,133.68 करोड़ रुपये, 422.13 करोड़ रुपये तथा 59.28 करोड़ रुपये का उपयोग नहीं हो पाया है. स्वच्छ गंगा कोष के पास 31 मार्च, 2017 तक 198.14 करोड़ रुपये का कोष था, जिसका इस्तेमाल एनएमसीजी द्वारा नहीं किया जा सका और पूरी राशि बैंकों में कार्रवाई योजना को अंतिम रूप नहीं दिए जाने के कारण बेकार पड़ी रही.

गंगा हुई और भी मैली, 58% बैक्टीरिया बढ़े

मीडिया में आए रिपोर्टस बताती हैं कि मोदी सरकार के समय में गंगा और मैली हुई है और 58% बैक्टीरिया बढ़े हैं. ये रिपोर्ट इंडिया टूडे ने प्रकाशित की है. इंडिया टुडे को गंगा पुनरूद्धार मंत्रालय से आरटीआई के ज़रिए मिले जवाब बताते हैं कि घाटों के किनारे गंगा के पानी में विष्ठा कोलिफॉर्म बैक्टीरिया का दूषण 58 फ़ीसदी बढ़ गया है.

मां गंगा और उनके भक्तों को धोखा देकर सरकार ने की कमाई

केन्द्र की मोदी सरकार न सिर्फ़ करोड़ों रुपए आम आदमी से गंगा के नाम पर दान के तौर पर ले रही है, बल्कि उसे खर्च न करते हुए साल दर साल उस पैसे पर भारी ब्याज भी कमा रही है. सरकार पोस्ट ऑफ़िस के ज़रिए गंगाजल को बेचकर भी कमाई कर रही है. इन बातों की पोल हाल के दिनों में आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ों के आधार पर लिखी गई किताब “वादा-फ़रामोशी” में खोली गई है. इस किताब को आरटीआई कार्यकर्ता संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने मिलकर लिखा है.

जल संसाधन मंत्रालय से आरटीआई के ज़रिए हासिल महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत ‘क्लीन गंगा फंड’ में 15 अक्टूबर 2018 तक इस फंड में ब्याज समेत 266.94 करोड़ रुपए जमा हो गए थे. वहीं मार्च 2014 में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खाते में जितना भी अनुदान और विदेशी लोन के तौर पर रुपए जमा थे उस पर 7 करोड़ 64 लाख रुपए का ब्याज सरकार को मिला. मार्च 2017 में इस खाते में आई ब्याज की रक़म बढ़कर 107 करोड़ हो गई. 

इन आरटीआई कार्यकर्ताओं की मानें तो सरकार ने अकेले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खाते से 100 करोड़ रुपए का ब्याज कमा लिया. इसका अर्थ यह है कि अनुदान मिलने के बाद पैसे के इस्तेमाल में देरी हुई और इस कारण खाते में ब्याज बढ़ता चला गया.

इतना ही नहीं, आरटीआई से मिले दस्तावेज़ों के मुताबिक़ सरकार ने पोस्ट ऑफिस के ज़रिए गंगाजल बेचकर दो साल में 52.36 लाख रुपए से अधिक कमाए हैं. यह कमाई क़रीब 119 पोस्टल सर्कल और डिवीज़न के ज़रिए 2016-17 और 2017-18 में 200 और 500 मिलीलीटर की 2.65 लाख से ज़्यादा बोतलें बेचकर की गई.

मां गंगा रह गई मैली, लेकिन चौकीदार ने बढ़ाई अपनी चमक

आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ बताते हैं कि 2014-15 से 2018-19 के बीच प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में गंगा से संबंधित जारी हुए विज्ञापनों पर 36.47 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. साल दर साल विज्ञापन पर खर्च बढ़ता चला गया. 2014-15 में विज्ञापन पर 2.04 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. 2015-16 में यह राशि 3.34 करोड़, 2016-17 में 6.79 करोड़, 2017-18 में 11.07 करोड़ और चुनावी साल आते-आते केवल आठ महीनों में विज्ञापन की रक़म बढ़कर 13 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर गई. यानी मां गंगा भले ही मैली रह गई हैं, लेकिन इस मां को राजनीतिक प्रचार का ज़रिया ज़रूर बनाया गया.

याद रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था —“अगर हम गंगा को साफ़ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फ़ीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी. अतः गंगा की सफ़ाई एक आर्थिक एजेंडा भी है.” और तथ्यों की जांच-पड़ताल के बाद ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि मां गंगा को धोखा देकर सरकार ने सिर्फ़ अपने आर्थिक एजेंडे पर ही ध्यान दिया है.

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